Atmadharma magazine - Ank 228a
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >

Download pdf file of magazine: http://samyakdarshan.org/DebZ
Tiny url for this page: http://samyakdarshan.org/GbgReLJ

PDF/HTML Page 17 of 38

background image
: ब्रह्मचर्य अंक : : ७ :
भाव पूर्वक आरति उतारी हती. आम आखो दिवस उल्लास पूर्वक पसार थयो हतो.
आ प्रसंग निमित्ते पू. गुरुदेव भादरवा सुद ६ ना रोज कुमारिका ब्रह्मचर्य आश्रममां आहार
माटे पधार्या हता. अने चौदे बेनोने आहारदाननो लाभ मळ्‌यो हतो. ते वखतनुं वातावरण घणुं ज
आनंदजनक हतुं. भादरवा सुद प ना रोज चौदे बेनोना वालीओ तरफथी श्रीफळनी लाणी थई हती,
अने सुद ६ ना रोज नौकारशी करवामां आवी हती, जेथी मंडळ उपरांत गामना जैन भाईओ पण
जमवा आवेल हता.
पू. गुरुदेवश्रीना महान प्रभावना उदये आवा शुभ अवसरोनी वारंवार प्राप्ति हो अने ए रीते
तेमना मार्गदर्शन अने मुक्तिना संदेश वडे जगतना अनेक भव्य जीवोनुं कल्याण हो–एवी वारंवार भावना
पूर्वक विरमीए छीए.
चौद बेनोना ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा प्रसंगे धर्मप्रेमी विद्वान पंडित
भाईश्री हिंमतलाल जेठालाल शाहनुं विद्वता भरेलुं भाषण.
आजनो प्रसंग महा शुभ प्रसंग छे. एकी साथे १४ कुमारिका बहेनो असिधारा जेवी आजीवन
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करे, एवो महान प्रसंग जैन तेम ज जैनेतरोमां घणा लांबा समयथी भाग्ये ज
बन्यो हशे. आ विलासी उच्छृंखलताना काळमां मानवो पण मुश्केल पडे एवो आ प्रसंग छे. परम पूज्य
गुरुदेवना प्रतापे अनेक प्रकारनी प्रभावना थई रही छे, तेमांनो आ एक प्रकार छे. गुरुदेव पोते
आत्मअनुभव करी मुमुक्षुओने ज्ञानमूर्ति आत्मानां दर्शन करवानो एकधारो पावनकारी उपदेश आपी रह्या
छे. ते ज्ञानमूर्तिनां दर्शन करी भवसागर केम तरीए? एवी भावनावाळा जीवोने ते दर्शन न थाय त्यांसुधी
तेनी ज गडमथल करतां करतां अनेक प्रकारना शुभ राग आवे छे. गुरुदेवना पुनित प्रतापे गामोगाम
अनेकानेक जीवो ज्ञानमूर्ति आत्मानी प्राप्ति अर्थे आध्यात्मिक वांचन करे छे, विचार करे छे, मंथन करे छे,
आत्मस्वरूपनी झंखना करे छे. आ एक ऊंचा प्रकारनो शुभ भाव छे. वळी गुरुदेवे उपदेशेला सर्वज्ञ
स्वभावी आत्मानो अनुभव न थाय, त्यांसुधी अनेक जीवोने सर्वज्ञ जिनेश्वरदेवो प्रत्ये भारे भक्ति–
उल्लासनो प्रमोदभाव आवे छे. आ रीते गुरुदेवना प्रतापे उल्लासपूर्ण भक्तिनो पण भारे प्रवाह वह्यो छे.
‘स्त्री–पुत्र धनादिथी भिन्न एवो तुं परम पदार्थ छे एवा गुरुदेवना स्वानुभव युक्त उपदेशथी अनेक जीवोने
धननी तृष्णा घटी अनेक गामोमां भव्य जिनमंदिरोनां निर्माण थयां छे. वळी गुरुदेवना निमित्ते जुदा जुदा
जीवोने योग्यतानुसार जुदा जुदा प्रकारना सद्गुणो केळवाया छे. गुरुदेवना शुद्ध उपदेशना प्रतापे आनंदधाम
आत्मानी ओळखाणनो यथाशक्ति प्रयत्न करनार जीवोमां केटलाक पात्र जीवोने वैराग्य प्रगटी ब्रह्मचर्य–
अंगीकारना शुभ भाव पण आवे छे. ए रीते अनेक जीवोए सजोडे ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे, अने केटलाक
तो आजन्म ब्रह्मचारी रह्या छे.
‘आत्मानुभव पहेलांनुं ब्रह्मचर्य मात्र शुभभाव ज छे एम पूज्य गुरुदेव दांडी पीटीने जाहेर करे छे.
आ कुमारिका बहेनो पण तेने शुभ भाव ज जाणे छे. तेनुं फळ मुक्ति नथी, मुक्ति तो शुद्ध भावथी ज प्रगट
थाय छे–एम जाणतां छतां तेमणे आजीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे. घणा लोको तो ब्रह्मचर्यनुं फळ मोक्ष ज
माने छे, अने कहे छे के एक भवपर्यंत ए असिधारा जेवुं दुःखमय ब्रह्मचर्य गमे तेम करीने पाळी लईए, तो
कायमनुं मुक्तिसुख मळी जाय. शुभ भावनुं आवुं मोटुं फळ माननाराओमां पण ब्रह्मचर्य अंगीकार करनार
अत्यंत जुज नीकळे छे. पूज्य गुरुदेवनी स्वानुभव झरती वाणी तो पात्र जीवोने सोंसरी ऊतरी जाय छे,
तेओ यथाशक्ति शुद्धिनो मार्ग शोधवा लागी जाय छे. अने ए शोधन करवा जतां–जोके शुभ भावोने तेओ
बंधरूप समजे छे, तो पण तेमने विधविध शुभ भावो आवी जाय छे. ए रीते चौद चौद कुमारिका बहेनोए
(पहेलांनां छ बहेनो साथे गणातां वीश वीश