Atmadharma magazine - Ank 229
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४८९ : १३ :
अनंतगुणना सुखने धारण करनार
चैतन्य रत्नाकार
ता. ३०–८–६२ सोनगढ
समयसारमां ४७ शक्तिनुं वर्णन,
शक्तिवान आत्मा उपर द्रष्टि देवा माटे छे.

भगवान आत्मानुं सुख अंतरमां छे, शरीर वाणी मन तथा व्यवहार विकल्पमां सुख नथी.
दरेक आत्मामां अनाकुळता स्वरूप सुख शक्ति छे ते अविनाशी आनंददाता छे. आत्मा सत् शाश्वत
वस्तु छे, तेमां ज्ञान आदि शक्ति साथे आनंद शक्ति पण छे. अनंत आनंदमय शाश्वत आत्मा उपर
द्रष्टि देतां पर्यायमां दुःख छे तेनो नाश थई द्रव्य गुण पर्याय त्रणेमां आनंद व्यापे छे तेने सम्यग्दर्शन
अने सम्यग्दआनंद कहेवामां आवे छे. सुख दरेक गुणनुं छे– ज्ञाननुं सुख–दर्शननुं सुख–वीर्यनुं,
अस्तित्वनुं, वस्तुत्वनुं एम अनंतगुणनुं सुख एवा अनंतगुणना सुखने धारण करनार आत्माने
द्रष्टिमां लई तेमां ढळवुं तेने सम्यग्दर्शन कहे छे, अनंतगुणोना धरनार आत्मा उपर अखंड द्रष्टि थतां
ज अनंतकाळमां नहि थयेल सम्यक्आनंदनो उत्पाद, दुःखरूप मिथ्यात्वनो नाश थाय छे आनुं नाम
सम्यग्दर्शनरूप प्रशंसनीय धर्म छे. कर्ता, कर्म, करणादि छए कारक दरेक गुणनी पर्यायमां दरेक समये छे.
स्वद्रव्यना आश्रये सुख गुणनी आनंद दशा प्रगट करी ते दरेक गुणनी पर्यायमां सुख प्रगट करे छे.
अतीन्द्रिय आनंदरूप कार्यनुं कारण अनंतगुणनो धारक आत्मा ज छे. शरीरनी क्रीया के शुभरागरूप
व्यवहारना कोई भेदो सुखरूप कार्यनुं कारण थतांनथी. आमां व्यवहारनी उपेक्षा थई, व्यवहारना
अभाव–स्वभावरूप परिणमतो आ आत्माज सुखरूप थाय छे. तुं ज देवाधिदेव छो. अनंतसुखनो
निधि आत्मा छे तेमां ज्ञातापणानी धीरजथी ध्येयने पकडे ते धीर सम्यग्द्रष्टि छे.
ज्ञानानंद लक्षणथी प्रसिद्ध अनंतगुणधाम आत्माने जाण्ये–वेद्यो एनुं नाम सम्यग्दर्शन–
सम्यग्ज्ञान छे. परथी, रागथी निरपेक्ष अनंत शक्तिनो पिंड आत्मा तेनी रुचि–ज्ञान अने तेमां स्थिर
थवुं तेने मोक्षमार्ग कहे छे. अहि शक्तिवानने बतावी मोक्षमार्ग समजावे छे, मोक्षमार्ग ते कार्य छे ते
क्यांथी प्रगट थाय छे? अंदर शक्तिवान एक चैतन्यस्वरूपमां द्रष्टि अने एकाग्रताथी ज प्रगट थाय
छे, बीजा कोई उपायथी ते प्रगट थतो नथी. भगवाने पराश्रयथी धर्म थाय एम कदी जोयुं नथी.
अंतर्मुख द्रष्टि वडे अंतर्मुख थतां अतीन्द्रिय आनंदनी लहेजत आवे तेनी आगळ ईन्द्र ईन्द्राणीना
कल्पित सुख सडेला तृण जेवां लागे. चैतन्य जागतां आनंदनी भरती आवे छे, जेम समुद्रना
मध्यबिन्दुमांथी उछाळो आवतां कांठे भरती आवे छे तेम परथी भिन्न अनंतगुणनी भरपुर–
चिदानंदनो आदर करी महामध्यस्थ चैतन्यनी द्रष्टि अंतर एकाग्रतामां उछाळे तो तेनी पर्यायरूपी कांठे
अतीन्द्रिय आनंद उछळे छे. आमां सापेक्षता क्यां आवी? शक्तिवानमां सावधानपणे जोतां पर्यायमां
सहजानंद उजळे छे तेने निमित्त के व्यवहारनो टेको जराय नथी; केमके चैतन्य महा प्रभुजी पोते ज
बेहद–पूर्ण आनंद शक्तिथीभर्यो पड्यो छे. दुनिया