न थवा दे पण सर्वज्ञ वीतराग कथित तत्त्वार्थोने जेम छे तेम बराबर माने, अने तेनाथी विरुद्धनो
जराय आदर न करे. त्रणेकाळ सर्व द्रव्यो अने तेना गुण पर्यायोनुं स्वतंत्रपणुं छे, दरेक वस्तु स्वपणे
छे, परपणे नथी, परनाआधारे नथी. परद्रव्य–क्षेत्र–काळ अने परभाव जेवा मळे तेवुं थवुं पडे–तेनी
असर, मदद, प्रभाव पडे छे एम माने नहीं, कर्तापणानुं लौकिक व्यवहार कथन अने एवो राग आवे
पण श्रद्धामां एवा सर्व व्यवहार कथनने ए एम नथी पण निमित्तथी कथन करवानी एवी रीत छे,’
वस्तु तो द्रव्य–गुण–पर्यायथी स्वतंत्र ज छे, परतंत्र नथी. एक द्रव्य बीजानुं कांई करी शके नहीं एम
द्रढपणे जाणे छे.
छे, तेमां स्वाश्रय भावथी निर्जरा थाय छे, ते निश्चय अमूढत्व छे, अने ए जातनो शुभभाव ते
व्यवहार अमूढत्व अंग छे.
तथा वस्त्रधारीने होय नहीं.
सर्वज्ञ तो ते काळना मनुष्योनुं विशिष्ट बुद्धिवान हशे पण त्रण काळवर्ती समस्तने एकसाथे जाणे,
अनादि अनंतने जाणे एवा सर्वज्ञ न होय, अथवा सर्वज्ञ निश्चयथी आत्माने ज जाणे, परने जाणे ते
व्यवहार असत्य छे एम सर्वज्ञनुं स्वरूप अन्यथा कहे, तेनुं कथन ज्ञानी माने नही, सर्वज्ञ भगवान
परने जाणे छे पण परमां तन्मय थईने जाणता नथी माटे ते व्यवहार कहेवामां आवे छे पण समस्त
परज्ञेयो संबंधी ज्ञानएटले स्वपर प्रकाशक पणे ज्ञाननी पर्याय ते निश्चय ज छे.
परिणामोनी स्वाश्रयना बळथी शुद्धि थवी ते निश्चय धर्म अंग अनेअन्य स्वधर्मी जीवना दोष
छूपाववा. कोईना दोष उघाडा न करवा ते व्यवहार उपगूहन छे अने पोताना गुण न गावा अने
व्यवहार मोक्षमार्गनी प्रवृत्ति वधारवी एवा शुभभावने व्यवहार उपबूहन कहे छे.
कथनमां आवे, बाकी शुभरागने काळे शुभ आवे ज छे. पांच महाव्रत पाळुं, बीजानो पाळे अने
अतिचार दोष टाळो, एम उपदेशनो राग आवे छे आवो राग करुं, लावुं एम मानतो नथी. ज्ञानीने
भेदज्ञान तो निरंतर छे के राग मारुं स्वरूप नथी, हितकर नथी, कर्तव्य नथी, छतां अमुक भूमिकामां ते
जातनो राग आव्याविना रहेतो नथी.
व्यवहार स्थितिकरण छे. तेमां वीतरागभाव तेटलो ज धर्म छे. राग बाकी रह्यो ते धर्म नथी–एवा
स्पष्ट भेदने ज्ञानी जाणे ज छे. श्रद्धामां हेय–उपादेयनी सूक्ष्मतामां