Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 25

background image
: १८ : आत्मधर्म: २३०
ईच्छानो कर्ता थई शके पण परना कार्यनो कर्ता कोई अन्य द्रव्यथी थई शकातुं नथी. संयोगद्रष्टिवाळा
जीवो वस्तुमां उत्पाद–व्यय–ध्रुवशक्तिथी संपूर्ण सत्पणुं छे ए सिद्धांत मानता ज नथी.
आचार्यदेवे अने सर्वज्ञदेवे तो स्पष्टपणे जाहेर कर्युं छे के दरेक पदार्थने पोताना स्वभावथी
अज्ञानी परमां अने परथी कर्तापणुं देखे छे, तेना तेवा मिथ्या प्रतिभासने असत्यार्थ कहेल छे.
खरेखर द्रष्टिथी जोतां कोई कोईने असर–प्रेरणा करे, परमां प्रभाव उत्पन्न करे–करावे ए वात तद्न
असत्य छे, केमके एक द्रव्य अन्य द्रव्यनी पर्याय करवा कराववामां अलायक अयोग्य छे, नालायक छे.
घडारूपी कार्य थाय छे तेमां माटी ज स्वयं पोताना स्वभावथी परिणमती (थती) जोवामां आवे छे,
कारण के माटी पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यरूप सत् स्वभावने नहीं ओळंगती होवाथी अर्थात्
पर्यायधर्म तथा द्रव्यधर्मने नहीं छोडती होवाथी आदि–मध्यअंतमां पोते कर्ता छे पण कुंभार घडाना
कार्यनो उत्पादक छे नहीं.
जैनदर्शननो मर्म अकर्तापणुं छे. व्यवहारनयथी निमित्तकर्तानुं कथन आवे पण घडानी पर्यायनो
कर्ता कुंभार नथी, केमके माटी ज पोताना स्वभावथी स्वपर्यायनी लायकात–योग्यता (सामर्थ्य) थी
तेना कार्य काळे स्वयं पलटीने घटरूपे थाय छे. निमित्त छे माटे उपादानमां कार्य थाय छे, निमित्त न
होय तो कार्यनो प्रवाह अटकी जाय, वहेलो–मोडो थाय–ए मान्यता असत्य छे.
वस्तुनी मर्यादा बताववा माटे आचार्यदेवे सिद्धांत बतावी दीधो के–एक द्रव्य बीजा द्रव्यनी
पर्यायनो कर्ता थई शकतुं नथी–केमके परना काम माटे दरेक द्रव्य अयोग्य छे.
आचार्ये पुस्तक बनाव्युं ज नथी. त्रणेकाळे ए नियम छे के परमाणुनी शब्दादिरूपे अथवा
अनेक आकार अने गतिस्थितिरूपे परिणमवानी शक्ति ते ते पुद्गल द्रव्योमां छे, जीवमां नथी. आम
सत्य सिद्धांत नक्की करतां ज अनंत पर द्रव्यनी कर्ताबुद्धि ऊडी जाय छे अने स्वभावमां सत्य
समाधान अने शान्ति थाय छे. सर्वज्ञे कह्युं छे के कोई द्रव्यमां परना कार्य करवानी के निमित्त थईने
करवानी योग्यता नथी पण अयोग्यता ज छे.
आत्मा ज्ञाता ज छे, कर्तापणानुं अभिमान करे तो करे पण हाथ–पग अथवा लाकडुं ऊंचुं
करवानी लायकात आत्मामां नथी. छतां जे परनां कर्तापणुं माने छे ते ज्ञाता स्वभावनो तिरस्कार
करनार आत्मघाती महापापी छे–एम सर्वज्ञ भगवाने कह्युं छे.
अन्यमति जगतनो कर्ता ईश्वर गणीने तेने निमित्त–कर्त्ता माने छे तेम जे कोई जैन नाम
धरावीने पण शरीरादिनी क्रियामां जीव निमित्त कर्ता थाय एम माने तो ते बे क्रियावादी मिथ्याद्रष्टि छे,
कारणके तेणे अनंत परद्रव्यने पराधीन मान्यां उत्पाद–व्यय ध्रुवरूप सत्नी ताकातने तेणे मानी नहीं.
दवामां ताकात नथी के बीजाना रोग मटाडे शुं पदार्थमां पोतानी शक्ति नथी के बीजो तेना
उत्पादव्ययरूपकार्यने करे? भाषामां एवी ताकात नथी के जीवने ज्ञान उपजावे.
ज्ञानावरणीय कर्मना उदयमां एवी ताकात नथी के ते आत्माना ज्ञाननी पर्यायने हीणी करे,
पण जीव स्वयं पोतानी पर्यायनी योग्यताथी हीणी पर्याये परिणमे छे तो कर्मनो उदय निमित्तपणे
गणाय छे.