हलाववानुं, परवस्तुने पकडवानुं, प्रेरणा, प्रभाव पाडवानुं आदि कोई काम करी शकतो नथी. भाषा
वर्गणाथी भाषा थाय छे. ईच्छा निमित्त मात्र छे. कोई रीते भाषानुं कार्य जीवनुं नथी. पण अमे
प्रत्यक्ष जोईए छीए के माणसो डुंगरा तोडी नाखे छे, नदीना प्रवाहने आडाअवळा करी नाखे छे ने?
ते तेनी संयोग तरफथी जोवानी द्रष्टि ज विपरीत छे. परद्रव्यमां प्रत्यक्ष नथी. ज्ञानमां प्रत्यक्ष परोक्ष छे.
संयोगी द्रष्टिवाळो बे जुदा द्रव्यने जुदा एटले स्वतंत्र मानतो नथी, बेने एक मानीने देखे छे; तेथी ते
शास्त्रना अर्थ पण विपरीत करे छे ने सर्वत्र ऊंधुंं ज देखे छे.
एनो अर्थ एम नथी, पण आवुं कार्य थवा काळे क्या जीवने केवी जातनो राग हतो, तेमां निमित्त
कोण हतुं ते बताववा व्यवहारनुं कथन छे.
ज छे. स्त्री, पुत्र, मकान, वस्त्र, पुस्तक आदि कोईना कार्य तेमज नजीकमां एक क्षेत्रे रहेल शरीरना
कार्य पण आत्मा करी शकतो ज नथी.
परने जाणी शके छे पण परनुं कांई करे ने पर पोतानुं कांई करे एवो कोईगुण अर्थात् योग्यता
आत्मामां नथी. संयोगद्रष्टि, स्थूल द्रष्टिवाळाने आ वात बहु कठण पडे छे; केमके दरेक द्रव्य तेना गुण
पर्यायथी सत् छे, परथी नथी–ए अनेकान्त सिद्धांत तेओए जाण्यो ज नथी.
समय पण कोईनी राह जोवी पडती नथी. आ परम सत्य अने स्वतंत्र सत्तानी वात संयोग तरफथी
जोनारने संयोगमां एक्ता बुद्धिवाळाने बेसती ज नथी, वस्तुना सत्स्व्रूपने नहीं माननार स्वसन्मुख
थई शकतो नथी, निज शक्तिनो महिमा जोई शकतो नथी, तेथी दुःखी थाय छे. सुखदुःखनुं खरूं स्वरूप
अने कारण जाणे नहीं, तो दुःख मटे नहीं.
अर्थ एम नथी के सत्य न समजवुं अने स्वच्छंदमां, पापमां वर्तवुं.
माने के हुं छुं तो तेनुं कार्य थयुं वगेरे. पण एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कोई रीते कांई करी शके नहीं.
खरेखर परना कार्यनो कर्ता थई शकतो होय तो बे