सोनाना सिंहासन पर बिराजमान हता, पासे मंत्रीगण तथा अन्य सभासदो बेठा हता, नाचगान,
वाद्ययंत्रो तथा नुपुरोना ध्वनिथी बधानुं मन मुग्ध थई रह्युं हतुं. अचानक एक पूर्वभवनो वैर लेवाने
ईच्छक देव व्यापारीनुं रूप धारण करी चक्रवर्तीने फळ भेट करीने कहे छे के “राजन्! आपेआवुं मधुर
फळ कदी पण खाधुं नहि होय.” राजा फळ खाईने बहुज प्रसन्न थयो, ने तेने पूछे छे के ‘भाई! आवुं
सुंदर स्वादिष्ट फळ क्यांथी लाव्यो?’ व्यापारी कहे “चालो राजन अमारा देशमां; आपने आवा घणांय
फळ खवडावीश.” जुओ रसना ईन्द्रियनी लोलुपताने लीधे चक्रीनो विवेक तो नष्ट थई गयो हतो. तेणे
विचार पण न कर्यो के चक्रवर्ती समान भोग उपभोगनी सामग्री कोने मळी शके छे! पण ते तो तीव्र
आसक्तिवश ए फळने खावामां संपूर्ण सुख मानतो हतो तेथी विचारवा लाग्यो के बधी सामग्री होवा
छतां आ फळनी मारे खामी न रहेवी जोईए.
लागती हती. सुभौम चक्रीए विचार कर्यो के हुं एकलो जईश तो केटलांक फळ खाईश! माटे कुटुंब
सहित जाउं. चक्रीए विशाल चर्मरत्न नामे वहाणमां स्त्री–पुत्रादि सहित समुद्रमां प्रयाण कर्युं. हवे देव
मनमां खूब प्रसन्न थई रह्यो हतो के एकला राजाने नहीं पण तेना सर्व परिवारने हुं डुबाडी दईश. देव
विचारतो हतो के जेमनी पासे हजारो देव सेवक छे, नवनिधि अने चौदरत्नो छे तेने मारी नाखवो
कठण छे.
हृदय कंपवा लाग्युं, ते भयभीत थईने देवने पूछवा लाग्यो के हवे बचवानो कांई उपाय छे? पापी
राजाने पापनो उदय अने देवने दुष्ट बुद्धि उपजतां कह्युं के मध्य दरियामां बीजो तो कोई उपाय नथी,
पण आप अनादिनिधन नमस्कार मंत्र, अपराजितमंत्र,