कारतक: २४८९ : ७ :
माटे पण स्वरूपमां उग्रपणे विशेषपणे स्वभावनी एकाग्रता–शुद्धताना प्रभावरूप ज्ञानारथमां आरूढ
थई अंतरगतिमां गमन करी रह्यो छे.
सम्यग्द्रष्टिजीव टंकोत्कीर्ण एटले अनादिअनंत एकरूप पूर्ण ज्ञानघन एवा एकला ज्ञायकभावने
कारण आधार बनावीने तेमां ज निर्मळ श्रद्धा–ज्ञान अने एकत्व करतो होवाथी जिनज्ञान–वीतरागी
ज्ञाननी पोतामां प्रभावना करे छे. ध्रुव, अखंडित कारणज्ञान स्वभावना आलंबनरूप निर्मळ श्रद्धा–
ज्ञानएकाग्रता ते निश्चय प्रभावना छे, तेना वडे ज वीतरागी विज्ञान धनदशाने समये समये प्रगट
करी रह्यो छे, तेने साची प्रभावना कहेवाय छे. त्यां मंद प्रयत्नना काळे शुभराग आवे छे ते तो
व्यवहार प्रभावना छे. पुण्यबंधनी क्रिया छे. जिनेन्द्र भगवानने रथमां बिराजमान करी पूजा भक्ति,
तथा जिनमंदिर, शास्त्र वगेरे संबंधी शुभभाव आवे छे ते निश्चयधर्मवाळानी व्यवहार प्रभावना
कहेवामां आवे छे.
पुस्तक लखावे, शास्त्रज्ञाननी प्रभावनानो शुभभाव आवे पण ए मूळ प्रभावना नथी. पण
भेदज्ञान सहित स्व सन्मुखज्ञानने भाववुं–पर्यायमां शुद्धिनी वृद्धि प्रगट करवी ते खरी प्रभावना छे.
एवो निश्चय धर्म चोथा गुण स्थानकथी (गृहस्थदशामां हो के चारे गतिमां गमे त्यां हो) प्रगट थई
शके छे.
ज्यां द्रष्टिमां, श्रद्धामां वीतरागता उपरांत अंशे चारित्रमां निश्चय वीतरागता होय एने
सम्यग्दर्शननो गुण निःशंकितादि लक्षणरूपे होय छे.
भावार्थ– धर्मीने अंतरमां केवळ ज्ञाननिधानने प्रगट करवानो प्रयत्न वर्ततो होय छे.
स्वसन्मुख ज्ञातापणुं ते पुरुषार्थ छे. भले वार लागे पण स्वाश्रय एकाग्रतारूप श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र,
आनंद अने वीर्यनी पर्यायनी शुद्धता थती जाय छे. एवी प्रभावनाने साची (निश्चय) प्रभावना कहे
छे. सम्यग्ज्ञानी एवी प्रभावना करे ज छे तेथी तेने धर्मनी अप्रभावनाकृत बंध थतो नथी पण पूर्वे
अज्ञानदशामां बंधायेला कर्मोनी निर्जरा ज थाय छे.
मार्ग प्रभावना एटले, तेनो उद्योत करवो, महिमा वधारवो, धर्मने विशेष उज्जवळ करवो,
धर्मनो शोभा वधे तेम करवुं पण ए कार्यने शेमां करवुं? के ज्यां ते होय त्यां कल्याणमार्गनी प्रवृत्ति
करवी. ते स्थान देहमां, देहनी क्रियामां, वाणीमां अने शुभाशुभ रागमां के व्यवहारमां नथी केमके ते तो
आत्माथी भिन्न–बहारनी चीज छे, तेमां आत्मा नथी. परथी अने रागथी भेदज्ञानवडे अंदरमां अखंड
ज्ञानस्वभावने निश्चयद्रष्टिनुं ध्येय बनावी तेमां श्रद्धाज्ञान अने एकाग्रतानुं बळ फेलावीने, प्रगट
पर्यायमां पोते बळवान थाय तो तेनी अंदर शुद्धि अर्थात् निर्जरा थाय छे. त्यां भूमिकाने योग्य
प्रभावनानो शुभ राग आवे तेने व्यवहार प्रभावना पण नथी. अनुपचार निश्चयधर्म विना उपचार
(आरोपीत) शुभ रागमां व्यवहारधर्मनो आरोप आवतो ज नथी. चोथा गुणस्थानथी ज
निश्चयधर्मनी शरूआत थाय छे.
आ गाथामां स्वाश्रित निश्चय प्रभावनानुं स्वरूप कह्युं छे. जेम जिनबिंबने रथमां स्थापीने
महान उत्सव सहित नगर, वन वगेरेमां फेरवी, शास्त्रो वगेरे द्वारा व्यवहार प्रभावना करवामां आवे
छे तेम जे सम्यग्ज्ञानरूपी रथमां पूर्णस्वरूप आत्माने स्थापी अंदरमां एकाग्र ज्ञानवडे मनन करे छे ते
ज्ञाननी प्रभावनायुक्त सम्यग्द्रष्टि छे, ते निश्चय प्रभावना करनार छे.
गाथा २२९ थी २३६ ए आठ गाथामां सम्यग्द्रष्टि ज्ञानीने नित्य स्वभाव आश्रित निश्चय,
निःशंकितादि आठ गुणो निर्जराना कारण कह्या. एवी ज रीते अन्य