Atmadharma magazine - Ank 228a
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ब्रह्मचर्य अंक : : ९ :
ता र सं दे शा
आ प्रसंगे बहारगामथी लाडनुवाळा शेठ वछराजजी, तेमनां धर्मपत्नि बेन मनफुला बेन तथा शेठ
केसरीमलजी तथा तेमनां धर्मपत्नि धापुबेन आव्या हता. ते सिवाय मुंबई, दिल्ही, ईन्दोर, अमदावाद,
वांकानेर, मोरबी, राजकोट, पोरबंदर, जेतपुर, गोंडल, वढवाण, सुरेन्द्रनगर, ध्रांगध्रा, राणपुर, बोटाद,
भावनगर, उमराळा, लाठी, वींछीया वगेरे गामोथी घणा मुमुक्षुओ उत्साह पूर्वक भाग लेवा आव्या हता.
अने ब्रह्मचारी बेनोने अंतरथी धन्यवाद आपता हता. केटलाक भाईओए बहेनोने जमाडी जुदी जुदी भेटो
पण आपी हती.
आ प्रसंगे बहार गामोथी तार तथा पत्र द्वारा कुमारी बेनोने धन्यवाद आपता अनेक संदेशा आव्या
हता. तेमां कलकत्ता मंडळ, अमदावाद मंडळ, मुंबई मंडळ, जमशेदपुरथी शेठ, नरभेराम कामाणी, मद्रास
मंडळ, अजमेर भजन मंडळी, राजकोट संघ, श्रीईन्द्रवीरप्रसाद जैन–ध्रांगध्रा, सुरेन्द्रकुमारजी दिल्ही, नेमीचंदजी
पाटनी, आग्रा, पंडित नाथुलालजी–ईन्दोर वगेरे तरफथी आवेल संदेशा मुख्य हता.
* * *
पंडित श्री नाथुलालजी जैन, ईन्दोर तरफथी आवेल संदेशो:– –
श्री पूज्य स्वामीजीनी पासे श्री दश लक्षण पर्वना प्रारंभ दिने एटले के भादरवा सुद प ना रोज
सवारे आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ग्रहण करनार १४ कुमारी बेनो प्रत्ये हुं हार्दिक आदरभाव प्रगट करुं छुं.
बाळ ब्रह्मचारी तीर्थंकर श्री नेमिनाथ तथा श्री पार्श्वनाथ पछी श्री महावीर स्वामीनो आ तीर्थ काळ
छे तथा बाळ ब्रह्मचारी श्री पूज्य कानजीस्वामीनी अपूर्व वाणीनो प्रभाव छे के जेमना आदर्शनुं मूर्तरूप
सौराष्ट्रना अनेक तरुण बाळ ब्रह्मचारी बंधुओमां द्रष्टिगोचर थई रह्युं छे. ए ज प्रकारे ब्राह्मी, सुंदरी अने
राजीमतीना आदर्शने कार्यान्वित करवावाळी सोनगढमां रहेनारी २० बाळ ब्रह्मचारी बेनो तथा
युवावस्थामां ज ब्रह्मचर्य अंगीकार करनार अनेक दंपती भगवान महावीरना तीर्थनी प्रभावना करीने तेने
सार्थक बनावी रहेल छे. आजनी आ भौतिकता उपर निःसंदेहपणे आध्यात्मिकतानो विजय छे.
धन्य छे श्री पूज्य स्वामीजी
तथा
श्री पूज्य बहेन श्री बेन!
* * *
श्री सुरेन्द्रकुमारजी जैन, दिल्ही, तरफथी आवेल पत्र:– –
........ धन्य छे ते भावनाने के जेना कारणे संसार संबंधी ईन्द्रिय विषयोने नागिनीरूप समजीने आ
जीव संसार–देह संबंधी अनुकूळ संयोगथी विमुख बनीने, निज ज्ञायक स्वरूप तरफ महा प्रयाण करे छे.
परममूर्ति, परमोपकारी, परमपूज्य, परमपुनित, अध्यात्म योगी, वीतराग धर्मपथप्रदर्शक, ज्ञानरूपी
नेत्रोनुं दान आपनार, चैतन्य शक्तिने जाज्वल्यमान करनार, ज्ञानामृतपान करनार, परम दयाळु श्री
गुरुदेवनो तो अनेक भव्य जीवो पर अनेकानेक अपूर्व उपकार छे. आ पंचम काळमां भरतक्षेत्रमां–साक्षात्
तीर्थंकर भगवानना विरह काळमां तेमनो विरह न लागे तेनुं श्रेय पूज्य गुरुदेवने फाळे जाय छे, तेमना
प्रत्ये कया शब्दोमां आभार व्यक्त करुं! जे रीते सूर्य स्वयं प्रकाशित होय छे अने जगतना अनेक पदार्थोने
पण साथे साथे प्रकाशित करे छे ते रीते पूज्य गुरुदेव