मागशर: २४८९ : ३ :
छे; पण कोई पण पर द्रव्य तारामां कार्य करवा माटे अयोग्य ज छे. अनंतवार निमित्तो पासे गयो,
केम कार्य न थयुं? घातिकर्मनो उपशम, क्षयोपशम अथवा क्षय ते कारण अने ते वडे आत्मामां
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं कार्य थाय एम नथी. जीवे एवो भाव कर्यो तो तेने निमित्त कारण कहेवाय
छे. निमित्त निमित्तपणे छे, पण कोई काळे उपादानमां कार्यनुं कारण थई शके एवी तेनामां शक्ति
नथी, तथा ते वडे आत्मामां कार्य थई शके एवो कोई गुण आत्मामां नथी.
निचली दशामां राग होय छे, पण नवतत्त्वना विकल्प, साचा देव–शास्त्र–गुरुनी भक्तिनो
राग, महाव्रतनो राग, नयपक्ष आदिनो राग छे माटे आत्मामां निर्मळ श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र छे एम
नथी; अने भूमिकानुसार ए जातनो राग न ज होय अने मात्र छठ्ठा गुणस्थानने योग्य (एकली)
वीतरागता ज होय एम पण नथी. अंशे बाधक दशा छे माटे साधक दशा छे एम नथी. अधुरूं ज्ञान छे
माटे राग छे एम नथी. न्यायथी कहेवाय छे. जेवुं वस्तुनुं स्वरूप अने तेनी ज्यां जे मर्यादा छे तेने
जाणवा तरफ ज्ञानने सम्यकप्रकारे दोरी जवुं ते न्याय छे.
वीतरागभाव छे ते ज मोक्षमार्ग छे; ते कार्यनी उत्पत्ति माटे कोई क्षेत्र, संयोग, काळकारण थई
शके छे एम नथी. शास्त्रमां व्यवहारना लखाण होय छे पण तेनो खर्च एटलो के “उपादान निजगुण
जहाँ, तहँ निमित्त पर होय, एम जाणवुं ते व्यवहार ज्ञाननुं प्रयोजन छे.
भगवान अमृतचंद्राचार्य कहे छे के तारामांएक गुण एवो छे के “अकारण कार्यत्व” परथी
तारामां कार्य नहीं अने तुं परनो कर्ता नहीं–स्वामी नहीं. मात्र अभूतार्थनयथी निमित्तकर्ता कहेवुं ते
कहेवामात्र छे, वस्तुस्वरूप एम नथी.
समयसारजीनी ११मी गाथा जिनशासननो प्राण छे. “व्यवहारनय अभूतार्थ दर्शित, शुद्धनय
भूतार्थ छे, भूतार्थने आश्रित जीव, सुद्रष्टि निश्चय होय छे.” शुं अन्यथी कोईनुं कार्य करी शकातुं नथी?
विरोध छे–एकान्त छे, निमित्त व्यवहार उडाडे छे–एम संयोग द्रष्टिवाळा राडो नाखे छे. पण ए बधुं
ज्ञेयपणे छे तेने उडाडे कोण? शास्त्रमां स्पष्ट लख्युं छे के अकार्यकारणत्वशक्ति, तथा छकारक–कर्ता, कर्म,
करण, संप्रदान, अपादान, अने अधिकरणशक्ति दरेक द्रव्यमां दरेक समये स्वतंत्र छे माटे अन्य कारणो
शोधवानी व्यग्रता व्यर्थ छे.
आत्मामां त्रणेकाळ स्वभावरूप अनंता शक्तिओ छे. शक्तिवान आत्मामां रागादि विभाव
नथी. दया, दान, व्रत, तप, भक्तिनो शुभ राग आवे, पण तेनी मर्यादा आस्रव अने बंध तत्त्वमां छे,
संसार खाते छे पण शक्तिवान आत्मामां आस्रव नथी.
स्वभावरूप शुद्ध कारण कार्य शक्ति तारामां छे. जो तारामां न होय तो क्यांथी आवे?
धवळशास्त्रमां एकस्थाने निमित्त–व्यवहार बताववानुं कथन छे के ज्ञानीने शुभ भावथी कथंचित्
संवर–निर्जरा थाय छे; छ ढाळामां आवे छे के सत्यार्थ कारण ते निश्चय अने त्यां निमित्त बताववुं ते
व्यवहारकारण तथा व्यवहारने निश्चयनो हेतु कह्यो तेनो अर्थ–ए भूमिकामां ते काळे आवुं ज निमित्त
होय तेटली वात साची; पण निमित्तथी उपादानमां कार्य थाय, शुभरागथी आत्मामां हळवे हळवे शुद्धि
थाय ए वात त्रणे काळे जूठी छे.
अहीं तो ४७ शक्तिद्वारा स्पष्ट कही दीधुं छे के दरेक शक्ति स्वतंत्रताथी शोभायमान अखंडित
प्रताप संपदावान छे, परना कारण कार्यपणाथी रहित छे अने दरेक शक्तिमां अनंत शक्तिनुं रूप,
प्रभुत्व अने सामर्थ्य छे ते निश्चय छे. ए उपरथी सिद्ध थाय छे के हे आत्मा! तारी अनंत शक्तिनुं
कार्य कारण ताराथी ज छे, परथी नथी. पर द्रव्य, क्षेत्र काळ अने परभावने लीधे तारूं कोई कार्य नथी.
प्रथमथीज आ परम सत्यनी श्रद्धा करी, अनादिनी मिथ्या श्रद्धा