Atmadharma magazine - Ank 228a
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ब्रह्मचर्य अंक : : प :
लेवा माटे तैयार थयेल हतां. ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लेनार कुमारी बेनोना वालीओ प्रथम पूज्य गुरुदेव पासे
गया हता, अने बेनोने ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा आपवा विनंति करी हती, अने बेनो प्रतिज्ञा ल्ये तेमां तेओ संमत
छे एम जाहेर कर्युं हतुं.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा दिवस घणा उत्साह पूर्वक उजवायो हतो. कुमारिका बेनो नानी उंमरमां ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
लेती होवाथी आजे मुमुक्षुओमां अनेरो उत्साह देखातो हतो, बहारगामथी १२०० लगभग मुमुक्षुभाईओ तथा
बेनो आ प्रसंगे पधार्या हता. आजे ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करवानो दिवस होवाथी बेनोनो आश्रम तेमज
बेनोना घरो मंडप तथा तोरणोथी सुशोभित करवामां आव्यां हतां. सवारमां चौद बेनो सहित आखा मुमुक्षु
मंडळे देव–गुरु–शास्त्रनां दर्शन कर्यां हतां. त्यारपछी चौदे बहेनोए मुमुक्षु मंडळ सहित जिनमंदिरमां श्री सीमंधर
भगवाननी तथा उत्तम क्षमाधर्मनी भक्तिभाव पूर्वक पूजा करी हती. त्यारबाद सर्वे मुमुक्षुओ श्री गोगीदेवी
ब्रह्मचर्याश्रम पासे एकत्र थया हता. त्यांथी वरघोडाना रूपमां वाजते गाजते तथा मंगल गीतो गातां अने
जिनेश्वरदेवना जयनादो गजावता बजारमां फर्या हता. अने पछी प्रवचन मंडपे आव्या हता. अत्रेना तेमज
बहारना थईने १७०० लगभग भाईओ–बेनो एकत्रित थया हता. पूज्य गुरुदेवश्रीना व्याख्यान बाद चौद
कुमारी बेनो पूज्य गुरुदेवने वंदना करी ब्रह्मचर्य अंगीकार करवा माटे ऊभां थयां हतां. आ प्रसंगे तेमना
वडीलोनी तथा कुटुंबी जनोनी पण हाजरी हती. दरेक बेनना अंतरमां उत्साह अने वैराग्य देखातां हतां. जीवनमां
ब्रह्मचर्य अर्थे केसरियां करवाना होवाथी दरेक बेने केसरी पटावाळी सफेद साडी पहेरी हती. चौदे बेनोनुं एकी साथे
द्विकर जोडीने ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लेवानी तत्परता दर्शक आ द्रश्य खरेखर विरल हतुं.
परम पूज्य गुरुदेवे प्रतिज्ञा आपतां सौथी पहेलां मांगलिक संभळाव्युं हतुं. पछी कह्युं हतुं के आ
बेनो जींदगी पर्यंत ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ल्ये छे. गया काळमां कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्र वगेरेनां सेवनथी जे दोषो
लाग्या होय तेनुं प्रायश्चित आप्युं. पूर्व हिंसादि पाप लाग्या होय तेनो ओरतो करवो. सुदेव–सुगुरु–
सुशास्त्रनुं शुं स्वरूप छे ते विचारवुं. आत्मानुं स्वरूप समजवा माटे तेमज तीव्र राग घटाडवा माटे ब्रह्मचर्य
निमित्त छे. आत्मानी साखे, पंच परमेष्ठीनी साखे, चार तीर्थनी साखे, आखी जींदगी सुधी कायाथी ब्रह्मचर्य
पाळवुं–ए रीते ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा विधि पूरो थयो हतो.
पूज्य गुरुदेवे आजना व्याख्यानमां पण कह्युं हतुं के “आजे चौद दीकरीओ ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा ल्ये छे.”
पंडित श्री नाथुलालजी लखे छे के चौद बेनोए माथे मेरु उपाडवा जेवुं कार्य कर्युं छे. वीस वीस वरसनी
दीकरीओ ब्रह्मचर्य ल्ये छे, ते सांभळी जगत छक थई जाय. छ दीकरीओए २००प ना कारतक सुद १३ ना
रोज प्रतिज्ञा लीधी हती. चौद कुमारी बेनो बहु हिंमत करे छे. पुरुष करतां स्त्रीनी पराधीनता होय छे, छतां
ते जातनो पुरुषार्थ करे छे, ने हिंमत बतावे छे. आजे दस लक्षणी पर्वनो पहेलो दिवस छे. उत्तम क्षमा दिन
छे. आजे रविवार छे. कुमारी बेनोनो ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा लेवानो दिवस छे–बधी रीते मेळ छे.
खरेखर ब्रह्मचर्यना प्रसंगमां निवृत्ति होय छे.
“नीरखीने नवयौवना लेश न विषय निदान
गणे काष्ठनी पूतळी ते भगवान समान.”
ए आत्मभान सहितनी वात छे. नीचे नरक छे, आ मनुष्य क्षेत्र छे, उपर देवलोक छे. स्वर्ग–पाताळ
अने मनुष्य एम त्रणे लोकनो हुं ज्ञाताद्रष्टा छुं एवा भानवाळाने सोळसत्तर वरसनी नवयौवना स्त्री
देखीने विषयनो हेतु थतो नथी. मारा आनंदनी खाण मारा अंतरमां छे एवा भानवाळाने विषयमां
सुखबुद्धिनो भाव थतो नथी. आवा भान सहित अशुभ रागनी उत्पत्ति न थवी ते पण ब्रह्मचर्य छे.
“पात्र विना वस्तु न रहे, पात्रे आत्मिक ज्ञान;
पात्र थवा सेवो सदा, ब्रह्मचर्य मतिमान.”
संयोगी चीजमां तीव्रवृत्तिवाळाने स्वाभाविक चीजनी ओळखाण नहीं थाय. जेने संयोगी चीजमां
वलण रह्या करे छे, ते जीव राग रहित ज्ञानानंद स्वभावनुं भान करी शकशे नहि. श्रीमद् राजचंद्रजीए १६
वरस ने पांच मासनी उंमरे आ काव्य बनावेल छे. तेमने ज्ञाननो उघाड घणो हतो.
ब्रह्म एटले सच्चिदानंद स्वरूपमां–आनंदमां एकाग्रता करी रमवुं–ते ब्रह्मचर्य छे. तेवा
आत्मभानवाळो मोक्षने पात्र छे. अहीं मतिमान शब्द वापर्यो छे, ते सम्यग्ज्ञानीने माटे छे. वळी तेवुं लक्ष
राखीने शुभराग रूप ब्रह्मचर्य पाळे ते पण सम्यग्ज्ञानने पात्र छे.