Atmadharma magazine - Ank 229
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४८९ : ९ :
न थवा दे पण सर्वज्ञ वीतराग कथित तत्त्वार्थोने जेम छे तेम बराबर माने, अने तेनाथी विरुद्धनो
जराय आदर न करे. त्रणेकाळ सर्व द्रव्यो अने तेना गुण पर्यायोनुं स्वतंत्रपणुं छे, दरेक वस्तु स्वपणे
छे, परपणे नथी, परनाआधारे नथी. परद्रव्य–क्षेत्र–काळ अने परभाव जेवा मळे तेवुं थवुं पडे–तेनी
असर, मदद, प्रभाव पडे छे एम माने नहीं, कर्तापणानुं लौकिक व्यवहार कथन अने एवो राग आवे
पण श्रद्धामां एवा सर्व व्यवहार कथनने ए एम नथी पण निमित्तथी कथन करवानी एवी रीत छे,’
वस्तु तो द्रव्य–गुण–पर्यायथी स्वतंत्र ज छे, परतंत्र नथी. एक द्रव्य बीजानुं कांई करी शके नहीं एम
द्रढपणे जाणे छे.
शुभ रागथी–व्यवहारथी परमार्थ धर्म त्रण काळमां थई शके नही. ए सिद्धांतमां द्रढ निश्चयवंत
होवाथी तेनाथी विरुद्धनी वातमां जराय मूढता थवा देतो नथी. तेथी सम्यग्द्रष्टिने अमूढत्व गुण होय
छे, तेमां स्वाश्रय भावथी निर्जरा थाय छे, ते निश्चय अमूढत्व छे, अने ए जातनो शुभभाव ते
व्यवहार अमूढत्व अंग छे.
लोकमूढता तथा देव, गुरु अने शास्त्रना संबंधमां मूढता थवा न दे ते बाबत मोक्षमार्ग प्रकाशक
ग्रंथमां बहु स्पष्ट वर्णन छे. सती द्रौपदीने पांच पति माने छे ते होई शके नहीं. निर्ग्रंथ मुनिपद स्त्रीने
तथा वस्त्रधारीने होय नहीं.
सर्व वीतराग अर्हंत देवने १८ दोष होता ज नथी, तेने वळी आहार पाणी, रोग, उपसर्ग, दवा
खावी तथा ज्ञान दर्शननो उपयोग क्रमे क्रमे ज होवानुं मानवुं एवुं माने मनावे तो एवुं छे नहीं.
सर्वज्ञ तो ते काळना मनुष्योनुं विशिष्ट बुद्धिवान हशे पण त्रण काळवर्ती समस्तने एकसाथे जाणे,
अनादि अनंतने जाणे एवा सर्वज्ञ न होय, अथवा सर्वज्ञ निश्चयथी आत्माने ज जाणे, परने जाणे ते
व्यवहार असत्य छे एम सर्वज्ञनुं स्वरूप अन्यथा कहे, तेनुं कथन ज्ञानी माने नही, सर्वज्ञ भगवान
परने जाणे छे पण परमां तन्मय थईने जाणता नथी माटे ते व्यवहार कहेवामां आवे छे पण समस्त
परज्ञेयो संबंधी ज्ञानएटले स्वपर प्रकाशक पणे ज्ञाननी पर्याय ते निश्चय ज छे.
(प) उपगूहन–पोताना आत्माने शुद्ध स्वरूपमां जोडे निज शुद्धात्माना अवलंबनना बळथी
पोतानी शक्ति वधारे दोषोने गौण करे, एकांतवादथी दूषित कोई वातनो आदर थवा न दे. एमां
परिणामोनी स्वाश्रयना बळथी शुद्धि थवी ते निश्चय धर्म अंग अनेअन्य स्वधर्मी जीवना दोष
छूपाववा. कोईना दोष उघाडा न करवा ते व्यवहार उपगूहन छे अने पोताना गुण न गावा अने
व्यवहार मोक्षमार्गनी प्रवृत्ति वधारवी एवा शुभभावने व्यवहार उपबूहन कहे छे.
शुभभावने वधारवो ए तो उपदेशरूप वचन छे. एनोअर्थ ज्ञाननी वृद्धिनो पुरुषार्थ वधारवो
एम छे. राग वधारवो एम वजन नथी. अशुभथी बचवा माटे शुभभाव करवो एम व्यवहारनयना
कथनमां आवे, बाकी शुभरागने काळे शुभ आवे ज छे. पांच महाव्रत पाळुं, बीजानो पाळे अने
अतिचार दोष टाळो, एम उपदेशनो राग आवे छे आवो राग करुं, लावुं एम मानतो नथी. ज्ञानीने
भेदज्ञान तो निरंतर छे के राग मारुं स्वरूप नथी, हितकर नथी, कर्तव्य नथी, छतां अमुक भूमिकामां ते
जातनो राग आव्याविना रहेतो नथी.
(६) स्थितिकरण– स्वरूपनी श्रद्धा, स्वावलंबी ज्ञान अने शान्तिथी च्युत थतां पोताना
आत्माने स्वरूपमां स्थापवो ते निश्चय अने व्यवहार मोक्षमार्गथी च्युत थता आत्माने स्थिर करवो ते
व्यवहार स्थितिकरण छे. तेमां वीतरागभाव तेटलो ज धर्म छे. राग बाकी रह्यो ते धर्म नथी–एवा
स्पष्ट भेदने ज्ञानी जाणे ज छे. श्रद्धामां हेय–उपादेयनी सूक्ष्मतामां