Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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आसो : २४८८ : ११ :
धर्म मानी बेसे तो मिथ्यात्व छे एम ऊंधी मान्यतानो निषेध करी, नय विभागथी कथन पद्धत्ति जाणी,
निश्चयने निश्चय अने व्यवहारने व्यवहारना स्थानमां जाणे तो प्रमाणज्ञान छे, अने शुद्ध निश्चयनयनो
विषय भूतार्थ जाणी तेनो आश्रय करे अने पराश्रयरूप व्यवहार खरेखर धर्म माटे आदरणीय नथी एम
जाणे तो हितमां प्रवृत्तिमां थई शके.
नय विभागद्वारा शास्त्रना अर्थ समजे नहीं तेने चारे अनुयोग शास्त्रना कथनमां विरोध भासे छे.
ज्ञानीने चारे अनुयोग शास्त्रमां वीतरागता ज उपादेय भासे छे. तेथी स्वतंत्रता, यथार्थता, अने
वीतरागतारूप तात्पर्यने ग्रहण करे छे.
आत्मा ज्ञानानंद पवित्र छे. तेमां मिथ्यात्व रागादिना आश्रयरहित श्रद्धा ज्ञान अने एकाग्रता वडे ज
आनंदनी जमवट थाय छे. आत्मामां अतीन्द्रिय शांत रसनी जमवट करवी तेने भगवाने चारित्र कहेल छे,
पण अज्ञानी बहारमां अशुभ रागनो त्याग, शुभनुं ग्रहण तेमा चारित्र अने संयम माने छे.
अज्ञान दशामां साचा व्रत तप होतां ज नथी तेथी तेने बाळव्रत अने बाळतप कहे छे. तेनां व्रतादिने
व्यवहार व्रत व्यवहारतप नाम अपातुं नथी, पण मिथ्याश्रद्धाना कारणे ते व्यवहाराभास ज छे.
तत्त्वार्थसूत्रमां ज्ञानीनी भूमिकामां महाव्रतादिने आस्रवमां (अर्थात् बंधना कारणमां) कहेल छे.
परिग्रह राखवानो भाव पापभाव छे अने छोडवानो भाव ते पुण्य छे. अज्ञानी जीव व्रतादिना शुभ रागथी
धर्म माने छे, मिथ्यात्व अने राग एटले आस्रवतत्त्वने हितकारी माने छे तेथी पंच महाव्रतना रागनी
लागणीने आत्मानुं चारित्र मानी तेमां तन्मय थाय छे. पण भगवान आत्मा अत्यारे पण रागादि विकारथी
पार छे, अतीन्द्रिय ज्ञानवडे अनुभवमां आवे तेम छे, ते वडे धर्म अने शांति छे एम मानतो नथी. तेथी
अंदर आत्माने ओळखी तेमां तन्मय थतो नथी. आत्माना आश्रये चारित्र छे एटले पराश्रयनी द्रष्टि अने
राग तरफनुं वलण छोडवा माटे स्वसन्मुखनी द्रष्टि अने चारित्र जोईए, अतीन्द्रिय आनंदरूप चारित्रमां
तन्मय थवुं जोईए ते वात अज्ञानीने बेठी नथी तेथी आत्माना चारित्रमां जराय तन्मय थतो नथी. धर्मना
नामे रागने धर्म मानी ले छे, राग करवा योग्य माने छे माटे ते मिथ्या द्रष्टि ज रहे छे.
महाव्रत, दया, दान, भक्तिना भाव पाप नथी, मिथ्यात्व नथी पण ते शुभ राग छे. आस्रव तत्त्व छे,
बंधनुं कारण छे. तेने बंधनुं कारण न मानतां, धर्मनुं कारण अथवा आत्मानुं चारित्र ते माने छे तेथी तेने
नवे तत्त्वोनी भूल छे. जे भावे संसार फळे ते भावे मोक्ष अथवा मोक्षनो उपाय केम थाय?
“वित्यो काळ अनंत ते कर्म शुभाशुभ भाव” ते शुभाशुभने छेदे एवी दशा आत्मामां उत्पन्न करवी
तेनुं नाम मोक्षनो उपाय छे, जे अपूर्व छे.
प्रभु! तारी प्रभुताने तें ज मिथ्या मान्यतानी आडमां ढांकी राखी छे. अनंतवार धर्म माटे व्रत तप
कर्यां क्षमा–शान्ति एवी राखी के चामडी उतरडीने खार छांटवा छतां क्रोध न कर्यो, क्रोध, मान, माया, अने
लोभमां प्रबळ कारणो मळवां छतां न डग्यो एवा शुभ भाव राख्या, तीव्र क्रोधादि न कर्यां, छतां ते पर लक्षे
सहन करवानी लागणी शुभ राग छे धर्म नथी, जे भूतार्थ एटले सत्यार्थ धर्म नथी तेने खरेखर धर्म मानी
बेसे छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. ज्ञानीने एवा शुभराग आवे खरां पण आवो राग करवो जोईए एम ते जराय
मानता नथी, अने अज्ञानी तो आवो राग करवा जेवो छे एम आस्रवनी भावना भावे छे, तेथी ते ज्ञाता
स्वभावनो वैरी छे. आ अज्ञानी जीव पंच महाव्रत पाळतो होय तो तेमां तल्लीन रहे छे तेथी अरे......
अपूर्वपणुं शुं? आत्मामां निर्विकल्प अनुभव सहित श्रद्धा–ज्ञान चारित्र शुं ते विचारवाने लायक पण थतो
नथी.
ज्ञानीने नीचली दशामां राग आवे छतां तेनो आदर नथी, भावना नथी, रुचि नथी. सर्व प्रकारना
रागादिनो अंदरथी नकार (निषेध) वर्ते छे. ते जाणे छे के रागादि आस्रव तत्त्व छे तेथी ते मारूं स्वरूप नथी,
केमके हुं तो नित्य ज्ञानानंद जाग्रत स्वरूप छुं, रागादि तेनाथी विरूद्ध