Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष वीसमुं : अंक : रजो संपादक : जगजीवन बावचंद दोशी मागशर : २४८९
अहो! भगवाने कहेल स्वतंत्रता.
आत्मा सदा ज्ञानस्वरूप होवाथी निरंतर जाणवुं, जाणवुं तेनुं
कार्य छे. ते ज्ञाननी क्रिया आत्माने आधारे छे. ध्यान राखे तोबधाने
समजाय तेवी आ वात छे. बधा आत्मा जाणनार स्वभावी छे,
भगवान छे, अविनाशी ज्ञान तेनुं स्वरूप छे. कोई आत्मा स्त्री, पुरुष के
पशु आदि रूपे नथी, रागद्वेष मोहरूपे नथी, क्षणिक स्वांग जेटलो नथी
भगवान! तारी वात तने न समजाय एम मानीश नहीं. जे जे सर्वज्ञ
परमात्मा थया तेमणे प्रथम साची ओळखाण करी, पछी अंतरमां पूर्ण
स्वभावना आश्रये एकाग्रता करीने पूर्ण निर्मळदशा–परमात्मदशा प्रगट
करी छे. एम अनंता सिद्ध परमात्मा थया छे. तीर्थंकर परमात्माए
साक्षात् केवळज्ञानथी जगतने जन्म मरण टाळवानो–पवित्र मुक्त दशा
प्रगट करवानो सत्य उपाय बताव्यो छे. तेमणे अकषाय करुणाथी जे
निर्दोष उपदेश आप्यो ते जगतना प्राणी समजी शके एवो ज आप्यो
छे. समजी न शके, पुरुषार्थथी न करी शके, जडकर्म नडी शके एवुं तेओए
कांई बताव्युं नथी. भगवाने तो सर्वत्र वीतरागता, यथार्थता अने
विश्वतत्त्वोनी स्वतंत्रता स्वीकारवानुं बताव्युं छे.
(पू. गुरुदेवनां प्रवचनमांथी)