Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४८९ : १प :
आ गाथामां आचार्यदेव कहे छे के कोई जीव ज्ञानवडे परनुं कांई करी शकतो नथी. राग–
ईच्छावडे पण परनुं कांई करी शकतो नथी. अहो! आत्मा नजीकमां रहेला जड देहनी पण कोई क्रिया
करी शकतो नथी; मात्र अहंकारथी माने छे.
प्रश्न: जो एम छे तो लोको गमे तेवा पाप करशे. कोई दया, दान, पुण्य नहीं करे!
उत्तर: परनुं करवुं, न करवुं जीवने आधीन नथी पण आत्मा पोते ज पुण्य पापना भाव करी,
अविवेकथी ऊंधुंं मानी शके छे.
एकांत नियतवाद, क्रमबद्धपर्यायनुं नाम लई, अथवा कर्मना उदयनुं नाम लई, शरीरनी क्रिया
तो कामभोग आदिरूप थवानी ज हती तेमां आत्माना भला भूंडा भावने कंई संबंध ज नथीएम
मानी कोई स्वच्छंदी थाय तो ते पापनेत्र बांधी नर्क निगोदमां जशे. आ अपात्र जीवनुं द्रष्टांत आपी
द्रव्यानुयोग शास्त्रना उपदेशनो निषेध करे छे तेओ मूळभूत सत्यनो निषेध करे छे.
निमित्त कर्तानुं कथन आवे, एवो राग आवे पण निमित्तद्वारा कोई कार्य थाय छे ए वात
त्रणकाळ त्रणलोकमां असत्य छे. अहीं तोआचार्यदेव स्वतंत्रतानो सत्य सिद्धांत बतावी वीतरागता ज
बतावे छे. परमां अने रागादिमां एकताबुद्धि, कर्त्ताबुद्धि छोडी, अकर्त्ता एटले स्वसन्मुख ज्ञातापणामां
ज सुख छे एम बतावे छे.
अहीं स्पष्ट कह्युं छे के आत्मा पोतानी स्वभावी दशाना सामर्थ्यद्वारा के रागादि विकारी
पर्यायना सामर्थ्यद्वारा परनुं ग्रहण त्याग करी शकतो नथी; केमके जीव परमां कर्त्ता थवाने अलायक छे,
असमर्थ ज छे, अने जाणवारूप कार्यमां परिपूर्ण समर्थ छे.
क्रोध, मान, माया, लोभ, हर्ष, शोकद्वारा अथवा ज्ञानद्वारा शरीरनी अवस्थाने, परनी
अवस्थाने आत्मा पलटावी दे ए अशक््य छे. त्रण दिवस हुं मौन रहीश, पछी बोलीश, तमारे हळवेथी
बोलवुं, जोरथी न बोलो पण बोले कोण? ए बधी भाषावर्गणाना पुद्गलोनुं कार्य छे, जीव तो ईच्छा
अने परमां कर्त्तापणानुं अभिमान करे अथवा विवेकवडे साचुं ज्ञान करी शके छे. अविवेक, राग, द्वेष,
विषयवासनानो भाव पापभाव छे–एवा पापभाव करे छे पोते अने माने ए तो शरीरनी क्रिया छे.
अथवा जडकर्मना उदयथी थाय छे, मारा भावमां दोष नथी तो ते महामूढ छे.
शास्त्रनुं अने उपदेशनुं तात्पर्य स्वतंत्रता, यथार्थता, वीतरागता ग्रहण करवा माटे ज छे, तेने
बदले पापनी रुचि पोषवा तेनी ओथ ले ते पापी ज छे अने एवा स्वच्छंदीनुं नाम लई सत्य
सिद्धांतनी मश्करी करे ते पण पापी ज छे, धर्मनो विरोध करनारा छे. पुण्य पाप बहारथी आवतुं नथी.
बहारनी चीज तेना काळे आवे छे. निमित्तनो संयोग, वियोग आत्मा करी शकतो नथी. परना
कार्यमां कर्त्तापणुं माननार सर्वज्ञने मानतो नथी. परना कार्यमां कर्त्तापणुं माननार सर्वज्ञने मानतो
नथी, सर्वज्ञ कथित तत्त्व शुं तेनी तेने खबर नथी. तत्त्वार्थोने जाणी जीवनो कोई अंश जीवमां न
भेळवे, व्यवहारथी कर्ता एटले परद्रव्य कोईनुं कर्त्ता हर्ता छे नहीं पण निमित्तमात्र छे–एम जाणी,
सर्वत्र स्वतंत्रता स्विकारीने पोताना आत्मामां वीतरागी द्रष्टि अने शान्ति प्रगट करवी ते एक ज
प्रयोजन छे.
आत्मामां एवो कोई गुण नथी के ईच्छाद्वारा, ज्ञानद्वारा, परनुं कांई करी शके. ज्ञानावरणीय
आदिकर्म अने शरीरादिनोकर्म छे ते तेनी बंधन–मुक्तिरूप शक्ति सहीत छे, ते तेना कर्त्ता आदि छये
कारणोथी पलटे छे, जीव वडे तेनुं ग्रहण त्याग थई शक्तुं नथी; केमके आत्मा सदाय अमूर्त्तिक ज छे.