Atmadharma magazine - Ank 229
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४८९ : २१ :
बस, अनित्यमां नित्य मानवानी बुद्धि, चक्रवर्ती हित–अहितनो विवेक तो पोताना घरनी बहार
नीकळ्‌यो हतो, पोतानी पासे सर्व संपत्ति अने अनुपम पुण्यनुं स्थान एवुं चक्रवर्ती पद हतुं तेनो
विवेक खोई बेठो अने अजाण्यानो विश्वास करीने ज्यां णमोक्कार महामंत्र लखीने पग वडे भूंसवा
लाग्यो त्यां पापनो रस अतितिव्र थवा लाग्यो अने नौका डूबवा लागी, त्यारे पूर्वनो वैरी देव कहेवा
लाग्यो के “हुं ते ज रसोयो छुं जेना उपर आपे गरम गरम खीर नाखी हती अने मारा प्राण तरफडी
तरफडीने नाश पाम्या हता, आर्त्तध्यानथी हुं व्यंतरजातिनो देव थयो छुं. अवधिज्ञानद्वारा पूर्वभवनुं
वैर याद आवतां तेनो बदलो लेवा माटे ज आ उपाय कर्यो छे.”
हवे पस्तावो कर्ये शुं वळे? चक्री पण आ अपमान जनक शब्दो सांभळीने तथा कुटुंब परिवार
सहित पोतानो घात जोई ए तीव्र संकलेश भावे मरण पामीने सातमी नरक गयो के ज्यां असंख्यात
असंख्य वरसनो एक सागर एवा ३३ सागरोपम वर्षनुं आयु छे. पोताना असली स्वरूपने भूली
जवा रूप तीव्र मोहवशे महान दुःखने त्यां भोगवे छे.
ज्ञानी निष्कारण करुणाथी संबोधन करे छे के अनंतानंत काळे महान दुर्लभ मनुष्यनो अवसर
पामवा छतां जे विषयोमां रमे ते राखने माटे रत्नने बाळे छे. अर्धुं आयु तो निद्रादि प्रमादमां, केटलुंक
पापमां अने थोडो वखत बाकी रहे ने कदाच कुधर्मने धर्म माननाराओ पासे जाय तो त्यां मिथ्या
मान्यता पुष्ट करीने जीवन लूंटावी दे छे. उपरांत ईन्द्रियोनी दासता, व्यसनोनी गुलामी (बीडी तमाकु
वगेरे पण व्यसनोमां गणाय छे), मिथ्यात्व तथा मानादि कषाय वशे जीवहित–अहितनुं भान खोई
बेसे छे.
जेओ लौकिक सज्जनतानो ख्याल पण न राखे, अभक्ष्य, अन्याय, अनीति द्रव्य–भाव हिंसा,
जूठुं परनिंदा आदि पापभावथी न डरे, आम स्वेच्छाचारथी वर्त तो दुर्लभ अवसर हारी ते केवळ
पापने ज बांधवावाळो थाय छे.
मिथ्यात्व अने क्रोध, मान, माया, लोभादि कषायनी प्रवृत्ति वडे पोताने क्षणे क्षणे भयानक
भावमरण थतुं तेनाथी बचवा माटे प्रथम तो सत् समागमद्वारा निर्मळ तत्त्वज्ञान प्राप्त करवुं जोईए.
सत्य सुख अंतरमां छे, तेने भूलीने दुःखने ज सुख मानवारूप खोटा उपाय वडे आ जीव
प्राप्तिनो उद्यम कर! उद्यम कर!! तेनाथी शुद्ध स्वरूपमां रुचि थशे, अने विषय कषाय आदि पापो
आपोआप टळवा लागशे.
“तुं रुचतां जगतनी रुचि आळसे सौ,
तुं रीझतां सकळ ज्ञायक देव रीझे.”