Atmadharma magazine - Ank 229
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४८९ : ११ :
भेदज्ञानपूर्वक ज्ञानानंदमां जेटली सावधानी, एकाग्रता करे ते निश्चयधर्म अने शुभविकल्प
आवे ते व्यवहार एटले उपचार धर्म छे. धर्म नथी तेने धर्म केम कहेवो? के ज्यां अणारोप=निश्चय
धर्म होय छे त्यां निमित्तरूपे आवो ज (आ जातनो) रागहोय छे एम सहचरपणुं– निमित्तपणुं
बताववा उपचारथी तेने पण धर्म कहेवो तेनुं नाम व्यवहार छे. छे तेने ते रूप जाणवो जोईए.
सम्यग्द्रष्टिना ज्ञानमां निश्चय अने व्यवहार बन्ने नयनो विषय छे. बेउ नय छे पणे सरखा छे पण
प्रयोजनमां तफावत छे. व्यवहार व्यवहारपणे उपादेय छे पण निश्चयनी प्रधानतामां व्यवहार गौण
छे–धर्म माटे आश्रय करवा योग्य नथी ए अपेक्षाए हेय छे. प्रमाण ज्ञानमां निश्चय व्यवहारनुं हेय–
उपादेय नथी, गौण मुख्य नथी, बेउनी प्रधानता छे. प्रधानता एटले बेउने छे पणे जाणवा माटे
बराबर छे.
नयज्ञान एटले एक पडखाने मुख्य करे अने बीजाने गौण करीने मुख्य विषयने जाणे छे, ने
तेनुं प्रयोजन (तात्पर्य) वीतरागता ज छे. स्याद्वाद मतमां कोई विरोध नथी. नयविभाग अने तेना
प्रयोजनने नहीं समजनारा शास्त्रना व्यवहारना कथनने निश्चयना कथन मानी ऊंधुंं समजे छे. पण
हेय–उपादेय अने गौणमुख्यनुं रहस्य समजनार स्याद्वादीने क््यांई विरोध आवतो नथी. प्रयोजन
तरीके नयविभागद्वारा गौण मुख्य होय छे पण व्यवहारना आश्रये–रागना आश्रये खरेखर धर्म
अथवा संवर निर्जरा थाय एम कदापि बनतुं नथी. व्यवहार रत्नत्रयनो शुभराग पण सत्यार्थ धर्म
नथी पण असत्यार्थ एटले व्यवहार ज्ञेयपणे तेवा स्थानमां निमित्तरूप छे एम जाणवुं ते स्याद्वाद छे.
साधक दशामां नीचे शुभराग केवो होय ते जाणवा माटे निश्चयना विषय साथे तेनुं निरूपण
होय छे. तेथी बेउने ज्यां जेम होय तेम जाणवा तेनुं नाम प्रमाण ज्ञान छे. श्रद्धामां, हेय उपादेयना
विषयमां एक तो बंधनुं ज कारण छे. मोक्षनुं कारण नथी अने एक (स्वाश्रयरूप वीतरागता) मोक्षनुं
ज कारण छे, बंधनुं कारण नथी. एम निर्धार–निर्णय करवो जोईए. व्यवहार नयनो विषय जाणवा
योग्य छे पण धर्म माटे आश्रय करवा योग्य छे एम आशय नथी ज
कळश– १६२.
निज शुद्धात्माना आलंबनना बळवडे नवीन बंधने रोकतो श्रद्धामां आखा आत्माने मानतो,
मारूं असली स्वरूप जोताुं हुं परमात्मा छुं, एम द्रष्टिमां लावतो मिथ्यात्वादि आस्रवोने रोके छे, जुना
कर्मोना स्वाश्रय निश्चय द्रष्टिना जोरे नाश करी नाखतो, शुद्धिनी वृद्धि अने अशुद्धिनी हानि करतो,
पोते अतिशयपणे निजरसमां मस्त थयो थको आदि–मध्य–अंत रहित एकरूप धारावही ज्ञानरूप
थईने स्व–पर प्रकाशक विशाळ आकाशमां अवगाहन (प्रवेश) करीने सदा सर्वत्र ज्ञाता ज शुभाशुभ
राग अने परनी क्रियानो कर्ता भोकता के स्वामी नथी
अज्ञानीने संयोग अने विकार उपर द्रष्टि अने रुचि होवाथी शुभरागनी क्रियाथी उपवास थयो
मानी तेनाथी निर्जरा माने छे, पण देहमां रोटला नथी आव्या माटे पुण्य छे एम नथी, पण मंदकषाय
शुभभाव करे तो पुण्य छे, ते रागथी एटले अशुद्धताथी जेओ लाभ मानेछे तेमने मिथ्यात्वनो लाभ
थाय छे.
संयोग द्रष्टिवान मानेछे के पांच महाव्रत लीधा माटे निर्जरा छे; पण एम नथी. कारण के ते
आत्मानुं चारित्र नथी, पण रागनी लागणी होवाथी चारित्रनो दोष छे, बंधनुं कारण छे. जे भाव
बंधनुं कारण छे ते अबंध भावनुं–शुद्धभावनुं कारण न ज थाय.
अरागी असंग स्वभावनी द्रष्टिमान जीव भले गृहस्थ दशामां होय पण गृहस्थ नथी. ज्यां
रुचि छे त्यां जागृत छे. संयोग अने शुभाशुभ रागनी अपेक्षा