Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४८९ : १३ :
दूध आपे एम बनवुं अशक्य छे, तेम आत्मा सदा अमूर्त्तिक होवाथी शरीरनुं, वचननुं, हाथ पग
हलाववानुं, परवस्तुने पकडवानुं, प्रेरणा, प्रभाव पाडवानुं आदि कोई काम करी शकतो नथी. भाषा
वर्गणाथी भाषा थाय छे. ईच्छा निमित्त मात्र छे. कोई रीते भाषानुं कार्य जीवनुं नथी. पण अमे
प्रत्यक्ष जोईए छीए के माणसो डुंगरा तोडी नाखे छे, नदीना प्रवाहने आडाअवळा करी नाखे छे ने?
ते तेनी संयोग तरफथी जोवानी द्रष्टि ज विपरीत छे. परद्रव्यमां प्रत्यक्ष नथी. ज्ञानमां प्रत्यक्ष परोक्ष छे.
संयोगी द्रष्टिवाळो बे जुदा द्रव्यने जुदा एटले स्वतंत्र मानतो नथी, बेने एक मानीने देखे छे; तेथी ते
शास्त्रना अर्थ पण विपरीत करे छे ने सर्वत्र ऊंधुंं ज देखे छे.
शास्त्रमां व्यवहारना कथन घणा आवे छे. रुद्धिधारी मुनिने शुभ तैजस समुद्रघातनी ईच्छा
थाय तो ऋद्धि द्वारा रोग–दुकाळ मटाडी, ते क्षेत्रमां प्रजाने निरोग अने सुकाळ थई जाय. रोग मटाडे
एनो अर्थ एम नथी, पण आवुं कार्य थवा काळे क्या जीवने केवी जातनो राग हतो, तेमां निमित्त
कोण हतुं ते बताववा व्यवहारनुं कथन छे.
सामा पदार्थमां जेकाळे जे शक्ति एटले योग्यता छे ते तेना काळे ज प्रगटे छे. दरेक पदार्थ
पोताथी ज टके छे ने निरंतर नवीनवी अवस्थापणे बदले छे. आवो वस्तुस्वभाव छे तेने करे कोण?
ज्ञानी आवुं स्वतंत्र स्वरूप जाणे छे. अनंता परद्रव्योथी हुं नकामो छुं. हुं परना काममां आवी
शकुं? अशक््य छे. अने अनंता परद्रव्यो अथवा कोई पण परद्रव्य मारे माटे–मारा कार्य माटे निरर्थक
ज छे. स्त्री, पुत्र, मकान, वस्त्र, पुस्तक आदि कोईना कार्य तेमज नजीकमां एक क्षेत्रे रहेल शरीरना
कार्य पण आत्मा करी शकतो ज नथी.
एक आत्मा बीजा आत्मानुं कोई कार्य करी शकतो नथी, पण पोतामां ज रागादि अथवा
पराश्रयनी मान्यता अने कर्तृत्व–ममत्त्व करी शके छे. ज्ञायक शक्तिवडे जाणनार स्वरूप होवाथी स्व–
परने जाणी शके छे पण परनुं कांई करे ने पर पोतानुं कांई करे एवो कोईगुण अर्थात् योग्यता
आत्मामां नथी. संयोगद्रष्टि, स्थूल द्रष्टिवाळाने आ वात बहु कठण पडे छे; केमके दरेक द्रव्य तेना गुण
पर्यायथी सत् छे, परथी नथी–ए अनेकान्त सिद्धांत तेओए जाण्यो ज नथी.
एक द्रव्यमां बीजा पदार्थना द्रव्य–गुण–पर्यायनो अत्यंत अभाव छे, दरेक द्रव्यना दरेक गुणनी
पर्याय स्वमां स्वयं छ कारक शक्तिवडे दरेक समये उत्पादव्यय कर्या ज करे छे; तेना कार्य माटे एक
समय पण कोईनी राह जोवी पडती नथी. आ परम सत्य अने स्वतंत्र सत्तानी वात संयोग तरफथी
जोनारने संयोगमां एक्ता बुद्धिवाळाने बेसती ज नथी, वस्तुना सत्स्व्रूपने नहीं माननार स्वसन्मुख
थई शकतो नथी, निज शक्तिनो महिमा जोई शकतो नथी, तेथी दुःखी थाय छे. सुखदुःखनुं खरूं स्वरूप
अने कारण जाणे नहीं, तो दुःख मटे नहीं.
अज्ञानी क्रोड वर्ष तेना व्रत, तप, भक्ति, जाप वगेरेना शुभभाव कर्या करे तो पण ते मंद
कषायमां मिथ्यात्वरूपी प्रथम नंबरनुं मोटुं पाप (अर्थात् दुःख) मटाडवानी पण ताकात नथी. आनो
अर्थ एम नथी के सत्य न समजवुं अने स्वच्छंदमां, पापमां वर्तवुं.
कोई जीव बीजानुं भलुं बुरूं करी शके नहीं, पण राग दशा तेने छे ते जातनो शुभ अशुभराग
आव्या विना रहे नहीं. जीवमोहथी माने के आनुं करूं, आनुं बगाडुं, सुधारूं; वगेरे एम राग आवे,
माने के हुं छुं तो तेनुं कार्य थयुं वगेरे. पण एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कोई रीते कांई करी शके नहीं.
खरेखर परना कार्यनो कर्ता थई शकतो होय तो बे