अहीं सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार चाले छे. आत्मा अनंत गुणोनो पिंड अभेद चिन्मात्र वस्तु छे.
ते ज्ञायक छे, ए निश्चय छे अने आत्मा स्वने जाणे छे एम भेद पाडवो ते व्यवहार छे, एटलो भेद
अखंड वस्तुमां नथी, स्व–स्वामी अंशरूप भेद श्रद्धाना विषयमां मान्य नथी.
चारित्र संबंधी वर्णन कर्युं. हवे व्यवहारथी द्रष्टांत द्वारा समजावे छे के जेम खडी छे ते भींत, लाकडुं आदि
द्रव्यना स्वभावरूपे नथी तथा तेने पोताना सफेद स्वभावे परिणमावती नथी, ए वास्तविक छे एम
स्विकार कर्या पछी निमित्त नैमित्तिक संबंध केम छे ते व्यवहार–उपचार द्वारा बताववामां आवे छे.
श्वेत करे छे एम व्यवहार–उपचार करवामां आवे छे. खडीनी सफेदाई तेनाथी ज प्रसिद्ध छे छतां तेमां
भींत निमित्त अने भींतने सफेद थवामां खडी निमित्त एम परस्पर निमित्त नैमित्तिक संबंधरूप
व्यवहार करवामां आवे छे, तेम खरेखर दर्शन, ज्ञान गुणथी भरेलो आत्मा पोते परद्रव्यना
स्वभावरूपे परिणमतो ज नथी. जीव राग द्वेष, वाणी अने शरीररूपे थई जतो नथी, केमके ते चैतन्यथी
विरुद्ध ज्ञेय छे,–ते रूपे ज्ञान दर्शननुं थवुं अशक््य ज छे. दर्शन, ज्ञान पोताना कारणे ज निरंतर परिणमे
छे, ज्ञेयो तेना काळे, एना कारणे निरंतर परिणमे छे. निमित्त उपादान बेउनुं परिणमन अनादि अनंत
स्वतंत्र थई रह्युं छे.
संयोगद्रष्टिवाळा व्यवहारथी कहे छे के आनाथी आनामां आम थयुं ते तो कहेवामात्र (कथनमात्र)
कारण छे.
भरेला