Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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आसो : २४८८ : १प :
एवा पापीनी अहीं वात नथी, पण नवतत्त्वमां आस्रवतत्त्व जे बंधनुं कारण छे तेने जे संवर, निर्जरा, धर्म
माने छे ते मिथ्यात्व छे. ते मिथ्यात्व छोडी साची ओळखाण करवानी वात छे.
कह्युं छे के:–
‘आस्रव बंध विभाव करे रुचि आपणी
भूल्यो मिथ्यावास दोष दे पर भणी’
प्रभु! हुं मारा आत्मानी प्रभुताने भूली आस्रवमां–रागनी क्रियामां धर्म मानतो हतो पण ते अधर्म ज
हतो, धर्म तेनाथी जुदो छे तेनी मने खबर नहोती एम प्रथम नक्की करे, निर्णय करे तो सत्य सांभळ्‌युं कहेवाय.
पोताने रागनी रुचि होवाथी, मिथ्या उपदेशकोनी वात रुचि हती, एम मानता खोटुं संभळावनारने
दोष देवो ते योग्य नथी.
प्रथम राग घटाडवानुं कहो–पुण्य बतावो एम माननार मिथ्याद्रष्टि छे. प्रथम आत्मामां एकत्व अने
मिथ्यात्वादि आस्रवनी क्रियाथी विभक्त एवा सत्यनी वात सांभळे तो खरो! फरी आवी सत्य वात अनंत–
काळे केदि मळशे?
अनंतवार धर्मना नामे देहनी क्रियामां अने रागमां धर्म मानी बेठो–देह, वाणीनी क्रिया अने शुभ
अशुभ रागनी अपेक्षा रहित, पराश्रय एटले व्यवहारना पक्ष विना एकला चैतन्य स्वरूपमां श्रद्धा–ज्ञान
वडे एकाग्र थवुं ते ज धर्म छे, तेनाथी विरुद्ध ते अधर्म छे.
प्रायश्चित तपमां गणाय छे. अज्ञानी बाह्यमां निंदा, गर्हा करे–क्षमा मागे के हे गुरु! मने प्रायश्चित
आपो, उंदरडी पग तळे आवीने मरी गई वगेरे. ते देहनी क्रिया अनुसार पाप माने छे पण अंदरमां–
भावमां कषाय शक्ति केटली छे तेना कार्य अनुसार बहारमां निमित्त नैमित्तिक हिंसा व्यवहारथी मानवामां
आवे छे पण खरेखर पोताना भावमां मिथ्यात्व रागादिनी उत्पत्ति करवी तेनुं नाम हिंसा छे, तेनी
अज्ञानीने कांई खबर नथी.
ज्ञानीने व्यवहार प्रायश्चित्तनो शुभ भाव आवे पण तेने भूतार्थ धर्म मानता नथी, शुभाशुभ रहित
निर्मळ ज्ञानमां जेटला अंशे स्थिरता–शुद्धि वर्ते छे ते निश्चय प्रायश्चित्तरूप धर्म छे.
विनयतपमां–साचा–देव–शास्त्र–गुरु, भगवाननी प्रतिमा प्रत्ये बहुमान–विनय–नम्रता ते शुभ भाव
छे, पुण्य छे. निमित्त अने रागनी अपेक्षारहित आत्मामां ज एकाग्रपणे ढळवुं ते निश्चय विनय छे ते धर्म छे
त्यां शुभरागने व्यवहार धर्म कहेवाय छे.
अज्ञानीनो शुभराग मिथ्यात्व सहित होवाथी तेमां व्यवहारधर्मनो आरोप आवतो ज नथी.
प्रश्न:–देव, शास्त्र, गुरुनो विनय तेमां पुण्य ज छे? धर्म जराय नथी?
उत्तर:– ज्ञानी धर्मीने एवो शुभराग आवे छे. भूमिकानुसार एवो शुभराग आव्या विना रहे नहीं.
पण तेने आत्माने हित करनार एवो धर्म माने नहीं पण आत्मामां जेटली एकाग्रता, शान्ति–स्थिरता छे
तेटलो ज धर्म छे. रागादि स्वभाव नथी, औपाधिक भाव छे तेमां धर्म नथी छतां धर्म माने ते ज अनंत
संसारनुं मूळ कारण मिथ्यात्वनुं पाप छे. अज्ञानीने तेनी किंमत नथी, खबर ज नथी. साचा देव, शास्त्र, गुरु
प्रत्ये विनयभक्ति, साधर्मीनी सेवा वगेरेना शुभभाव आवे पण सम्यग्द्रष्टि तेने आत्मधर्मना खातामां न
खतवे, मोक्षमार्ग न माने. दरिद्रनारायणनी सेवा करीए, तेना आशीर्वाद मळी जाय तो सुखी थईए ए
मान्यता मिथ्या छे केमके कोई जीवने संयोगथी दुःख नथी पण पोताने भूली जवुं अने परथी सुखदुःख
मानवुं, देहमां एकता बुद्धि करवी तेनुं दुःख छे. शरीरनो सदुपयोग करी शकातो नथी–हुं बीजाने दुःख न दउं,
मदद करूं एवो शुभराग आवे खरो पण ते मोक्षमार्गरूप धर्म नथी.