Atmadharma magazine - Ank 228a
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ब्रह्मचर्य अंक : : ११ :
साचुं ब्रह्मचर्य जीवन कोण जीवी शके?
(पूज्य गुरुदेवना व्याख्यानो उपरथी)
ब्रह्मचारी एटले शुं?
ब्रह्मचारी एटले आत्मानो रंगी अने विषयोनो त्यागी..
विषयोनो त्यागी कोण थई शके?
जे विषयोमां सुख न मानतो होय ते.
विषयोमां सुख कोण न माने?
जेने विषयोथी रहित आत्माना सुखनुं भान अने रुचि थई होय ते.
जेम एक स्पर्शेन्द्रियना विषयमां सुख नथी तेम पांच ईन्द्रियो संबंधी कोईपण विषयोमां
आत्मानुं सुख नथी एम जाणीने सर्व विषयोमांथी सुखबुद्धि टळे अने सर्व विषयो रहित असंगी
आत्मस्वभावनी रुचि थाय ते ज जीव वास्तविक ब्रह्मचर्य जीवन जीवे छे. एटले खरेखर जेटलो जेटलो
आत्मिक सुखनो अनुभव छे तेटले तेटले अंशे ब्रह्मचर्य जीवन छे. बीजी रीते कहीए तो ब्रह्मस्वरूप
आत्मामां जेटले अंशे चर्या (–परिणमन) होय तेटलुं ब्रह्मचर्य जीवन छे. अने जेटली ब्रह्ममां चर्या होय
छे तेटलो परविषयोनो त्याग होय छे ने बाह्यमां पण ते ते प्रकारना विषयोनो संग होतो नथी.
श्री आत्म अवलोकनमां शीलनी व्याख्या करतां लख्युं छे के– ‘पोताना चेतन स्वभावने शील कहे
छे. ते पोताना स्वभावनी अन्य परभावरूप नारी प्रत्ये विरक्तता (अर्थात् तेनो त्याग) अने पोताना
स्वभावमां स्थिरता ते ज शीलपालन छे.’
पण जे जीव पर विषयोथी के परभावोथी सुख मानतो होय ते जीवने ब्रह्मचर्य जीवन होय नहि;
केमके तेने विषयोना संगनी रुचि पडी छे. पछी भले ते जीव शुभराग वडे कदाच स्त्री संग के पुरुषसंग
न करतो होय, पण अमुक शब्दथी के मूर्ति वगेरे अमुक रूपथी ईत्यादि कोईपण विषयथी मने सुख थाय के
तेना निमित्तथी मने ज्ञान थाय एवी जेनी द्रष्टि छे तेने पर विषयोनी रुचि ज छे अने तेथी तेने
वास्तविक ब्रह्मचर्य होतुं ज नथी.
आथी तत्त्वज्ञानने अने ब्रह्मचर्यने मेळ सिद्ध थयो; केमके जे जीवने तत्त्वज्ञान होय, आत्मानी
रुचि होय ते जीव कदी कोईपण पर विषयमां सुख माने नहि, एटले रुचिमां–श्रद्धामां–द्रष्टिमां तो तेणे
पोताना आत्मस्वभावनो संग करीने सर्व पर विषयोनो संग छोडी दीधो छे. तेथी ते जीव रुचि–श्रद्धाथी
तो ब्रह्मचर्य जीवन ज जीवे छे. अने पछी स्वभावनी रुचिना जोरे स्वभावमां लीनता करतां जेम जेम
रागादि पर परिणति टळती जाय छे तेम तेम तेना निमित्तभूत बाह्य विषयो पण स्वयमेव छूटता जाय
छे, ने ए क्रमथी आत्मिक ब्रह्मचर्य जीवनमां आगळ वधतां ते जीव पोते पूर्ण ब्रह्मस्वरूप परमात्मा थई
जाय छे.
शरीरना स्पर्शमां जेने सुखनी मान्यता टळी गई होय ते ज तेनाथी विरक्त थईने ब्रह्मचर्य
जीवन जीवी शके. हवे जेने शरीरना स्पर्श–विषयमांथी सुखबुद्धि टळी गई होय ते जीवने शब्द, रूप, रस,
गंध के वर्ण वगेरे विषयोमांथी पण सुखबुद्धि अवश्य टळी गई होय. एकपण ईन्द्रियमांथी जेने खरेखर
सुख बुद्धि टळे तेने पांचे ईन्द्रियोमांथी सुखबुद्धि टळे. हवे पांचे ईन्द्रिय–विषयोमांथी सुखबुद्धि तेने ज
टळे के जेणे सत्पुरुषना उपदेशना श्रवण पूर्वक, पांच ईन्द्रियोना विषयोथी पार अतीन्द्रिय आत्मानुं सुख
लक्षगत कर्युं होय अने अंतरमां तेनी रुचि थई होय; एवो जीव ज यथार्थपणे ईन्द्रियविषयोथी विरक्त
थईने ब्रह्मचर्य जीवन जीवी शके.