Atmadharma magazine - Ank 228a
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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ब्रह्मचर्य अंक
चौद कुमारिका बेनोए अंगीकार करेल आजीवन ब्रह्मचर्य
भारतनी आ पुण्य धरा पर ज्यारे श्री कहान कुंवरनो जन्म थयो, त्यारे कोने खबर हती के तेमना
जीवन दरम्यान संसारमां नवुं परिवर्तन–नवी क्रांति–नवी चेतना उत्पन्न थशे! पण ए तो खूब प्रसिद्ध वात
छे के तेमना जन्मे अज्ञान अंधकार नष्ट करी, अनेक भव्य जीवोना अंतरमां सम्यग्ज्ञाननो दिव्य प्रकाश
प्रसारित कर्यो छे, अने तेमना उज्जवल–अत्युज्जवल जीवनना कारणे अने तेमना चमकता ज्ञानसूर्यना
प्रकाशे अनेक मुमुक्षु हैयामां नवी चेतना प्रगटावी छे. तेनुं एक जवलंत उदाहरण छे–चौद कुमारिका बेनोनी
आजीवन ब्रह्मचारी रहेवानी प्रतिज्ञा.
परम पावन, कुमार ब्रह्मचारी, ज्ञान–वैराग्यमय मंगल आत्मजीवनजीवी, युगनिर्माता, परम पूज्य
सद्गुरुदेवश्रीनी पुरुषार्थप्रेरक, आत्मकल्याणकारी, वीतरागी संदेशो आपती वाणीनुं दीर्घकाळ सुधी अमृतपान
कर्या पछी, तेम ज पूज्य भगवती बेनश्री चंपाबेन तथा पूज्य भगवती बेन शांताबेननी शीतळ छायामां
रही, लांबो वखत तत्त्वज्ञाननो अभ्यास कर्या पछी एकी साथे चौद कुमारिका बेनोए आजीवन ब्रह्मचर्यनी
प्रतिज्ञा पूज्य गुरुदेवश्री पासे भादरवा सुद प ता. ९–९–प६ रविवारना शुभ दिने अंगीकार करी छे. आ
अगाउ संवत २००पना कारतक सुद १३ ना रोज छ कुमारिका बेनोए पूज्य गुरुदेवश्री समीपे जीवनभर
ब्रह्मचर्य पाळवानी प्रतिज्ञा लीधी हती. सुवर्णपुरीनी अनेक बाबतो अनोखी छे–विशिष्टतावाळी छे, तेम जैन
जगतमां ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करवानो आवो मंगलकारी प्रसंग खरेखर विरल अने गौरव लेवा योग्य
गणाय. कुमारी बेनोनी आजीवन ब्रह्मचर्यपालननी प्रतिज्ञाना महा स्तुत्य प्रयास माटे तेमने अनेक
अभ्यास पूर्वक आत्महित साधवानो छे. ते हेतु तेमना ब्रह्मचर्यने विशिष्टपणे शोभावे छे. तेमनी आ
भावनामां तेओ पूर्णपणे सफळता प्राप्त करो, अने ज्ञान–वैराग्य पूर्वक सद्धर्मनी प्रभावनामां वृद्धि करो, ए
अमारी आंतरिक अभिलाषा छे.
आ प्रसंग जोईने तो अनेक मुमुक्षु हैयां अत्यानंदथी नाची ऊठयां छे, अने ‘धर्म काळ अहो वर्ते!’
एवो अंतरनाद गूंजी रह्यो छे.
आ बधानुं मूळ कारण पूज्य सद्गुरुदेवश्री ज छे. मुमुक्षुओनुं ए महान सद्भाग्य छे के आ काळे
पण तेमना द्वारा तीर्थंकर परमात्माना दिव्य ध्वनिनुं रहस्य समजी शकाय छे, अध्यात्म विद्यानो प्रचार अने
प्रसार अत्यंत वेगपूर्वक थई रह्यो छे, अने निरंतर वृद्धि पामी रह्यो छे, निश्चय–व्यवहारनी संधि पूर्वकनो,
परथी भिन्न अने स्वथी अभिन्न आत्मानो यथार्थ उपदेश सुणवा मळे छे, अने ए रीते भरतक्षेत्रमां
वर्तमान काळे तीर्थंकर देवना विरहा भूली शकाय छे. वळी तेओश्रीनुं ब्रह्मचारीपणुं अनेक मुमुक्षु
भाईबेनोना ब्रह्मचर्य पालनमां निमित्तभूत थयुं छे, अने प्रेरणा आपी रह्युं छे.
पूज्य सद्गुरुदेवश्री तो कहे छे के आवुं ब्रह्मचर्य पालन ते शुभभाव छे, धर्म नथी. प्रतिज्ञा लेनार
बेनो पण ए वात बराबर समजे छे. आम छतां एवो शुभभाव तत्त्वज्ञानना जिज्ञासु जीवोने पूर्ण
शुद्धतानी प्राप्ति न थई होय त्यांसुधी भूमिका अनुसार आव्या वगर रहेतो नथी; पण ते धर्म नथी, तेम ज
धर्ममां सहायकारी पण नथी.
खरेखर तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं ऐकय ज मोक्षमार्ग छे. ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लेनार बेनोनी पण
ते माटेना पुरुषार्थनी भावना छे, तेमनी ते भावना परिपूर्ण हो, अने संपूर्ण शुद्धिनी प्राप्ति हो–एवी भावना
भावीए छीए.