Atmadharma magazine - Ank 228
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : २२८
अरे आत्मा!! तारी अगाधगति होवा छतां
भेदज्ञानथी
सुखधाममां निवास कर
मोक्षमार्ग प्रकाशक अ० ७ उपर पूज्य श्री गुरुदेवनुं प्रवचन
(श्री पोपटलालभाई मोहनलाल वोराना मकानना वास्तु प्रसंगे
आजनुं सवारनुं व्याख्यान तेमने त्यां थयुं हतुं)
वीर संवत २४८८ श्रावण सुद १प, ता. १प–८–६२
मोक्षमार्ग कोने कहे छे. ते वात बोले छे. धर्म–अधर्म, हित–अहित शुं छे ते अनादिथी अज्ञानीए
जाण्युं नथी. सर्वज्ञ वीतरागे त्रणकाळ–त्रणलोकने एक समयमां जाण्या. तेमनी वाणीमां एम आव्युं के
हे आत्मा! तारूं स्वरूप चिदानंद छे, ते तारामां ज छे, बहारथी आवतुं नथी. सत् नित्य–चित्–ज्ञान
अने आनंदए तारुं असली स्वरूप छे, तेने जाण्या विना बहारमां पुण्यमां तथा धनादिमां तारी रुचि
थई छे पण दयादानना भाव राग छे, तेनाथी तो बंधन छे, तेनाथी धर्म नथी. सत्य समज्या विना
जीव अनादिकाळथी दुःखी थई रह्यो छे. नोकर्म एटले शरीर, द्रव्यकर्म एटले ज्ञानावरणादि जडकर्म तथा
शुभाशुभ रागरूप भावकर्म तेनाथी तुं भिन्न छे, तेने भूली परने पोतानुं मानवुं ते मिथ्यात्वरूपी
पापनो भाव छे. हिंसा, भोग, धन, कमावुं ते पापनो भाव छे, तेनाथी चैतन्य भिन्न छे. धर्मी–ज्ञानीने
पण दया, दान, पूजा, भक्ति, जात्राना भाव थाय छे पण ते पुण्य छे, आस्रव छे, विकार छे, पवित्र धर्म
नथी. अज्ञानी मोक्षने देखादेखीथी उत्कृष्ट कहे छे के अहो! मोक्षमां सुख छे, केटलुं के स्वर्गना ईन्द्रोना
सुखथी पण अनंतगुण सुख छे–तो ज्ञानी कहे छे के तेने तत्त्वनी खबर नथी केम के स्वर्गनुं के शेठाईनुं
सुख छे ते तो आकुळता ज छे. पूर्वे पुण्यकर्म बंधायेलुं तेना उदयकाळे मळी सामग्री, तेमां सुखनी
कल्पना करी ते झेर छे, दुःख छे, ते महाविपरीतता छे. ज्यां सुख नथी त्यां अज्ञानी सुख माने छे, ने
छे तेमां मानतो नथी.
जेम काचा चणामां मीठास शक्तिरूपे भरी छे, प्रगट नथी. वळी ते चणाने वावो तो ऊगे पण
तेने शेकी नाखो तो मीठास प्रगट थाय अने वावो तो ऊगे नहि. प्राप्तनी प्राप्ति थाय छे. तेम
आत्मामां सुख छे पण अज्ञानी तेने जाणतो नथी. स्वर्गना देवोने जे सुख छे तेनाथी सिद्धमां
अनंतगणुं सुख अज्ञानी कहे छे. स्वर्गनां मानेलां सुख तो आकुळतामय होवाथी झेर छे. तेनाथी १००
टका विरुद्ध अतीन्द्रिय आत्मिक सुख छे. संसारना रागनी जातथी अंतर आनंदनी जात ज जुदी छे.
आत्मा आनंदनो कंद छे तेनी प्रतीति करी अंदरमां झूकाव करे तो तेनो स्वाद आवे. पुण्य–पापमां जे
लाभ माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे.
तोरी गाममां अगाधगति नामनुं पुस्तक लईने त्यांना पटेल आव्या, कह्युं के अमने आमां
सहज पडती नथी. एमां लखेल हतुं के कोई पण प्राणी जप, तप, दया, दान, स्मरण, पूजा, सेवा, करे
तो करो पण तेनाथी मोक्ष नहि मळे केमके ते बधी वृत्ति रागनी छे, तेनुं फळ अहीं मळशे, एटले के
तेनाथी संसार फळशे.