Atmadharma magazine - Ank 229
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म
वर्ष वीशमुं संपादक कारतक
अंक पहेलो जगजीवन बावचंद दोशी २४८९
श्री महावीराय नम:
दीपावलि – दिवाळीना दिवसे
अंतरमां एवा महा उज्वल ज्ञान दीपको प्रगटावो के जेथी अज्ञान अंधकारनो संपूर्णपणे नाश
थई जाय.
स्वरूपलक्ष्मीनी एवी पूजा करो के फरीथी जडलक्ष्मीनी जरूर ज न पडे. शारदा–सरस्वती–
भगवानना दिव्य ध्वनिनी अथवा भावश्रुत–केवळज्ञाननी एवी पूजा करो के फरीथी लौकिक
शारदापूजननी जरूर ज न रहे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी एवा निश्चय दिव्यरत्नो प्राप्त करो के जेथी पैदगलिक जड रत्नोनी
जरूर ज न रहे.
भगवाने कहेला अहिंसा–सत्य–अचौर्य–ब्रह्मचर्य–अपरिग्रहरूपी एवा अमूल्य आभूषणो
धारण करो के लौकिक आभूषणो धारण करवां ज न पडे.
आत्मसुख लावनार मंगलमय स्वकाल (स्व–अवस्था) प्रकट करो के फरीथी क््यारेय पण
अमंगल थवा ज न पामे. एवो आत्म स्वभावरूप पावन धूप प्रगटावो के जेनी सुवास चारे तरफ
फेलाय अने जेमां द्रव्य भावकर्म बळीने भस्मीभूत थई जाय के जेथी फरीने ते उत्पन्न ज न थाय.
आत्मानां अत्यंत मिष्ट, स्वादिष्ट अने अपूर्व प्रकारनां ज्ञानामृत भोजनएवां जमो के फरी
पौदगलिक मिष्टाननी जरूर ज न रहे. निर्वाण लाडु एवा चडावो के जेथी स्वरूपश्रेणी चडतां
अप्रतिहतभावे निर्वाणनी प्राप्ति थाय ज.
महावीर निर्वाण कल्याणक मंगल दिने एवुं आत्मिक महावीर्य अंतरमां उछाळो के जेथी
महावीर तुल्य दशानी प्राप्ति थई जाय. मोह–रागद्वेषना फटाकडा एवा फटफट फोडी नाखो के जेथी
संसारमां परिभ्रमण करीने ‘फटफट’ थवानो प्रसंग ज प्राप्त न थाय.
आत्माना असंख्य प्रदेशमां अनंत ज्ञानदीपको प्रगटे ते ज खरी दिवाळी छे अने आने माटे
सतत प्रयत्नशील रहेनार जीवे ज खरी दिवाळी उजवी कहेवाय.
आवी दिवाळी ऊजवनार ज खरेखर नित्य अभिवंदन तथा अभिनंदनने पात्र छे.
नू त न व र्षा भि नं द न.
सर्व जोवोने आत्मिक सुख समृद्धि हो
अने धर्म वात्सल्यमां अपार वृद्धि हो!
(श्री खीमचंदभाई शेठ)