आसो : २४८८ : ७ :
पुण्यमां सुख अने सुखनुं साधन माननारने ज्ञानी कहे छे के ते अपवित्र आस्रवतत्त्व छे,
तेनाथी संवर, निर्जरा के मोक्षरूप पवित्र भावनी जातज जुदी छे, तेनी तने खबर नथी, तेथी तुं
स्वर्गना देवोना सुख करतां मोक्षसुख अनंतगणुं कहे छे. संसारना सर्व विभावथी, पूर्ण निर्विकार
मोक्षतत्त्वनी जात जुदी ज छे.
भगवान आत्मामां परिपूर्ण ज्ञानानंद शक्ति भरी छे, देहथी भिन्न दरेक आत्मा पोताना पूर्ण
ज्ञानानंद सहित छे. तेमां एकपणानी द्रष्टि अने एकाग्रताना बळथी शुद्धता प्रगट थाय छे. ते शुद्ध
अंशथी बंधन थतुं नथी. बंधन तो शुभाशुभ रागद्वेष अने मोहथी थाय छे.
अज्ञानी स्वर्गना विषय संबंधी सुखाभासनी अने आत्मिक निराकुळ मोक्षसुखनी एक जाति
माने छे पण ते एक नथी. पण जेम तीर्थंकर भगवानना अतिशय सुंदर शरीरनी प्रभाने सूर्यनी उपमा
देवाय छे तेम लोकमां ईन्द्रादि देवोनां सुखनो महिमा छे तेनाथी जुदी जातनुं अने तेनाथी अनंतगणुं
सुख मोक्षदशामां छे–एम उपमा आपी तेनी अज्ञानीने खबर नथी. स्वर्गना कलेशवाळा सुखनुं कारण
शुभराग छे अने मोक्षसुखनुं कारण तो वीतराग भाव छे.
अहीं प्रश्न–तमे एम केम कहो छो के अज्ञानीनी श्रद्धामां स्वर्गसुखनी जाति अने मोक्षसुखनी
जाति एक छे?
उत्तर:– हा, तेओ व्रत, दया, दान, पूजा, भक्ति आदिना शुभ भाव छे तेनुं फळ स्वर्गसुख माने
छे अने ते ज भावनुं फळ मोक्षसुख माने छे. जेने थोडुं पुण्य साधन होय तेने स्वर्ग मळे अने घणुं
साधन होय तेने मोक्ष मळे एम ते भ्रमथी माने छे पण श्रद्धामां क््यां भूल छे तेनी तेने खबर नथी.
“द्रव्य क्रिया रुचि जीवडा, भाव धर्म रुचि हीन,
उपदेशक पण तेहवा, शुं करे जीव नवीन!”
पुण्यमां आत्महितरूप धर्म माने तो अनंतानुबंधी अने दर्शनमोहनुं महान पाप थाय छे. पुण्यनी
क्रिया तथा देहनी क्रियाथी आत्मानो धर्म माने तेने अतीन्द्रिय अरागी ज्ञानानंदनो अनुभव शुं तेनी जरा
पण खबर नथी. शुभरागरूप व्यवहारथी हळवे हळवे धर्म थशे, परंपराए मोक्ष थशे एम अज्ञानी माने
छे अने तेवुं ज मनावनारा पण तेने मळी गया, एटले पुण्यथी अने जडनी क्रियाथी धर्म मानवानी तेनी
श्रद्धा द्रढ थई गई. पुण्य करतां करतां धर्म पण थाय अने स्वर्गनां सुख पण मळे एम अज्ञानी माने छे
पण हित–अहितनां कारण अने तेनां फळनी जात तद्न जुदी छे एवो निर्धार करतां नथी.
जेम हजारो मण अनाज पाके त्यां वच्चे राडा न होय एम न बने. हा, राडा थाय पण दाणा न
थाय एम बने, परंतु दाणा पाके त्यां राडा तो होय ज. सारो खेडुत राडा खातर बीज वावे नहीं तेम
धर्मी जीव तो पोतानुं स्वरूप पुण्यपाप रागथी भिन्न जाणी, वीतरागी द्रष्टि अने चारित्र प्रगट करे छे,
तेमां मोक्षनां कणसलां पाके छे. पण जेनी द्रष्टि पुण्य उपर छे तेने संसार ज फळे छे.
परलक्षे राग मंद थई शके पण राग टळे नहि. रागमंद करे तो पुण्य थाय, धर्म न थाय. पैसाथी
पुण्य न थाय. लोभ मंद करे तेटलुं पुण्य थाय. जो पैसा आपवाथी धर्म थाय तो निर्धनने रडवुं पडे, पण
एम नथी. शरीरथी तो आत्मानो धर्म थतो नथी, परंतु शुभरागथी पण धर्म नथी. आत्मा अनंत
गुणोनो पिंड छे तेम भेदज्ञान सहित निर्विकल्प श्रद्धा–ज्ञान अने एकाग्रता करे ते धर्म छे. राग बाकी
रह्यो ते धर्म नथी पण अधर्म छे. शुभराग पण चारित्रनो दोष छे, ते आत्मानुं निवासस्थान नथी.
वास्तु शेमां करवुं? के भगवान आत्मा चिदानंद अनंतगुणनुं धाम छे तेमां वसवुं, अतीन्द्रिय ज्ञान
आनंदथी पूर्ण स्वरूपनी प्रतीति करी तेमां वसवुं ते