Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २३०
अकार्यकारणत्व शक्ति
अहो! तारी स्वाधिनतानी अजबलीला
वीर संवत २४८८ भादरवा सुदी प–६ना दिवसे समयसारजी
उपरना प्रवचन. [अनादि अनंत दरेक आत्मा अनंत शक्ति (गुण)
नो पिंड छे तेमाथी ४७ शक्तिओनुं वर्णन चाले छे. तेनुं प्रयोजन
परिपूर्ण शक्तिवान आ आत्मामां द्रष्टि दई ने एकाग्र थवाथी सुख
अने सुखना उपायनी शरूआत थाय छे. तेने ज स्वाधिनतानो मार्ग
कहेवाय छे.)

चौदमी अकार्यकारणत्व शक्ति पण अनंत शक्तिनी साथे ज भगवान आत्मामां सदा विद्यमान
छे. जे अन्यथी करातुं नथी अने अन्यने करतुं नथी एवाएक स्वद्रव्यस्वरूप अकार्यकारणत्व शक्ति
आत्मामां छे, पण राग वडे अथवा निमित्त वडे जीवनुं कार्य थाय, पराश्रय–व्यवहारथी निर्मळ श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्ररूपी कार्य थाय अने जीव वडे रागना कार्य–परद्रव्यना कार्य थाय–एवीय शक्ति आत्मामां
नथी–एवी अनेकान्तमय जैनधर्मनी नीति छे.
पर द्रव्य–क्षेत्र–काळ ते कारण अने (आत्मामां) सम्सयग्दर्शनादि शुद्ध पर्याय कार्य एम नथी.
जुओ, निमित्ताधीन द्रष्टि उडावी; भगवाननुं समवसरण महाविदेहक्षेत्र, चोथो काळ, वज्रकाय शरीर
आदि बाह्य सामग्री होय तो आत्मामां धर्मरूपी कार्य थाय एम नथी. व्यवहाररत्नत्रयरूप शुभ भाव
होय तो आत्मामां वीतरागता प्रगटे एम नथी, केमके अकार्यकारणत्त्व गुण आत्मामां छे, पण तेनाथी
विरुद्धगुण आत्मामां नथी.
शास्त्रमां निमित्तना कथन घणा आवे छे. ज्ञानी पासेथी धर्मश्रवण, जातिस्मरण, वेदना
देवदर्शन आदि सम्यग्दर्शननी उत्पत्तिना निमित्त छे–तेनो अर्थ एम छे के भेदज्ञान वडे रागथी अने
परथी निरपेक्ष निश्चय चैतन्यदेवनुं स्वयं जाग्रत थाय, स्वसन्मुख थाय ते निश्चय सम्यग्दर्शननुं नाम
देवदर्शन छे. आत्मामां निश्चयदशारूपी कार्य प्रगट कर्युं तो त्यां निमित्त कोण हतुं ते बताववा तेने
व्यवहार साधन कहेवाय छे. निश्चय विना व्यवहार कोनो?
प्रश्न :– जीनेन्द्रदेवना दर्शनथी निद्धत अने निकाचित् कर्म तूटी जाय छे–एनो अर्थ पण ए ज
रीते छे के निमित्त बताववा माटे ते व्यवहारनयनुं कथन