Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 31

background image
: २० : आत्मधर्म : २२८
द्रष्टान्ते परस्पर निमित्त कहेवानो व्यवहार छे तेम आत्माश्रद्धादर्शन शक्तिथी भरेलो छे तेने निमित्तनुं
ज्ञान कराववा माटे नवतत्त्वना भेद अने देव, शास्त्र, गुरु तथा छद्रव्योनी श्रद्धा करनारो कहेवुं ते
व्यवहार नय छे तेमां श्रद्धावा योग्य छ द्रव्यो तथा नव तत्त्वोना विकल्प निमित्त छे. निमित्त
निमित्तपणे छे पण तेनाथी श्रद्धा तथा दर्शन उपयोगरूप पर्याय परिणमे एम नथी. कारणके जीव पोते
ज दर्शनज्ञानादि गुणनी पर्यायरूपे परिणमे छे, पोताना ज्ञानादि कार्यने ज प्रगट करे छे, तेमां ज्ञेयो तथा
श्रद्धाना बाह्य विषयो निमित्त छे, पण ते कोई जीवनी श्रद्धादि पर्यायोना उत्पादक नथी.
दर्शनमोहनो उपशम, क्षयोपशम अथवा क्षय थाय तो सम्यग्दर्शन प्रगट थाय एम नथी.
देवदर्शन, वेदना जाति स्मरण आदि वडे सम्यग्दर्शन थाय एम शास्त्रमां लख्युं छे ने? तेनो अर्थ–ए तो
निमित्त मात्र छे एम समजवुं. जीव पोते निर्मळ श्रद्धा ज्ञानरूपे परिणमे तो तेने निमित्त कारण
(व्यवहार–उपचार कारण) कहेवाय छे. निमित्त छे माटे नैमित्तिक छे एम नथी. वस्तु स्वयंसिद्ध छे,
पोताथी छे, परथी नथी, तेम वस्तुना गुण अने तेनी अनेक पर्यायो पण स्वयंसिद्ध छे. पोताथी छे,
परथी नथी ए साची वात छे छतां पर वस्तु तेने निमित्त छे एम कहेवुं ते निमित्तनुं ज्ञान कराववा
माटे व्यवहारनयनुं कथन छे.
छ द्रव्य नव तत्त्व, साचा देव, शास्त्र, गुरु व्यवहार–श्रद्धाना विषयपणे ज्ञेयपणे निमित्त छे.
ज्यारे आ आत्मा परमावगाढ सम्यग्दर्शनपणे तथा केवळज्ञानपणे परिणमे–उपजे छे त्यारे समस्त
लोकालोक निमित्त छे ने छ द्रव्यस्वरूप आखुं विश्व तेने निमित्त छे. कोई कोईना कारणे नथी. दरेक
पदार्थ स्वयंसिद्धता साबीत करे छे.
अपूर्ण ज्ञान छे त्यां ज्ञानीने निश्चयथी पोतानो आत्मा ज आश्रय छे, अने व्यवहार श्रद्धा
ज्ञानमां सामे छ द्रव्य वगेरे तथा शुभ रागादि निमित्त छे, तेओ तो तेना भावे (–तेना स्वरूपे) ऊपजे
छे तेने तेरूपे प्रसिद्ध करवामां ज्ञान निमित्त छे. बेउने निश्चयथी कांई संबंध नथी पण परस्पर निमित्त
पणानो व्यवहार छे ते अरीसानुं द्रष्टांत आपी समजावेल छे.
आत्मा ज्ञानभावे परिणमे छे, सामे ज्ञेय ज्ञेयपणे निमित्त छे. निमित्त निमित्तपणे परिणमे छे
तेमां ज्ञान प्रकाशकपणे निमित्त छे. श्रध्धेयने श्रद्धनारपणे निमित्त छे, पर परने लावे मेळवे कोण?
परस्पर निमित्त छे एम कहेवुं ते व्यवहारथी छे. तेमां कोईनुं पराधीनपणुं बतावेल नथी.
दवानुं द्रष्टांत–दवा अने कागळनुं पडीकुं तेना कारणे तेना काळे तेना स्वभावे परिणमे छे, ते
ज्ञानना विषयरूप ज्ञेय थवामां ज्ञानने निमित्त छे एन ज्ञान तथा तेनी श्रद्धारूपे परिणमता ते भावमां
दवा वगेरे निमित्त छे पण कोईना कारणे कोईनुं कार्य नथी, कोईना लीधे कोईमां फेरफार थतो ज नथी,
छतां परस्पर निमित्तपणुं कहेवुं ते व्यवहार छे.
तेम भगवान आत्मा चेतयिता ते तेना श्रद्धाज्ञान स्वभावे परिणमे–उपजे छे तेमां छ द्रव्य, नव
तत्त्व निमित्त छे पण जो निमित्तना कारणे जीव श्रद्धा ज्ञानरूपे परिणमे तो बे तत्त्वो जुदा न रहे अने
निमित्त निमित्तपणे न रहे. सर्वज्ञकथित ज्ञेयो जेम छे तेम जाणे, माने तो ते निमित्तपणे साचा छे अने
ज्ञान ज्ञेयने ज्ञेयपणे प्रगट करवामां निमित्तपणे साचुं छे. जो ज्ञेयमां छ द्रव्य खरेखर छे एम न माने,
न जाणे, काळद्रव्यनी कोई स्वतंत्र सत्ता नथी (काळद्रव्य ते उपचार ज छे) एम कोई माने तो तेनुं
ज्ञान खोटुं अने ज्ञेय पण खोटुं छे.
आत्मा सदाय दर्शन–श्रद्धा ज्ञान स्वभाव सहित होवाथी पोताना स्वभावथी देखे जाणे अने
श्रध्धे छे. निश्चयथी पोताने देखे–जाणे श्रध्धे छे, परने जाणे छे, देखे छे एम संबंध बताववो ते
व्यवहार छे.