Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४८९ : ११ :
तीर्थंकरदेव पासे समवसरणमां (धर्मसभामां) गयो त्यां केम साचुं ज्ञान न थयुं? शुं भगवान
पासे कोईनुं कल्याण राखी मुकयुं छे के आपी दे? सर्वज्ञ कांई आत्माने हाथमां पकडीने बतावे
एवुं नथी. जो सर्वज्ञ भगवानथी कल्याण थतुं होय तो एक ज्ञानी बधाने तारी दे, पण एवुं कदी
बनतुं ज नथी. भगवान तो प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा जोईने कहे छे के तुं मारा जेवी पूर्ण बेहद शक्तिनो
स्वामी छो. तारामां अकार्य कारणत्वशक्ति पडी छे, ते दरेक समये तारी स्वतंत्रता बतावे छे. देव,
शास्त्र, गुरु अने शरीर बधा परद्रव्य छे. क्षायिक सम्यक्त्व श्रद्धागुणनी पर्याय ताराथी छे,
परद्रव्यने कारणे नथी. रागरूपी कार्यमां सम्यग्दर्शन कारण नथी. स्वद्रव्यना आलंबन अनुसार
जेटली वीतराग परिणति प्रगट थई ते पण रागनी क्रियानुं कारण नथी. अन्य तो निमित्त मात्र
छे. उपादान निमित्तना झगडा अज्ञानमां चाले छे. वस्तुनी कोई शक्ति अन्य कारणोनी अपेक्षा
राखती नथी, तथा अन्यनुं कार्य करे एवी शक्ति (योग्यता) वस्तुमां नथी. एम निर्णय करे तो
ज स्वद्रव्यने ओळखी शके अने स्वाश्रित द्रष्टिवडे सम्यग्दर्शन थाय. निर्मळ पर्यायरूपी कार्य
स्वद्रव्यथी ज थाय छे; शरीरथी मन, विकल्प, वाणीथी नहीं–एवी स्वतंत्र वस्तुस्थिति ख्यालमां न
आवे तो सम्यग्दर्शन थाय नहीं.
स्वतंत्रताथी शोभायमान अनंतशक्तिनो धारण करनार हुं आत्मा छुं तेमां स्वसंवेदन ज्ञान
प्रगट न करे तो शुभराग अने निमित्तनो पक्ष छूटे नहीं. धर्म माटे तेना मानेला विधिविधान
अनंतवार कर्या तो पण आत्महितरूप कार्य कदी थयुं नथी. साची वात काने पडे तेथी शुं? मजुर लोकोने
त्यां बारोट आवे छे ते तेना सेंकडो हजारो वर्ष जुनी पेढीना वंशनुं वर्णन वांची संभळावे छे पण
आखा दिवसना श्रमथी थाकेला ते मजुर लौक हुका बीडी अने वातोमां मशगुल रहे छे त्यारे बारोट
तेने कहे छे के तमारा वडीलो महान प्रतापी थई गया तेना वखाण संभळावुं छुं, सांभळो तो खरा. तो
ते कहे छे के “लवती गला” अर्थात् तमे तमारुं बोलता जाओ, अमे अमारुं करीए छीए. एम
आचार्यदेव संसारी दुःखी प्राणीने सत्य संभळावे छे के तारा कूळमां ज सर्वज्ञ पिता द्रव्य छे तेमां केटली
शक्ति छे, तेनुं स्वरूप शुं छे, ते आचार्यदेव तने समजावे छे. अरे! तारी अपार शक्तिनी महिमा
बताववामां आवे छे.
अखंड द्रव्यस्वभाव उपर द्रष्टि करवाथी निर्मळ पर्याय थाय छे–ए अपूर्व वात चाले छे.
संसारनी रुचिवाळा कहे छे के आपनी पासे बहु ऊंची भूमिकानी वात छे, ते हमणां नहीं, अमारे माटे
नहीं, तो एम माननारनो अमूल्य समय ‘लवतीगला’ कहेनारनी माफक तत्त्वनो अनादर करवामां
जाय छे.
अहो! आत्मानी पर्यायने राग कारण नथी अने रागमां आत्माद्रव्य कारण नथी. परनी
पर्यायमां पण हुं कारण नथी–एम प्रथम निर्णय करे ते जीव स्वसन्मुख थईशके. सम्यग्दर्शन अतीन्द्रिय
आनंदना अनुभव सहित प्रगट थाय छे–ने तेमां विशेष आनंद ऊछाळवो ते चारित्र छे.
बाह्यमां, शरीरनी अथवा शुभरागनी क्रियामां, विकल्पमां आत्मानुं चारित्र नथी–एम
भगवाने कह्युं छे.
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