परिपूर्ण शक्तिवान आ आत्मामां द्रष्टि दई ने एकाग्र थवाथी सुख
अने सुखना उपायनी शरूआत थाय छे. तेने ज स्वाधिनतानो मार्ग
कहेवाय छे.)
चौदमी अकार्यकारणत्व शक्ति पण अनंत शक्तिनी साथे ज भगवान आत्मामां सदा विद्यमान
आत्मामां छे, पण राग वडे अथवा निमित्त वडे जीवनुं कार्य थाय, पराश्रय–व्यवहारथी निर्मळ श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्ररूपी कार्य थाय अने जीव वडे रागना कार्य–परद्रव्यना कार्य थाय–एवीय शक्ति आत्मामां
नथी–एवी अनेकान्तमय जैनधर्मनी नीति छे.
आदि बाह्य सामग्री होय तो आत्मामां धर्मरूपी कार्य थाय एम नथी. व्यवहाररत्नत्रयरूप शुभ भाव
होय तो आत्मामां वीतरागता प्रगटे एम नथी, केमके अकार्यकारणत्त्व गुण आत्मामां छे, पण तेनाथी
विरुद्धगुण आत्मामां नथी.
परथी निरपेक्ष निश्चय चैतन्यदेवनुं स्वयं जाग्रत थाय, स्वसन्मुख थाय ते निश्चय सम्यग्दर्शननुं नाम
देवदर्शन छे. आत्मामां निश्चयदशारूपी कार्य प्रगट कर्युं तो त्यां निमित्त कोण हतुं ते बताववा तेने
व्यवहार साधन कहेवाय छे. निश्चय विना व्यवहार कोनो?