: १४ : : ब्रह्मचर्य अंक :
भगवान समान छे. हजी साक्षात् भगवान थया नथी. अस्थिरतानो राग छे. पण राग रहित पूर्ण
स्वभावनुं भान छे. तेथी ते भगवान समान छे. राग छे ते क्षणिक दोष छे. पण त्रिकाळी द्रष्टिना जोरे ते
राग अल्पकाळे टळी जवानो छे. रागमां जे सुख माने छे. तेणे रागने टाळवा जेवो मान्यो नहीं.
ज्ञानीने स्त्री देखीने राग थतो नथी. तेमां अल्पराग होय तेथी सुखी थतो नथी अने जगतना
ज्ञेयोनी जेम नवयौवना स्त्रीने काष्टनी पूतळी जेवी गणे छे एने अहिं भगवान समान कह्या छे.
हजी शुभरागनो विकल्प छे, तेथी कह्युं के “गणे काष्टनी पूतळी” हजी तदन वीतरागता थई नथी पण
पर लक्षे शुभराग छे. तेथी ते साक्षात् भगवान नथी. पण भगवान समान छे–एम कह्युं छे. जो साक्षात्
भगवान थई गया होय तो काष्टनी पूतळी गणवानो विकल्प पण न होय. आत्माना स्वभावनुं भान
होवाथी अस्थिरताना रागवाळो होवा छतां तेने भगवान समान कह्यो छे. जेनी द्रष्टि पर उपर छे जे परने
कारणे राग माने छे, जे विषयोमां सुख माने छे. ते भले ब्रह्मचर्य पाळे पण तेने धर्म थतो नथी ने एने
अहीं भगवान समान कह्यो नथी.
मारुं स्वरूप ज्ञाताद्रष्टा छे, राग थाय ते विकार छे परने कारणे राग थतो नथी, अने राग थाय तेमां
मारूं सुख नथी–एवुं जेने भान छे. एने श्रीमद्राजचंद्रजीए १६ मा वर्षे भगवान समान कह्या छे.
आ सघळा संसारनी रमणी नायक रूप
ए त्यागी त्याग्यु बधुं केवळ शोक स्वरूप.
स्त्री साथे रमण करवामां सुख छे एवी बुद्धि ते संसारनुं मूळ कारण छे. जगतमां मूळ राग स्त्रीना
विषयनो होय छे. एनामां पण सुख बुद्धि जेणे छोडी दीधी छे ने ते तरफना रागमां पण जेने सुख बुद्धि नथी
तेणे जगतना पदार्थोना कारणे राग थाय एवी मान्यता छोडी दीधी छे अने ते केवळ उदासीन रूप ज्ञाताद्रष्टा
छे. खरेखर रमणी संसारनुं कारण नथी. पण रमणी साथेना विषयमां सुख छे, एवी मान्यता ज संसारनुं
मूळ छे. ज्ञानीने लक्ष्मी वगेरे पर चीजने कारणे तो राग थवानी मान्यता नथी पण अस्थिरताथी राग थाय
तेने पण पोतानुं स्वरूप जाणता नथी. पर वस्तु मने हितकार नथी एवा भानपूर्वक जेणे घणो राग छोडयो
छे. अने बाकी रहेलो अल्प राग छोडवानो छे. तेणे बधुं त्याग्युं एम कह्युं छे.
एक विषयने जीतता जीत्यो सब संसार
नृपति जीततां जीतीए दळ–पुर नेअधिकार
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे ते सिवाय बीजा बधा पदार्थो ते मारुं ध्येय नथी. चैतन्य स्वभावने ज्ञाननो
विषय करीने जेणे पर साथेनो विषय छोडी दीधो छे. राग थाय तेने ध्येय मानता नथी. परवस्तुने ध्येय
मानता नथी–तेणे आखो संसार जीती लीधो. एकला अब्रह्मने ज जीतवानी वात नथी पण एक तरफ
चैतन्य ते स्वविषय अने बीजी तरफ आखो संसार ते परविषय छे. जगतनो कोई पर विषय मने सुखरूप
नथी. एवा भान पूर्वक जेणे एक विषय जीत्यो तेणे आखो संसार जीती लीधो छे. जेम राजाने जीततां लश्कर
वि. जीताय जाय छे, तेमआत्म स्वभावना भानपूर्वक जेने विषयोमांथी सुख बुद्धि उडी गई छे. तेनो समस्त
संसार नाश थई जाय छे.
विषयरूप अंकुरथी टळे ज्ञान ने ध्यान
लेश मदिरा पानथी छाके ज्यम अज्ञान.
परविषयमां सुख छे एवी बुद्धि ते अज्ञान भावना अंकुरो छे. तेमांथी अनंत संसारनुं झाड फेलाशे.
चैतन्यमां शांति छे तेने चुकीने परमां जे सुख माने छे, तेने चैतन्यनुं ज्ञान ने ध्यान थतुं नथी.
चैतन्यने चुकीने परविषयमां जेणे सुख मान्युं छे तेने आत्मानुं साचुं ज्ञान नथी. आत्माना
ज्ञानवगर आत्मानुं ध्यान पण नहि. ज्ञानी परमां सुख मानता नथी. ज्ञानस्वभावी आत्मामां ज मारूं सुख
छे, एवुं तेने भान छे. ते मोक्षना अंकुर छे. अज्ञानीने परमां सुखबुद्धि होवाथी तेने विषयनो अंकुर
वधारवानी भावना छे, ज्ञानीने स्वभावना भानमां क्षणे क्षणे राग घटतो जाय छे के रागनी भावना नथी
ने विषयमां सुखबुद्धि नथी. अज्ञानीने रागनी वृद्धि थशे एटले राग रहित स्वभावनुं ज्ञान टळशे ने
विषयमां अंकुरनी वृद्धि थशे. पण चैतन्यमां एकाग्रता नहि थाय. जेम मदिरापानथी अज्ञान थाय छे ने
माताने पण स्त्री कहेवा मांडे छे तेम अज्ञानी परमां सुख मानीने विषयोनो राग करे छे. एटले तेनो राग ते
विषयनो अंकुर छे तेमांथी संसारनुं झाड थशे. ज्ञानीने राग थाय ते अस्थिरतानो छे. ते संसारनुं कारण
नथी. तेने सम्यक्ज्ञाननो अंकुर फालीने केवळज्ञान थाय छे.