मागशर: २४८९ : १९ :
कोई कहे दर्शन मोहनीयकर्मना उदय विना मिथ्यात्व थतुं होय तो बतावी आपो, धर्मास्तिकाय
विना जीव–पुद्गलमां गतिरूप क्रिया थाय एम बतावी आपो–एम संयोगद्रष्टिवाळा वस्तुने पराधीन
माने छे, पण कोईनी ताकात नथी के बीजाने परिणमावे कर्मना उदय अनुसार डीग्री टु डीग्री जीवने
विकार थाय एम माननार बे द्रव्यने एक माननार मिथ्याद्रष्टि छे.
प्रश्न:– एक जण एक दिवसमां घणुं याद करी शके छे, बीजो घणा दिवसमां एक श्लोक पण याद
न करी शके–तेमां कर्मनुं जोर हशे ने?
उत्तर:– ना, ते प्रकारनी ज्ञाननी पर्यायनो उत्पादक ते जीव छे, एम देखवामां आवे छे. आचार्य
देव कहे छे के कुंभार पोतामां ईच्छा अने अज्ञानभाव करी शके छे पण घडानी अवस्था पण ते करे छे
एम अमे जोता नथी.
प्रश्न:– व्यवहारथी निमित्त तो छे ने? ना, जुओ, समयसारजी गा. ३७२ मां कह्युं छे के कोई
रीते अन्य द्रव्यथी अन्य द्रव्यना कार्यनी (पर्यायनी) उत्पत्ति करी शकाती नथी, तेथी ए सिद्धांत छे के
सर्व द्रव्यो पोतपोताना स्वभावथी ज एटले उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य स्वभावथी ज पोताना कार्यने करे छे,
अन्यने कर्ता कहेवो ते तो कहेवा मात्र छे, निमित्तनुं ज्ञान कराववा व्यवहारनयनी ए रीत छे,
निश्चयनय तेनो निषेध करे छे केअन्य कर्ता नथी ज.
श्रेणिक राजाने क्षायिक सम्यग्दर्शन थयुं ते पर्यायनो कर्ता तेमनो आत्मा छे के महावीर
भगवान्?
केवळी–श्रुतकेवळी समीपे क्षायिक सम्यक्त्व थाय एम कथन छे ने? ते तो निमित्तपणे कोण होय
ते बताववा व्यवहारनयथी कह्युं छे. निमित्तथी थतुं होय तो बीजाने केम न थयुं? जे जीव ते जातनी
लायकातरूपे परिणमे तेने ज केवळी वगेरे निमित्त कहेवाय छे. खरेखरबीजा जीवने सम्यग्दर्शन पर्याय
उपजाववाना काम माटे भगवान अलायक छे.
श्रेणिक राजाए नरकायु बांध्युं माटे नरकक्षेत्रमां जवुं पड्युं ए कथन निमित्तनुं ज्ञान कराववा
माटे छे. खरेखर तो ते जीवनी त्यां जवानी योग्यताथी अने तेनी क्रियावती शक्तिना कारणे त्यां जवुं
थयुं छे, केमके तेमनो आत्मा नरकनी योग्यतारूपे परिणमतो हतो. कर्मनो उदय जीवने हेरान करे, कर्म
भोगववा पडे, आठ कर्मने लीधे जीव संसारमां रखडे छे–ए खोटी वात छे, केमके कर्म पुद्गल द्रव्य छे
ते जीवना परिणाम करवा माटे अयोग्य छे.
प्रश्न:– बीजमांथी अनाज पाके छे ते शुं एनी मेळे पाके छे?
उत्तर:– हा, अनाजमां ऊगवानी अने पाकवानी शक्ति छे, ते ज प्रगट थाय छे. खेडुत, माटी,
पाणी, काळ वगेरे तो निमित्त मात्र छे, अन्य द्रव्यमां कोई अन्यनुं कार्य करवानी योग्यता नथी.
कार्यनो कर्त्ता ते द्रव्यनी क्षणिक उपादान शक्ति ज छे, निमित्त कारण ते खरूं कारण नथी, पण
स्वपरप्रकाशक प्रमाणज्ञान उपादान–निमित्त–निमित्त बधाने जेम छे तेम जाणे छे. स्वज्ञेय द्रव्य–गुण–
पर्याय स्वतत्त्वपणे अने निमित्तरूप परज्ञेय परतत्त्वपणे छे, विभाव अने स्वभावने गौण मुख्य न
करतां सर्वाश ने जाणे ते प्रमाण ज्ञान छे, तेथी प्रमाण पूज्य नथी पण नयज्ञान पूज्य छे एम नयचक्र
ग्रंथमां कहेल छे.
निश्चयनयनो विषय भूतार्थ स्वभाव छे तेथी स्वाश्रित जे निश्चयनय छे ते द्वारा पोताना
एकरूप ध्रुवस्वभावने ग्रहण करतां पराश्रयरूप व्यवहारनय गौण थई जाय छे, [ते कार्य प्रमाण
ज्ञाननुं नथी,) हेय तत्त्वनो निषेध अने उपादेय शुद्धतानुं ग्रहण, रागादि व्यवहारपक्षनी उपेक्षा अने