द्रष्टान्ते परस्पर निमित्त कहेवानो व्यवहार छे तेम आत्माश्रद्धादर्शन शक्तिथी भरेलो छे तेने निमित्तनुं
ज्ञान कराववा माटे नवतत्त्वना भेद अने देव, शास्त्र, गुरु तथा छद्रव्योनी श्रद्धा करनारो कहेवुं ते
व्यवहार नय छे तेमां श्रद्धावा योग्य छ द्रव्यो तथा नव तत्त्वोना विकल्प निमित्त छे. निमित्त
निमित्तपणे छे पण तेनाथी श्रद्धा तथा दर्शन उपयोगरूप पर्याय परिणमे एम नथी. कारणके जीव पोते
ज दर्शनज्ञानादि गुणनी पर्यायरूपे परिणमे छे, पोताना ज्ञानादि कार्यने ज प्रगट करे छे, तेमां ज्ञेयो तथा
श्रद्धाना बाह्य विषयो निमित्त छे, पण ते कोई जीवनी श्रद्धादि पर्यायोना उत्पादक नथी.
निमित्त मात्र छे एम समजवुं. जीव पोते निर्मळ श्रद्धा ज्ञानरूपे परिणमे तो तेने निमित्त कारण
(व्यवहार–उपचार कारण) कहेवाय छे. निमित्त छे माटे नैमित्तिक छे एम नथी. वस्तु स्वयंसिद्ध छे,
पोताथी छे, परथी नथी, तेम वस्तुना गुण अने तेनी अनेक पर्यायो पण स्वयंसिद्ध छे. पोताथी छे,
परथी नथी ए साची वात छे छतां पर वस्तु तेने निमित्त छे एम कहेवुं ते निमित्तनुं ज्ञान कराववा
माटे व्यवहारनयनुं कथन छे.
लोकालोक निमित्त छे ने छ द्रव्यस्वरूप आखुं विश्व तेने निमित्त छे. कोई कोईना कारणे नथी. दरेक
पदार्थ स्वयंसिद्धता साबीत करे छे.
छे तेने तेरूपे प्रसिद्ध करवामां ज्ञान निमित्त छे. बेउने निश्चयथी कांई संबंध नथी पण परस्पर निमित्त
पणानो व्यवहार छे ते अरीसानुं द्रष्टांत आपी समजावेल छे.
परस्पर निमित्त छे एम कहेवुं ते व्यवहारथी छे. तेमां कोईनुं पराधीनपणुं बतावेल नथी.
दवा वगेरे निमित्त छे पण कोईना कारणे कोईनुं कार्य नथी, कोईना लीधे कोईमां फेरफार थतो ज नथी,
छतां परस्पर निमित्तपणुं कहेवुं ते व्यवहार छे.
निमित्त निमित्तपणे न रहे. सर्वज्ञकथित ज्ञेयो जेम छे तेम जाणे, माने तो ते निमित्तपणे साचा छे अने
ज्ञान ज्ञेयने ज्ञेयपणे प्रगट करवामां निमित्तपणे साचुं छे. जो ज्ञेयमां छ द्रव्य खरेखर छे एम न माने,
न जाणे, काळद्रव्यनी कोई स्वतंत्र सत्ता नथी (काळद्रव्य ते उपचार ज छे) एम कोई माने तो तेनुं
ज्ञान खोटुं अने ज्ञेय पण खोटुं छे.
व्यवहार छे.