Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : २२८
छे. तेने टाळवा पाडता नथी. स्वाश्रयमां लीनतानुसार ते टळी ज जाय छे एटले के उत्पन्न थता नथी. एवा
भानपूर्वक स्वरूपमां अंशे एकाग्रतानी भूमिका वधती जाय छे, तेमां वच्चे पंच महाव्रत, नग्नतादि २८ मूळ
गुणना शुभभाव आवे खरा, पण तेने ते खरेखर धर्म न माने पण ते पुण्यबंधनुं कारण छे, शुभास्रव छे
एम निःशंकपणे माने छे. जे धर्म नथी तेनाथी कोईने कोई प्रकारे आत्मकल्याणरूप धर्म थतो हशे तो? एवी
शंका धर्म जीवने होती नथी.
अनादिथी आ वात सांभळी नथी, तेनो परिचय कर्यो नथी. कर्ता भोक्ता, काम, भोग अने बंधननी
कथामां रुचि करी रह्यो छे ने तेने पोषण आपनारानो संग रुचे ज छे. काम, भोग अने बंधननी वातथी
जुदी जातनी वात–भगवान आत्मा रागथी अने परथी पृथक् ज्ञानानंद छे तेनी वात प्रीतिथी सांभळी नथी,
रुचिमां लीधी नथी.
एकेन्द्रिय, बे ईन्द्रिय आदि जीवने न मारवा, दया पाळवी, चोरी न करवी, ईन्द्राणी चळाववा
आवे तो पण न चळे एवा ब्रह्मचर्यनी प्रीति वगेरे शुभ राग छे. बहारथी जोनारने तेनो महिमा आवे
के अहाहा! धन्य....आ चारित्र पाळे छे पण भगवाने तेने आत्मानुं चारित्र कह्युं नथी, ते तो रागनुं
चारित्र छे.
शुभभाव करवा न करवानी वात नथी पण अज्ञानीने तेमां मिथ्या अभिप्राय, जे अनंत संसारनुं
कारण केम थाय छे के जेमां आत्महितरूप धर्म नथी तेने धर्म माने छे, जेवुं वस्तु स्वरूप छे तेवुं मानतो नथी
पण छे तेनाथी विरुद्ध माने छे, विरुद्धमां ज तन्मय थई रहे छे. ते भूलने समजीने, मिथ्या मान्यता छोडी,
साची ओळखाण माटेनी वात छे.
अहीं द्रव्यलिंगी शुभ रागमां आत्मानुं चारित्र माने छे, ते वात चाले छे. पांच समिति (ईर्या,
भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण, प्रतिष्ठापन) ने बराबर पाळे छे, त्रण गुप्त एटले मन–वचन कायाने
अशुभमां न जवा दे, पण ते मोक्षमार्ग नथी, संवर निर्जरा नथी, शान्तिनुं कारण नथी छतां अज्ञानवशे तेमां
आत्मानुं हित भाळे छे, केमके तेनी द्रष्टिमां फेर छे. आम ज्ञानी अज्ञानीनी मान्यतामां मोटो–ऊगमणो
आथमणो फेर छे.
अनादि अनंत ज्ञानादि शक्तिथी परिपूर्ण चैतन्यस्वरूप ते आत्मा छे. तेनाथी विरूद्ध ते मिथ्यात्व
अने पुण्य पाप छे. पुण्यपापथी संसार ज फळे छे, अहीं एटले आ लोकमां रखडवानुं मळे छे. लोकसंज्ञा वडे
स्वरूपमां निश्चय दशा अने सिद्धपदनी प्राप्ति थई शकती नथी.
एकवार वडिया (सौराष्ट्र) जतां तोरी नामे गामडामां रात्रि रहेवानुं बनेलुं, त्यां खेडूतो जीज्ञासाथी
मळवा आवेला, तेओए कह्युं के अगाध गति नामनुं पुस्तक अमारी पासे छे तेमां जे लख्युं छे तेनो गूढ
अर्थ अमने समजातो नथी. पछी तेमने ते वांचवा कह्युं तो तेमां लखेलुं हतुं के दया, दान, व्रत, तप, जाप,
नाम स्मरण, भक्ति, पूजा, यात्रा, भगवाननी स्तुति आदि बधानुं फळ अहीं छे, आ लोकमां जे देखाय छे ते
मळशे, पण तेनाथी आत्मानी साथे रहेवा योग्य शान्ति (धर्म) नहीं मळे, एटले के लोको जेने अने जेना
वडे धर्म माने छे ते धर्म नथी. आत्मशान्तिरूप धर्म ते बधाथी जुदी जातनो छे. ते शुं अने केम प्रगटे ते वात
ते पुस्तकमां नहोती.
अहीं तो आत्मा अने मलीनभावरूप आस्रव बेमां जे अनादिथी अज्ञान वडे कर्ता–कर्मबुद्धि छे ते
मटाडी आत्मा ज्ञाता छे, तेने ओळखी तेना आश्रये ज शान्ति थई शके छे, ने ते ज पोताना अधिकारनी
वात छे ए कहेवाय छे.
पाणीमां जेम शेवाळ छे ते पाणीनुं स्वरूप नथी पण मेल छे, तेम आ आत्मामां जेटली कंई
शुभाशुभ रागनी वृत्ति ऊठे–महाव्रतादिना शुभ भाव आवे ते पण आस्रव छे, मेल छे–माटे तेनाथी धर्म
माननारा अने मनावनारा पोताने आत्माने संसाररूपी ऊंडा खाडामां पाडनारा छे. तेनी दरेक वात
सम्यग्दर्शननो नाश करनारी छे.
धर्मनी परीक्षा बराबर अभ्यास वडे न करे अने संप्रदायनो वेश भाळे–बाह्यमां मानेली क्रिया देखे त्यां