: १० : आत्मधर्म: २३०
आश्रय, महिमा कर, पराश्रयनी पामरता छूटी जशे.
अहो! चैतन्य... तारी ऋद्धि तारामां ज छे. अनंत, बेहद, अपार ज्ञानानंदनो खजानो तारामां
सदाय निकट अने विद्यमान छे. “ ज्यां चेतन त्यां सकळ गुण केवळी बोले एम, प्रगट अनुभव
स्वरूपनो, निर्मळ करो सप्रेम रे, चैतन्य प्रभु, प्रभुता तारी रे चैतन्य धाम.”
दरेक आत्मा असंख्य प्रदेशी छे. तेनुं असली स्वरूप शरीरथी, रागथी, पुण्यथी–व्यवहार
रत्नत्रयथी भिन्न छे. ज्ञानानंद स्वभावथी तुं अस्तिपणे छो अने तारामां व्यवहार, निमित्त
पुण्यपापनी नास्ति छे, एवा स्वतंत्र अस्तिनास्ति स्वभाववडे सदाय स्वतंत्र छो.
दरेक आत्मानी अनंतगुणसंपन्न प्रभुता निर्मळ छे, तेमां एकत्वनी द्रष्टि करी, तेमां ज निर्मळ
प्रेम करो. व्यवहार निमित्त तेना स्थानमां होय छे पण तेनी रुचि छोडी दे तो ज पूर्णस्वभावना लक्षे
पूर्णनी रुचि छोडी दे तो ज पूर्णस्वभावना लक्षे पूर्णनी रुचि अने सम्यग्दर्शन थशे. बीजी कोई रीते
दुःखथी छूटी शकातुं नथी. बाह्यमां पुण्यमां, देहनी क्रियामां, रागमां अंशमात्र चैतन्यनो सदभाव नथी.
बहारमां हा–हो अने हरीफाई, मान बडाई, कामभोग बंधननी वात मळशे.
अरे! भगवान आत्मा, तुं परना कारण–कार्यपणे नथी. आ महा सुगमसिद्धांत छे.
समयसारजीमां ४७ शक्ति बतावीने ४७ कर्म प्रकृत्तिनो नाश अने सर्वज्ञपदनी प्राप्ति करवानो उपाय
बतावी दीधो छे. भेदज्ञान वडे प्रथमथी ज श्रद्धामां सर्व प्रकारना रागनो त्याग अने सर्वज्ञ वीतराग
स्वभावनो आदर करवानी वात छे. राग होवा छतां, ज्ञानी तेने हेयपणे जाणे छे. जो कोई पण जातनो
राग हितकर छे एम माने, परद्रव्यथी लाभ नुकशान थई शके, हुं परनुं कार्य करी शकुं छुं– एम माने
तेने आत्मानी एक पण शक्तिनी प्रतीति नथी.
अरे प्रभु, एकवार स्वतंत्रतानी श्रद्धा तो कर! मारो आत्मा रागनुं कारण नथी अने रागना
कारणथी निमित्तथी, निर्मळतारूपी कार्य थाय एवो कोई गुण मारामां नथी. जे रागथी, निमित्तथी लाभ
माने छे तेने सम्यग्दर्शन नथी; सम्यग्दर्शन विना व्रत, चारित्र, निश्चय के व्यवहार कांई होय नहीं.
मांडमांड महा दुर्लभ पळे सत्य सांभळवा मळे तो उपेक्षा करे के आ तो निश्चयनयनी कथनी छे.
धर्मना नामे बहारमां खूब धन खर्चे पण प्रवचनमां बेसे तो झोला खाय, ऊंघे ते सत्य असत्यनो
निर्धार क््यांथी करे अने अंदर स्वसन्मुख थई साचुं परिणमन क््यांथी करे?
आत्मा आदि छये द्रव्य, दरेक द्रव्यना गुण पर्याय परथी करायेला नथी, पण अकृत्रिम छे; छे
तेने कोण करे? पर्याय तो नवी नवी थाय छे, तेने कोण करे? पर्याय तो नवी नवी थाय छे, ते कार्यनो
नियामक कोई जड कर्म अथवा भगवान कर्ता छे? ना, केमके वस्तु अनादिअनंत स्वयंसिद्ध छे, ने तेनी
शक्तिओ पण अनादि अनंत स्वयंसिद्ध छे. प्रत्येक समये अनंता गुणनी पर्यायो उत्पाद व्ययरूपे
बदल्या ज करे छे, तेथी कह्युं छे के वस्तुनी शक्ति कोई अन्य कारणोनी अपेक्षाराखती ज नथी. अन्यने
कारण कहेवुं ते तो निमित्त बनाववा माटेनुं व्यवहार कथन छे.
खरेखर द्रव्य गुण पर्याय, दरेक द्रव्यमां पोताना सतपणाथी ज छे; परथी, रागथी नथी. तेथी
जीवमां पण तेनी पर्याय अशुद्ध हो के शुद्ध हो, तेनो कर्त्ता तेनी साथे तन्मय रहेनार द्रव्य ज छे. पण तेनो
कर्ता कोई ईश्वर के जडकर्म नथी. अन्यमति ईश्वर, ब्रह्मा, विधाता ने कर्त्ता मानेछे तेम जैन नाम धरावीने
पोताने परना कार्यनो निमित्तकर्त्ता माने, जड कर्म जीवने रागद्वेष, सुखदुःख करावे एम माने ते पण दरेक
द्रव्यनी स्वतंत्रतानो नाश करनार मिथ्याद्रष्टि छे. ते पोतामां मिथ्या मान्यतानो कर्त्ता थई शके छे.
निमित्तथी कार्य थतुं होय तो साक्षात् परमात्मा