Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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आसो : २४८८ : २१ :
परस्पर पर्यायमां निमित्तपणानो व्यवहार छे पण कोई बीजाना कार्य माटे कर्ता छे एम नथी. द्रव्यमां गुण
त्रिकाळ छे, कोई गुण प्रगट थतो नथी पण तेनी पर्याय एक समय पूरती नवी नवी प्रगट थाय छे. द्रव्य सत्
गुण सत् अने तेनी दरेक पर्यायो पण सत् छे, तेमां स्व–स्वामी अंशनो भेद पाडवो ते पण व्यवहार छे, पण
तेनाथी शुं साध्य छे? पर अने भेदना लक्षे तो रागनी उत्पत्ति थाय छे.
जेम श्रद्धा–दर्शन अने ज्ञाननुं स्वयंसिद्धपणुं बताव्युं तेम हवे चारित्रमां पण समजवुं. आत्मा
ज्ञानदर्शन चारित्रस्वभावथी भरेलो अने पुण्य पाप, शरीर अने शरीरनी क्रिया–तेना अभाव स्वभावपणे
छे. पर्यायमां राग दशा छे तेटला अंशे परद्रव्यना अवलंबनरूप राग आवे खरो पण आत्मा परद्रव्य साथे
तन्मय थतो नथी. परनुं ग्रहण त्याग आत्मामां नथी, आत्माने आधीन नथी. आत्मा, रागादि, पुण्य पाप
तथा देहनी क्रिया थाय तेना अभाव स्वभावपणे छे, अने अखंड श्रद्धा–ज्ञान–शान्तिमय समरसी आनंदथी
भरेलो छे. एम अंतरंगमां प्रकाशमान स्वभाव तरफ जोनार निश्चय नयथी आत्मा स्वयं अपोहन स्वरूप
छे, रागनो अने परनो त्याग करनार कहेवो, परनुं आचरण करनार कहेवो ते तो आरोपथी (व्यवहारथी)
कथन मात्र छे.
“भेद ज्ञान साबु भयो समरस निर्मळ नीर,
धोबी अंतर आतमा धोवे निज गुण चीर”
स्वसन्मुखतारूप भेदविज्ञानी आत्मा वीतरागभावे परिणमतो परद्रव्य अने रागादिना अभाव
स्वभावे उपजे छे, तेने व्यवहारथी त्याग करनारो कहेवाय छे. निराकूळतारूप शान्ति क््यांथी आवे छे?
भेदविज्ञान पूर्वक अंदर एकाग्रताथी प्रगटे छे. बहारथी शान्ति नथी. कोई जीव परनुं ग्रहण त्याग तथा
शरीरनी क्रिया व्यवहारथी पण करी शकतो नथी, पण ज्ञेयपणे निमित्तरूप थती देहनी क्रिया अने रागनी
क्रियाने ते रूपे जाणवुं ते व्यवहार छे. आत्मानो व्यवहार तेनी पर्यायमां ज होय भिन्नवस्तुमां न होय.
प्रश्न– भगवाननी पूजा भक्ति तथा नवधा भक्ति पूर्वक मूनिने आहारदान देवानो शुभ भाव ते शुं
पर द्रव्यना आधार विना बनतो हशे?
समाधान–निमित्तनी मुख्यताथी व्यवहारना कथन थाय तेने ए जातनो राग ए भूमिकावाळाने आवे
खरो पण निमित्तना लीधे जीवने राग थाय अने रागना कारणे शरीरनी क्रिया अने धर्म थाय एवुं त्रण
काळमां नथी.
आत्मा शरीर अने वाणीनो स्वामी नथी. धर्मीजीव शुभ ईच्छानो पण स्वामी नथी अने शरीरनी
क्रिया असद्भूत व्यवहारनयथी पण करी शकतो नथी. मात्र निमित्तनुं ज्ञान कराववा तेवुं कथन करवानी रीत
छे, ते टाणे रागने अने रागना निमित्तने ज्ञेयपणे जाणे छे एम कहेवा जेटलो तेनी साथे व्यवहार संबंध छे.
पण तेथी कांई राग अने देहनी क्रियारूपे आत्मा परिणमे छे एम नथी. रागनो भाग आस्रव तत्त्व छे ते रूपे
आत्मा थतो नथी. नग्न शरीररूपे तथा मुनि अवस्थामां होवा योग्य २८ मूळ गुणना रागपणे आत्मा
परिणमतो नथी अर्थात् तेने पोताना निश्चय चारित्र स्वभावमां लावतो नथी पण ते काळे पोताना ज्ञान
आनंदमय वीतराग स्वभावपणे उपजतो थको आत्मा व्यवहार त्यागना विकल्पने जाणे छे एम कहेवुं तेटलो
ते भूमिकानो व्यवहार छे, बाकी परमार्थे आ आत्माने रागनो त्याग करनार कहेवो ते नाम मात्र छे. आम
अस्तिस्वभावथी स्वतंत्रता यथार्थता अने वीतरागता ग्रहण करवानुं महावीरप्रभुए वीरशासन जयंतिदिने
फरमाव्युं छे
केवळज्ञानना दिव्यसंदेशा आपनार, केवळीना विरह भूलावनार सत् द्रष्टिवंत
श्री गुरुदेवनो जय हो. ज्ञानामृतदाता वीरपुत्र श्री सद्गुरुदेवनो जय हो.