कारतक: र४८९ : १७ :
तथा, स्वतंत्रताथी शोभायमान
असंकुचित विकासत्त्वशक्ति उपर
पू. गुरुदेवनुं प्रवचन. भाद्र० सुद प सोनगढ.
उत्तम क्षमादि दस धर्म ते वीतराग भावरूप चारित्र आराधनाना भेद छे, जे निश्चय
सम्यग्दर्शन सहित होय छे.
श्री कार्तिकस्वामी नामे महामुनि भावलिंगी संत हता. तेमणे बार अनुप्रेक्षा नामे ग्रंथ लखेल
छे, जेमां सर्वज्ञ वीतराग कथित द्रव्यानुयोगनी मुख्यता सहित करणानुयोग, प्रथमानुयोग अने
चरणानुयोगनी पद्धति छे.
आ ग्रंथनी गाथा ३९४नी टीकामां आटलुं लखेलुं मळी आवे छे के ‘स्वामी कार्तिकेय मुनि क्रोंच
राजा कृत उपसर्ग जीती देवलोक पाम्या’ , ए बालब्रह्मचारी आचार्यवर बे हजार वर्ष पहेलां थई गया
एम पण कथन छे.
हवे प्रथम ज उत्तम क्षमा नेधर्म कहे छे–
केहिण जो ण तप्पदि सुरणर तिरएहिं कीरमाणेवि।
उवसग्गे वि रउदे तस्स खिमा णिम्मला होदि।।३९४।।
अर्थ:– जे मुनि देव–मनुष्ट–तिर्यंच (पशु) अने अचेतन द्वारा रौद्र, भयानक, घोर उपसर्ग थवा
छतां पण क्रोधथी तप्त न थाय ते मुनिने निर्मळ क्षमा होय छे.
अविनाशी ज्ञानानंद स्वरूपने ज पोतानुं स्व एटले धन माननार सम्यग्द्रष्टि अने वीतरागी
चारित्र वंत मुनि गमे तेवा घोर उपसर्ग देखी स्वरूपथी च्युत थता नथी.
कोई परद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव अनेकर्मनो उदय मारे माटे अनुकूळ प्रतिकूळ नथी. सर्वज्ञ
भगवाने कोईने माटे कोई पदार्थ ईष्ट अनिष्टकारी कदी जोयो ज नथी. जीव जाणनार स्वरूप छे. ज्ञेयो
जणाववा योग्य छे. कोई काळे कोई पदार्थोमां एवी छाप नथी के कोईने माटे अनुकूळ–प्रतिकूळ थई
शके. रागद्वेष, सुख–दुःख उपजाववानी कोई पर पदार्थमां योग्यता नथी पण अयोग्यता छे. जीव ज
पोतानुं ज्ञाता स्थिर स्वरूप भूलीने मोहथी जूठा नाम पाडे छे ते पोतानी भूलथी ज दुःखी थाय छे.
परना कारणे कांई पण कार्य थयुं एम निमित्त कर्त्तापणानो विकल्प ते उपचार ज छे, वास्तविक नथी.
ज्ञानी तो भेद विज्ञानना बळथी जाणे छे के हुं