निरूपण शा माटे करवामां आवे छे?
जवामां आवे छे; तेम जेने वस्तुनुं यथार्थ स्वरूप सीधुं समजातुं न होय तेने वस्तुस्वरूपना उपचार
कथन वडे वस्तुस्वरूपना यथार्थ ख्याल तरफ दोरी जवामां आवे छे. वळी लांबा कथनने बदले संक्षेपथी
कहेवा माटे पण व्यवहारनय द्वारा उपचरित अभूतार्थ कथन करवामां आवे छे. अहीं एटलुं लक्षमां
राखवुं के–जे पुरुष बिलाडीना निरूपणने सिंहनुं निरूपण मानी बिलाडीने ज सिंह समजी बेसे ते तो
उपदेशने ज लायक नथी, तेम जे पुरुष उपचरितने ज (व्यवहार धर्मने ज) सत्यार्थ निरूपण मानी
वस्तुस्वरूपने–मोक्षमार्गने–खोटी रीते समजी बेसे छे ते तो उपदेशने ज योग्य नथी.
छे. साधक दशामां बे नय होय छे. अंशे वीतरागता ते स्वाश्रयरूप निश्चय चारित्र छे अने साथे
शुभराग छे ते चारित्र तो नथी पण जेने स्वाश्रित वीतरागभाव छे तेने तेनुं निमित्तपणुं छे एम
बताववा व्यवहारथी शुभने पण चारित्र कहेवुं ते उपचार निरूपण छे. शुभ अथवा अशुभ रागनुं
चारित्र ते आत्मानुं चारित्र नथी, मोक्षमार्गनुं चारित्र नथी पण संसार मार्गनुं चारित्र छे.
निश्चय वीतरागभावरूप चारित्रदशा होय तो. व्यवहार अहिंसा ते पुण्य परिणाम छे, शुभराग छे, धर्म
नथी. मोह–क्षोभ रहित आत्मपरिणाम ते धर्म छे. शुभरागमां धर्म नथी, ते आत्मपरिणामरूप चारित्र
नथी छतां तेमां चारित्र धर्म मानी पोतानी मिथ्याद्रष्टिवडे ते जीव शुभरागनी प्रवृत्तिमां तन्मय रहे छे.
मानतो नथी.) जूठुं न बोलवुं, साचुं बोलवुं, अचौर्य पाळवुं, अब्रह्म न सेववुं, ब्रह्यचर्य मन, वचन,
कायाए पाळवुं, धन, धान्य, वस्त्रादि परिग्रहनो त्याग ए बधी शुभरागनी वृत्ति छे, तेनाथी पुण्य छे,
चारित्र नथी केमके रागभाव ते निर्विकार चैतन्यनी जागृतिनो सो टका विरोधी भाव छे, झेर छे. ज्ञानी
छठ्ठा गुणस्थानवर्ती मुनिना महाव्रतादिना शुभ भाव पण निश्चयथी विषकुंभ ज छे. जेम छे एम
जाणवुं ते सम्यग्ज्ञान छे केमके जे भावे नवुं बंधन थाय ते भावे वीतरागी श्रद्धा अथवा चारित्र धर्म
थई शके नहीं छतां कोई भ्रमथी अभूतार्थ धर्मने साधतो थको पोताने भूतार्थ धर्म माने, मोक्षमार्ग
माने छे. ते मान्यता मिथ्यात्वरूपी महापाप छे. हिंसादि पांच पाप तथा सात व्यसनना महापापनी
तुलनामां मिथ्यात्वनुं पाप अनंतगणुं छे एम शास्त्रमां कह्युं छे.