Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 31

background image
आसो : २४८८ : १३ :
वंदन–आदर करवा लागे छे–तेने सत्यनी किंमत नथी. चिदानंद स्वरूपमां लीनतारूप श्रद्धानो आनंद अने
चारित्रानंद केवो होय तेनी वात तें सांभळी नथी.
हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म, परिग्रह अने तेना त्यागरूप अहिंसा आदि शुभ भाव बेय रागनी
वृत्ति छे ते तीव्र अने मंद कषाय होवाथी बंधना कारणो छे, धर्मनुं कारण नथी. व्यवहारमां पुण्यपापनो
भेद छे. निश्चयथी मोक्षमार्गमां बेयनो निषेध छे. प्रथम परिश्रमपूर्वक सत्य असत्यनो निर्णय करवो
जोईए. ‘तमेव सच्चं’ कही तत्त्वनिर्णय विना अनंत भव गुमाव्या.
भगवाने अहिंसा धर्म कह्यो छे, माहणो, मा हणो, एम कह्युं छे एम विचारवुं ते रागनो भाव छे,
रागद्वेषनी वृत्ति ते धर्म नथी पण अधर्म छे, पण तेनो अर्थ एम नथी के पुण्य–शुभभाव छोडी पापमां
प्रवर्तवुं, पण पुण्य पाप बेय संसार छे, तेनाथी पार पोतानो ज्ञानानंद स्वभाव छे तेमां श्रद्धा–ज्ञान अने
लीनता करवारूप धर्म छे, ते वीतरागभाव छे अने ते ज भगवाने कहेली खरी अहिंसा छे. “मा हणो”
एटले पोताना ज्ञाता द्रष्टा अने शान्ति स्वरूपनी रक्षा छे. बीजा जीवो प्रत्ये अनुकम्पा, अहिंसानो भाव ते
शुभराग छे एम जाणी, तत्त्व निर्णय अने वीतरागता करवा माटे भगवाने फरमाव्युं छे. त्रणे काळे आ
परमार्थ सत्य छे, तेनो निर्धार करे नहीं अने एकला व्यवहारने धर्म माने छे. ईर्या समिति, भाषा समिति,
एषणा, आदान निक्षेपण अने प्रतिष्ठापन समितिनुं पालन करवानो भाव ते शुभराग छे, तेने खरेखर
धर्म मानी बेठा छे, तेने भगवाने कह्युं छे के–ए शुभराग पण मंद कषायरूप अधर्म छे. केमके आत्मा
ज्ञानानंदमय वीतराग स्वभावी छे तेनाथी विरूद्ध भाव ते अधर्म छे, चैतन्यनी जागृतिने रोकनार छे–एम
जाणीने सत्यार्थ एवा मोक्षमार्गनी श्रद्धा करवा कह्युं छे. पापमां जवानुं कहेल नथी.
पुन्य पाप बेय पराश्रय छे, तेनी अपेक्षा विनानो आत्मा सदाय ज्ञानानंद स्वभावी छे तेमां श्रद्धा–
ज्ञान अने लीनता ते चारित्र छे ते खरी समिति छे, एने भगवाने भूतार्थ धर्म कहेल छे. ज्ञानीने छठ्ठा
गुणस्थान सुधी शुभभावरूप व्यवहार समिति पण होय पण अज्ञानी ते शुभ रागमां आत्मानो धर्म माने
छे, चारित्र माने छे, पण खरेखर एम नथी, कारण के राग तो विरोधभाव होवाथी आत्माने स्पर्शतो नथी.
बार प्रकारना तप–अनशन, ओछुं खावुं, वृत्तिपरिसंख्यान, रस परित्याग, विविक्त शय्यासन–
एकान्त वसवुं, कायकलेश, प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान अने कायोत्सर्ग एमां धर्मी जीवने
तो भेदज्ञानपूर्वक स्वसन्मुखताना बळथी जेटली आत्माना परिणामोनी शुद्धि थाय छे तेटला अंशे संवर,
निर्जरारूप धर्म छे अने जेटलो राग बाकी रहेल छे ते पराश्रय–बंधभाव छे, अधर्म छे तेने असदभूत
व्यवहारनयथी धर्म कहेवाय छे. अज्ञानीने सत्य शुं तेनो जराय निर्धार नथी, तेथी कंथचित् आत्मभावथी
अने कंथचित् शुभरागथी पण आत्माने हित थतुं हशे एम माने छे अथवा व्रत–समिति–गुप्तिना रागने
ज धर्म माने छे.
भावलिंगी मुनिने संयमना हेतुए आहार लेवानो भाव आवे छे ते शुभ आवे छे पण तेनी
नीचेनी दशावाळाने आहार लेवानो भाव ते पापभाव छे अने न लेवानो भाव ते पुण्यभाव छे, शुभराग
छे, पुण्यपाप बन्ने आस्रव छे, बंधना कारण छे.
वरसीतप करे तेमां कषाय पातळो पाडी सहन करे, शुभ भाव करे तो पुण्य छे. पुण्यने धर्म माने तो
मिथ्यात्वरूपी मोटुं पाप छे. मानादि माटे तप करे, तेनुं उजवणुं, (उद्यापन) करवुं ज जोईए, न करावो तो
मारूं तप लांघण कहेवाय एम मानी आबरू खातर उजवणुं करे तो पाप लागे स्त्रीने राजी राखवा खातर
धन खर्चे ते पण पाप छे.
प्रश्न:– खर्च न करे, तप न करे तेनां करतां करे छे तेटला अंशे तेओ भला छे ने?
उ:– ना. केमके तेने हित, अहित शुं, आत्मा शुं, तेनी खबर नथी, तेथी ते क्रोध–मानादि कषाय
पोषवा खातर ज बधुं करे छे, तेथी अज्ञानीना कोई कार्यने सारूं