Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : २२८
ज्ञान अने ज्ञेयरूप
सर्व द्रव्योनी स्वतंत्रता;
निमित्त नैमित्तिक संबंधनी पण स्वतंत्रता.
(समयसार गा. ३प६ थी ३६प उपर पू. गुरुदेवना प्रवचन सोनगढ अषाड वदी १)
–: दिव्यध्वनी वीर शासन जयंति:–

अहीं सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार चाले छे. आत्मा अनंत गुणोनो पिंड अभेद चिन्मात्र वस्तु छे.
आत्माने गुणभेदथी ओळखवा माटे ज्ञान, दर्शन, चारित्रवाळो कहेवामां आवे छे–खरेखर आत्मा ज्ञायक
ते ज्ञायक छे, ए निश्चय छे अने आत्मा स्वने जाणे छे एम भेद पाडवो ते व्यवहार छे, एटलो भेद
अखंड वस्तुमां नथी, स्व–स्वामी अंशरूप भेद श्रद्धाना विषयमां मान्य नथी.
आत्मा स्वभावथी ज परवस्तुना त्याग स्वरूपत्याज्यरूपे छे अर्थात् चारित्ररूपे छे, एवो भेद
निश्चयमां होतो नथी. एम कही निश्चयनी वास्तविक स्थिति जाणवी. प्रथम अभेद, निश्चय दर्शन ज्ञान
चारित्र संबंधी वर्णन कर्युं. हवे व्यवहारथी द्रष्टांत द्वारा समजावे छे के जेम खडी छे ते भींत, लाकडुं आदि
द्रव्यना स्वभावरूपे नथी तथा तेने पोताना सफेद स्वभावे परिणमावती नथी, ए वास्तविक छे एम
स्विकार कर्या पछी निमित्त नैमित्तिक संबंध केम छे ते व्यवहार–उपचार द्वारा बताववामां आवे छे.
खडी स्वयं सफेद स्वभावे परिणमे छे तेमां भींत तो निमित्त छे अने खडी जेने निमित्त छे एवा
भींत आदि परद्रव्यो छे तेओ स्वयं पोतपोताना स्वभावथी ज परिणमे छे, तो पण भींत आदिने खडी
श्वेत करे छे एम व्यवहार–उपचार करवामां आवे छे. खडीनी सफेदाई तेनाथी ज प्रसिद्ध छे छतां तेमां
भींत निमित्त अने भींतने सफेद थवामां खडी निमित्त एम परस्पर निमित्त नैमित्तिक संबंधरूप
व्यवहार करवामां आवे छे, तेम खरेखर दर्शन, ज्ञान गुणथी भरेलो आत्मा पोते परद्रव्यना
स्वभावरूपे परिणमतो ज नथी. जीव राग द्वेष, वाणी अने शरीररूपे थई जतो नथी, केमके ते चैतन्यथी
विरुद्ध ज्ञेय छे,–ते रूपे ज्ञान दर्शननुं थवुं अशक््य ज छे. दर्शन, ज्ञान पोताना कारणे ज निरंतर परिणमे
छे, ज्ञेयो तेना काळे, एना कारणे निरंतर परिणमे छे. निमित्त उपादान बेउनुं परिणमन अनादि अनंत
स्वतंत्र थई रह्युं छे.
कोई द्रव्यने कोई काळे पर द्रव्य, क्षेत्र, कोईनी राह जोवी पडे–परिणमननी धारा अटकी जाय
एम बनतुं नथी. कोईना कारणे कोईनुं परिणमन वहेलुं या मोडुं थई जाय एम पण नथी,–मात्र लोकमां
संयोगद्रष्टिवाळा व्यवहारथी कहे छे के आनाथी आनामां आम थयुं ते तो कहेवामात्र (कथनमात्र)
कारण छे.
ज्ञान पोताना काळे, पोताना कारणे परिणमे छे एवा ज्ञानपणे परिणमतो आत्मा तेना ज्ञान
परिणाममां पुद्गल द्रव्य तथा रागादि ज्ञेयपणे निमित्त छे, एवा पोताना ज्ञानगुणना स्वभावथी
भरेला