आसो : २४८८ : ९ :
भूतार्थने आश्रित धर्म छे तो पण अज्ञानवशे जीव
अभूतार्थमां धर्म
केम माने छे?
पंचास्तिकाय गा. १७२ उपर पूज्य गुरुदेवनां प्रवचन, राजकोट ता. ७–प–६२
(जिनेश्वर वीतराग भगवानना उपदेशमां बे नयो
(बे द्रष्टिकोण) द्वारा निरूपण होय छे, त्यां निश्चयनयद्वारा तो
सत्यार्थ निरूपण करवामां आवे छे अने व्यवहारनयद्वारा
अभूतार्थ–असत्यार्थ निरूपण करवामां आवे छे. अभूतार्थनुं
वर्णन शा माटे कर्युं छे? ते द्वारा निमित्त, भेद अने गुणस्थान
अनुसार तेनो विषय केवा प्रकारनो होय छे ते बताववा माटे
व्यवहारनयद्वारा तेनुं वर्णन कर्युं छे.)
निश्चय वीतरागभावरूप सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र छे, ते शुद्धात्माने आश्रित होवाथी निश्चय–
भूतार्थ मोक्षमार्ग छे, मोक्षनुं अभिन्न साधन छे. खरुं साधन छे. ज्यां निश्चय अभेद साधन छे पण पूर्ण
वीतरागता प्रगट करी नथी त्यां गुणस्थान अनुसार केवो शुभ राग निमित्तपणे–सहचरपणे होय छे ते
बताववा माटे ते शुभरागने व्यवहार रत्नत्रयरूपे अथवा भिन्न साधनरूपे व्यवहारनयद्वारा निरूपण
करवामां आवे छे. बन्नेने जेम छे तेम जाणवुं ते प्रमाण ज्ञान छे.
अहीं तो जेने प्रमाणज्ञान नथी, एकान्त पराश्रयरूप व्यवहाराभासने अवलंबनारा छे एवा अज्ञानी
जीवो अभूतार्थ धर्मने साधे छे तेनी प्रवृत्ति अने तेनुं फळ कहेवामां आवे छे.
आत्मा शान्त सच्चिदानंदमय ज्ञायक छे. परनो कर्ता, भोक्ता, के स्वामी नथी, रागादिनो उत्पादक
नथी. एवुं तेनुं शुद्ध स्वरूप अनादि अनंत ज्ञायक छे, तेनी सन्मुख थईने तेनी श्रद्धा रुचि अने तेनो आश्रय
न करतां बहारमां भलुं बूरूं मानी साचा देव, शास्त्र, गुरुने माने छे, नवतत्त्वो, छ द्रव्य अने शुभमां
प्रवृत्तिमय संयमनी प्रतीति करे छे ते शुभराग छे, ते रागवडे पोताने धर्मी माने छे. छ द्रव्य, नव तत्त्व तथा
साचा देवादिने मानवा, अन्यने न मानवा अने व्यवहार रत्नत्रयना रागनी प्रवृत्तिमां धर्मनुं आचरण
मानी अटकवुं ते व्यवहाराभास छे. जेओ शास्त्र भणे, सांभळे तो पण ते तरफना झूकावरूप शुभरागमां धर्म
माने छे तेओ व्यवहारने ज निश्चय माननारा मिथ्याद्रष्टि छे.
जे सर्वज्ञ वीतरागे कह्युं छे तेम नथी मानता पण तेनाथी विरूद्धने भ्रमथी हितकर जाणीने सेवे छे
अने ज्यां सुधी अभूतार्थने (व्यवहारनो) सत्यार्थ मानी बेठा छे त्यां सुधी ते सर्वज्ञ वीतराग कथित्
सत्यार्थ धर्मने समजवाने लायक नथी.