Atmadharma magazine - Ank 227
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : २२७
थवुं ते धर्म छे अने ते वडे धर्मीने सहज स्वभावनो महिमा वधतो जाय छे अने तेथी क्षणे क्षणे शुद्धता वधती
जाय छे.
अविनाशी, अविकारी, परमसुखनुं अक्षयनिधान प्रभु पोते ज छे. अंतरंगमां विद्यमान आत्मा पोते
ज देव छे–तेना निर्मळ श्रद्धा–ज्ञान अने चारित्रथी संसारनो पार पमाय छे.
हुं सहज ज्ञानस्वरूप आत्मा छुं एम निरंतर अनुभवनार ज्ञानीने अज्ञान संबंधी बंध थतो नथी,
पण कर्मोनी निर्जरा थाय छे.
पूर्णज्ञान स्वभाव ज मारुं कायमी स्वरूप छे, विकार जेवो ने जेटलो हुं नथी पण तेनाथी त्रिकाळ
भिन्न छु एम जाणनार ज्ञानीने स्वरूपमां उग्रपणे एकाग्र थतां तुरत ज केवळज्ञान थाय छे.
पुण्यादिनी क्रिया के व्रतादिना शुभभाव ने अंतरनुं साधन छे एम नथी. पुण्यपाप तो चैतन्यथी
विरुद्ध भाव छे अने ते नाशवान छे, संयोग अने देहनी क्रिया पृथक् छे. छतां तेना आधारे धर्म थाय एम जे
माने ते चैतन्यना प्राण हणी रह्यो छे. निश्चय वीतरागभावरूप अंतरंग साधन होय तो शुभभावने
व्यवहार साधन उपचारथी कहेवाय छे पण ते खरुं साधन नथी.
मोक्षमार्ग बे नथी पण तेनुं निरूपण बे प्रकारे छे. साचा मोक्षमार्गरूप सत्यार्थ कार्यनुं कारण तो
अंतरंगमां निज कारण परमात्मा छे, जे शुद्ध नयनो विषय छे, तेने जाणतो ज्ञानी नित्य निःशंक अने निर्भय
वर्ते छे.
वस्तुमां भय नथी, ज्ञानमां भय नथी. निर्भय वस्तु पोते ज्ञान छे, एम जे मानतो नथी ते
संयोगमां–देहादिमां एकताबुद्धिथी पोताना अविनाशी आत्माने भूल्यो छे–ते भूल दुःख छे. संयोगथी कोईने
सुख दुःख नथी.
मसाणमां एकलो माणस जाय तो घणो भय, बे जण जाय तो ओछो भय, हथियार लईने जाय तो
एथी पण ओछो भय लागे एम अज्ञानी माने छे. जेवी वस्तु छे तेने ते रूपे अज्ञानी नथी मानतो, पण
तेनाथी विपरीत माने छे तेथी भयभीत थाय छे. मेरू डगे तोय धर्मी डगे नही केमके नित्य अविनाशीना
भरोसे जाग्यो के मारा चैतन्यनी धु्रव भूमिकामां कोईनो प्रवेश नथी. आम निःशंक होवाथी ज्ञानीने भय
नथी.
प्रश्न:– अविरत सम्यग्द्रष्टि आदिने ज्ञानी कह्या छे. तेने शास्त्रमां भय कह्यो छे. ४–प–६–गुणस्थान
सुधी तो प्रगटपणे बुद्धिपूर्वक भय थतो जोवामां आवे छे. गाममां रोग आवे तो चालो बहार जईए,
प्लेगना उंदर मस्त होय तो अरे! एने अडशो नहीं. एम वाणी अने विकल्प आवे छे, भयथी भागे पण छे
छतां तेने निर्भय केवी रीते कहेवो?
उत्तर:– जे अल्पभय छे ते संयोगना कारणे नथी; पण चारित्रमां अस्थिरता होवाना कारणे छे. ते
अस्थिरता जेटलो हुं नथी पण तेनाथी पृथक् अविनाशी ज्ञायक छुं एम निःशंकपणे माननार ज्ञानीने खरेखर
भय थतो ज नथी. नबळाईना प्रमाणमां तेने भय थाय छे पण तेनुं स्वामीत्व नथी. अन्य कोई जीव
बाह्यमां न डरे, एकलो जंगलमां रहे माटे ज्ञानी छे एम नथी.
श्रेणिक राजाने तेनो पुत्र जेलमां नाखे छे. श्रेणिकने भान थाय छे के देहनां कार्य मारां नथी, हुं देहरूपे
नथी, द्वेष थयो ते रूपे हुं नथी, स्वरूपमां निःशंकता छे छतां आपघात करे छे अने द्वेष परिणामथी नरकमां
जाय छे, त्यां पण ज्ञान ज्ञाननुं काम करे छे, अने चारित्रमां अस्थिरतानो भाग अशुद्धता ते तेनुं काम करे छे–
बेउ स्वतंत्र धारा छे. तेनुं आयु ८४ हजार वर्षनुं छे, तेमां अकस्मात नथी. धर्मीजीव खरेखर नरकमां गयो
नथी ते समजे छे के अमे अमारा अस्तित्वमां छीए, संयोग अने विकारना अस्तित्वमां अमे नथी. धर्मीनुं
माप संयोगनी द्रष्टिवाळो करी शके नहीं, अंतरनी द्रष्टि अने तेनो विषय अपूर्व समजणथी जणाय एवा छे.