उत्पाद–व्यय ध्रुवरूप सतपणानो नाश थाय अथवा तेनो स्वभाव बीजा निमित्तमां आवी जवो
जोईए. समयसारजी गा. ३७२मां आचार्यदेवे स्पष्ट कह्युं छे के कोई रीते अन्य द्रव्यथी अन्य
द्रव्यना कार्यनी (पर्यायनी) उत्पति करी शकाती ज नथी, तेथी ए सिद्धांत छे के सर्व द्रव्यो
पोतपोताना स्वभावथी दरेक समये उत्पाद–व्ययरूप पोताना कार्यने (परिणमन) करे छे, तेमां
अन्यने कर्ता कहेवो ते तो कहेवा मात्र ज छे. टीकाजीवने पर द्रव्य रागादि अथवा ज्ञानादि उपजावे
छे एम शंका न करवी; कारण के अन्य द्रव्यवडे अन्य द्रव्यना पर्यायोनो उत्पाद कराववानी
अयोग्यता छे, जडकर्म जीवने रागादि कराववामां नालायक छे केमके दरेक द्रव्य पोतपोतानी शक्ति
सहित होवाथी पोताना स्वभावथी ज –पर्याय धर्मथी ज ऊपजे छे.
द्रव्यना आधारे काम कर्युं छे. जीवने ईच्छा थई माटे पुस्तक लखाणुं एम नथी, पण तेमां तेना
कारणे कार्य थयुं त्यारे तेमां ईच्छावान जीव निमित्त होय छे एम ज्ञान कराववा व्यवहारथी कर्ता
कहेवानी रीत छे.
दरेक द्रव्य दरेक समये उत्पाद–व्ययरूप निज पर्यायना कर्ता छे. अन्य तो बीजाना कार्य माटे
नालायक ज छे. एज रीते आत्मा भाषानी पर्याय माटे अलायक छे. आ वखते आविकल्पने
(रागने) लावुं एने माटे पण आत्मा अलायक छे, पंगु छे.
जीवमां बीजा द्रव्यनी पर्याय रचवानी ताकात त्रणकाळ त्रणलोकमां नथी.