: ब्रह्मचर्य अंक : : १३ :
ब्रह्मचर्य विषे सुभाषित
(पूज्य गुरुदेवना व्याख्यानमांथी)
ब्रह्मचर्यनो प्रसंग होवाथी ब्रह्मचर्य संबंधी श्लोकना अर्थ थाय छे.
निरखीने नवयौवना लेश न विषय निदान
गणे काष्टनी पुतळी ते भगवान समान.
ते भगवान समान:– १ अहीं भगवान समान कह्यो छे. ते एकला शुभरागरूप ब्रह्मचर्यनी वात
नथी. परने देखीने जे राग माने छे, तेने तो परमां एकत्व बुद्धि रूप मिथ्यात्व छे. ज्ञानी स्त्रीने देखीने राग
मानता नथी तेथी दर्शननो दोष नथी अस्थिरताथी राग थाय ते चारित्रनी नबळाई छे. निरखीने एटले के
पर वस्तुने देखीने ‘आ सारूं छे’ एवी बुद्धिथी जे राग थाय ते मिथ्यात्वीनो छे. ज्ञानीने राग थाय पण ते
स्त्रीने देखवाना कारणे थतो नथी. स्त्री मारी छे के सुंदर छे एवी मान्यताथी ज्ञानीने राग थतो नथी. चोथे–
पांचमे गुणस्थाने ज्ञानीने आदीनो राग होय पण ते परना कारणे राग नथी मानता तेने मिथ्यात्वनो राग
नथी. ज्ञेयोने ज्ञेय तरीके जाणे छे. पण तेना कारणे राग मानता नथी. सुंदर स्त्री देखीने जे राग माने छे तेने
तो अनंत संसारना कारण रूप राग छे. वळी ज्ञानीने लेश पण विषय निदान नथी. आसक्तिनो राग होय
पण ते विषयमां सुख मानता नथी. विषयने सुखनुं कारण मानीने ज्ञानीने कदी राग थतो नथी अने अहीं
भगवान समान कह्यो छे पण मिथ्याद्रष्टि अनंतवार ब्रह्मचर्य पाळीने नवमी ग्रैवेयक गयो तेने अहीं
भगवान समान कह्यो नथी.
जेम स्त्रीने निरखीने तेना कारणे ज्ञानी राग मानता नथी तेम पैसा के देव–शास्त्र–गुरु वगेरे कोई
पदार्थने कारणे पण ज्ञानी राग मानता नथी. आवा स्वभावना लक्षे ब्रह्मचर्य होय तो ते पात्रता छे. अने
स्वभावना लक्ष वगर ब्रह्मचर्य पाळे तो मंदरागथी पुण्यबंधाय पण तेमां आत्म लाभ नथी.
आ पाठनुं नाम ‘ब्रह्मचर्य विषे सुभाषित’ छे. लौकिकमां जे ब्रह्मचर्यनुं कथन छे ते नही, पण परमार्थ
स्वरूप शुं छे? तेनी वात आमां करे छे.
शांतिनाथ भगवान पहेलां गृहस्थपणामां हता, चक्रवर्ती हता, हजारो राणीओ हती छतां तेओना
कारणे लेश पण राग थवानुं मानता नथी, तेना विषयमां लेश पण सुख मानता नथी, तेने अहीं भगवान
समान कह्या छे. स्त्रीओ मारी–एम माने तो तेना कारणे राग मान्यो ने तेमां एकत्वबुद्धि छे, ते मिथ्याद्रष्टि
छे. अंतरद्रष्टिमां फेर छे. बहारना आचरणथी फेर जणाय नहीं.
नवयौवना स्त्रीने काष्टनी पूतळी समान गणे एटले जगतना ज्ञेयोनी जेम तेने पण ज्ञेय जाणे. जेम
जगतमां बीजा पदार्थो ज्ञेय छे, तेम स्त्री पण ज्ञेय छे. मारा स्वभावमां वस्तुओने देखीने विकार थतो नथी.
नव यौवना स्त्रीओने देखवाना कारणे जो राग थवानुं माने तो तेना अभिप्रायमां राग करवानुं ज आव्युं
केमके जगतमां नवयौवना स्त्रीओ तो अनादि अनंत छे. तेने कारणे जो राग माने तो तेने अनादि अनंत
काळ राग करवानुं आव्युं. तेनो अभिप्राय मिथ्या छे. ज्ञानी जाणे छे के स्त्रीने कारणे मने राग नथी स्त्रीने
देखवाना कारणे मने राग नथी. तेने कह्युं के:–
निरखीने नवयौवना लेश न विषय निदान
गणे काष्टनी पूतळी ते भगवान समान. २
धर्मीने रागहोवा छतां स्त्रीथी राग थवानुं मानता नथी. राग थाय तेने सुखनुं कारण मानता नथी.
जगतना अनंत अनंत ज्ञेयो छे, ते कोई मने रागनुं कारण नथी, अने मारो ज्ञान स्वभाव राग रहित छे,
तेमां राग थाय ते मने सुखरूप नथी–तेम ज्ञानी जाणे छे ते