Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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आसो : २४८८ : १९ :
स्वभावना परिणामवडे निजशक्तिरूपे उपादानथी पोते परिणमे छे–पण पर ज्ञेयोपणे परिणमतो नथी
परपणे रागपणे उपजतो नथी–पण निरंतर पोताना कारणे पोताना भावपणे उपजे छे.
शुभाशुभराग, पुस्तक, वाणी ज्ञेयपणे निमित्त छे, ज्ञान ज्ञानना कारणे छे त्यां ज्ञाननी
योग्यताना प्रमाणमां ज्ञेयो निमित्त छे. ज्ञेयोना प्रमाणमां ज्ञान थतुं नथी. सामे ज्ञेय पदार्थ भिन्न चीज
छे ते ज्ञानमां ज्ञेय मात्र पणे निमित्त छे. निमित्त कांई ज्ञानने उपजावतुं नथी, उलटुं ज्ञेय थवामां
निमित्ते बने छे.
दया, दान, भक्ति आदिनो शुभ राग आवे छे ते ज्ञानने उत्पन्न करतुं नथी पण तेओ ज्ञानमां
ज्ञेय थवामां निमित्त छे. शुभरागवडे ज्ञान नथी अने ज्ञान वडे रागनुं परिणमन नथी, रागादि पण
ज्ञानथी भिन्नज्ञेय छे. ज्ञेयनुं ज्ञेयत्व नक्की करवामां ज्ञान निमित्त छे अने ज्ञाननुं ज्ञानत्व नक्की
करवामां ज्ञेय निमित्त छे एम परस्पर निमित्त नैमित्तिक भावोनो व्यवहार छे खरो–पण खरेखर कोईने
लीधे कोईनुं परिवर्तन नथी. लोकालोक छे ते केवळज्ञानमां निमित्त छे अने ते लोकालोकने ज्ञेयपणे
प्रसिद्ध थवामां ज्ञान निमित्त छे. एक समयनी केवळज्ञानपर्यायमां त्रणेकाळवर्ती सर्व विश्व ज्ञेय तरीके
निमित्त छे.
अहीं एक समयमां पूर्ण ज्ञान छे तेमां आखुं विश्व निमित्त होवुं जोईए अने ज्ञाननुं परिणमन
ज्ञेयनी प्रसिद्धिमां निमित्त छे. बेउ पोतपोतानी वर्तमान परिणाम शक्तिथी ज परिणमे छे. ज्ञान बीजाने
परिणमावनार नथी तेमज बीजाथी परिणमे एवुं नथी. ज्ञान ज स्वयं प्रत्येक समये ज्ञानपणे ज्ञातापणे
उपजे छे, तेमां ज्ञेयो तेना स्वकाळे निमित्त छे, ने ते ज्ञेयोने ज्ञेयपणे प्रसिद्ध करवामां ज्ञान निमित्त छे.
जेम अरीसो अने नाळीएरादि अरीसानी स्वच्छतामां बाह्यस्थित द्रव्यो निमित्त छे अने
सामेना पदार्थोनी अवस्था बताववामां अरीसानी स्वच्छता निमित्त छे, पण कोईना कारणे कोईनी
अवस्था उपजे छे एम नथी–तेम ज्ञाननी पर्याय शास्त्रने जाणे छे तेमां शास्त्र निमित्त छे पण
शास्त्रदिथी ज्ञाननी पर्याय थई नथी. जो निमित्तोथी ज्ञाननी पर्याय उत्पन्न थाय तो निमित्तना
स्थानमां निमित्त न रह्युं–उपादान थई गयुं. निमित्तने उपचार (व्यवहार) कारण क््यारे कहेवाय के
ज्ञान जे ज्ञेयने जाणवारूपे परिणमे ते ज्ञेयने ज्ञाननुं निमित्त कहेवाय, अने ज्ञेयने ज्ञेयपणे प्रकाशवामां
ज्ञान निमित्त कहेवाय पण आनुं परिणमन छे माटे बीजानुं परिणमन छे एम नथी–ज्ञेय छे माटे ज्ञान
छे एम नथी.
जीव घटपटादिने देखी राग करे तो ते ज्ञेयो राग थवामां निमित्त कहेवाये निमित्तने कारणे राग
थयो एम कहेवुं ते असत्य कथन छे, उपचाररूप व्यवहार छे.
सामे जेवो पदार्थ होय तेवुं ज ज्ञान थतुं होय तो बधाने साचुं ज्ञान थवुं जोईए पण तेम नथी.
ज्ञान थाय छे पोतानी वर्तमान योग्यतारूप स्वसामर्थ्यथी तेमां सामेना विषयो ज्ञेयपणे निमित्त छे
एटलो ज्ञेय–ज्ञानने व्यवहार छे पण जीवने पूजा, भक्ति तथा श्रवणनो राग आव्यो माटे ज्ञान थयुं
एम नथी; अने ज्ञानने कारणे राग अथवा ईच्छा थई एम नथी. रागादिने तेपणे ज्ञेय बनाववामां
ज्ञान निमित्त छे. ज्ञानमां ज्ञेय निमित्त छे, पण कोईना निमित्तद्वारा बीजामां फेरफार थाय एम नथी. जो
निमित्तवडे उपादाननुं कार्य थाय तो निमित्त मान्युं कहेवाय एम नथी. केमके चैतयितादि (जीवादि)
कोई अन्यने परिणमावी शकता नथी अने कोई कोईथी परिणमतुं नथी.
जेम भीतने सफेदरूप थवामां खडी निमित्त छे तेम ज्ञान छे ते ज्ञेयने ज्ञेयपणे प्रगट थवामां
निमित्त छे एथी ज्ञान पुद्गलना स्वभावने जाणे छे पण पररूपे थाय, पररूपे उपजे एम कदि बनतुं
नथी. माटे परनुं कर्तापणुं कहेवुं ते मात्र निमित्त बताववा पुरतो व्यवहार छे. बे भिन्न द्रव्योनी
पर्यायमां भींत–खडीना