सुधापान करवाना भावथी तथा पूज्य बेन श्री–बेननी कल्याणकारिणी छायामां निरंतर रहेवानी
भावनाथी लेवामां आवतुं आ ब्रह्मचर्य ए जुदी वात छे.
छे ते दशा के जे दशामां ब्रह्मचर्य सतत सुलभ–सुखमय–साहजिक लागतुं अने अब्रह्मचर्य असिधारा
समान दुर्लभतर–अति दुःखमय लागतुं! नमस्कार छे ते सहजानंदमय मुनिदशाने!
पण अति विरल थई गयो छे. भावप्रधानता विनानी शुष्क थोथां जेवी क्रियाओ जैनशासनमां जड
घालीने बेठी छे, जाणे के क्रियाकांड ते ज जैन धर्म होय! आवा आ काळमां परम पूज्य गुरुदेवे
सहजानंदमय आत्मानो अनुभव करी “जैनधर्म दर्शनमूलक छे, अने मोक्षमार्ग सहजानंदमय छे, कष्टमय
नथी’ एवी जोरदार घोषणा करीने अनेक जीवोने आत्मदर्शनना पुरुषार्थमां प्रेर्या, अने तेना परिणामे
जिनप्ररूपित यथार्थ सहज मुक्तिमार्ग प्रकाशित थयो, तथा शास्त्र स्वाध्याय–देवभक्ति–वैराग्य–
ब्रह्मचर्यादि शुभभावोमां पण नूतन तेज प्रगट्युं. जिनोपदिष्ट शीतळ अध्यात्मज्ञानथी शून्य जेवा
बळबळता काळने विषे तीर्थधाम सोनगढमां अध्यात्मजळनो जोरदार शीतळ फुवारो ऊडी रह्यो छे,
जेनी शीतळ फरफर–शीकर छांट सारा भारतवर्षमां दूरदूरनां अनेक नानां मोटां गामोमां फेलाईने
अनेक सुपात्र जीवोने शीतळता अर्पे छे. ए अध्यात्म फुवाराना शीतळ छांटणाना प्रतापे ज, ए विशाळ
अध्यात्म–वडलानी शीतळ छायाना प्रभावे ज आ बहेनोने आजीवन ब्रह्मचर्यनो शुभ भाव प्रगट्यो
छे.
अमारो आत्म साक्षात्कार छे. निश्चय करी आ ज सत्संग–सत्पुरुष छे एवो साक्षी भाव उत्पन्न थयो
होय, ते जीवे तो अवश्ये करी प्रवृत्तिने संकोचवी, पोताना दोष क्षणे क्षणे, कार्ये कार्ये अने प्रसंगे प्रसंगे
तीक्ष्ण उपयोगे करी जोवा, जोईने ते परिक्षीण करवा; अने ते सत्संगने अर्थे देहत्याग करवानो योग
थतो होय, तो ते स्वीकारवो.
कुळने उज्जवळ कर्युं छे, अने मुमुक्षु मंडळनुं गौरव वधार्युं छे. तेओ आत्महितमां आगळ वधो.
पदनो आस्वाद न आवे, त्यां सुधी ते पदना आस्वादमांथी झरती परमोपकारी गुरुदेवनी
कल्याणकारिणी शीतळ वाणीनुं श्रवण मनन हो. तेमां रहेला गहन भावोने समजवानो उद्यम हो, के
जेथी निज पद पामी अनंत दुःखोने तरी जईए.