Atmadharma magazine - Ank 230
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २३०
छोडवानी वात छे. प्रथम अज्ञानी जीवो जेओ कांई समजता नथी तेमने पुण्य करवानो उपदेश
आपवो; शुभरागरूप व्यवहार करतां करतां हळवे हळवे निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी कार्य
थशे एम स्थापन करवुं ए मिथ्या मान्यता छे अने एनो उपदेश सम्यग्दर्शननुं भेदन करनारी विकथा
छे. मिथ्या मान्यता समान बीजुं कोई मोटुं पाप नथी–तेनी लोकोने खबर ज नथी.
निमित्त अने व्यवहार तेना स्थानमां होय छे तेनो निषेध नथी तथा तेनुं ज्ञान कराववा माटे
साचा निमित्तनुं, शुभभावनुं स्वरूप बताववामां आवे छे पण तेथी कोई तेना वडे हित थई जशे एम
माने मनावे, शुभ रागने करवा जेवो माने तो ते जीवो मिथ्यात्व तथाअनंतानुबंधीनुं महापाप बांधे
छे. अज्ञान ते बचाव नथी.
२प प्रकारनी विकथाआवे छे तेमां शब्दोमां विकथा नथी पण ते प्रकारना खोटा भाव ते विकथा
छे, तेमां एक बोल, दंसण भेदीनी कथा छे तेने मिथयात्वरूपी महापापने पुष्ट करनारी पापकथा कही
छे.
समयसारजी गाथा ३ मां कह्युं छे के विश्वमां लोकमां जे कोई जेटला पदार्थ छे ते बधाय पोताना
गुणपर्यायने ज प्राप्त थई परिणमन करे छे अने पोतामां एकमेक थईने रहेला पोताना अनंत
धर्मोना समूहने स्पर्शे छे, तोपण जेओ परस्पर एक बीजाने अडता नथी, अत्यंत निकट एक आकाश
क्षेत्रे रह्या छे छतां पोतानुं अंशमात्र पण स्वरूप छोडता नथी ने पररूपे परिणमता नथी.
जाग रे जाग, तारी अनंत चैतन्यऋद्धि, अक्षय गुणोनुं निधान तारे आधीन छे, तारामां एक
साथे छे, निकट ज छे, तेने जो. जडकर्म अनेरागादि आत्माने स्पर्श करी शकता नथी. आत्मा सदाय
अरूपी छे ते जड शरीरने स्पर्शतो नथी. सर्व पदार्थ पोतामां, पोता वडे, पोतानुं कार्य पोताना आधारे,
पोताथी ज करे छे. अन्यनो आश्रय करवो, कारकान्तरनी अपेक्षा मानवी, पोताथी भिन्न पदार्थनी
जरूर मानवी ते व्यर्थ खेद छे.
हरेकने पोताना स्वतंत्र कारण कार्य छे स्वरूपना लक्षे एटलुं नक्की थतां, हुं परनुं करूं, पर मारूं
करे, हुं बीजाने निमित्त थाउं तो तेना कार्य थाय ए मिथ्या अहंकारनी महाआकूळता मटी, त्रिकाळी
ज्ञाता स्वभावनी द्रष्टि सहित साची समता थाय छे.
त्रण काळ त्रण लोकमां दरेक द्रव्यनी स्वतंत्रता जोनार सर्वज्ञ भगवाननुं फरमान छे के एक
द्रव्यमां बीजा द्रव्यनो अत्यंत अभाव छे स्व चतुष्टयमां परचतुष्टय कोई प्रकारे पण नथी. जेमां नथी
ते तेनुं शुं करे? कांई पण न करे तेथी कोई पण द्रव्य कोई पण प्रकारे बीजाने स्पर्श करी शकतो नथी.
तारूं काम तारामां छे, तारे आधीन छे–आवो द्रव्य–गुण–पर्यायनो स्वतंत्र स्वभाव त्रणेकाळे छे..
सत्यनी खबर नथी, साचुं समजवुं पण नथी अने धर्म करवो छे. शुं धर्म परथी आवे छे?
वर्तमान डहापणथी पैसा आवता नथी. शाणपणानी पर्याय जीवमां जीवना आधारे थाय छे
अने रूपिया जवाआववा, रहेवानी पर्याय जडमां जडना आधारे थाय छे.
अकारण कार्यत्व शक्ति आत्मामां अने तेना गुण पर्यायमां व्यापे छे; तेमां “कोई अन्यथी
करातुं नथी.” –ए शब्दोमां महान मर्मरूप सिद्धांत पड्यो छे, विश्वना सर्व द्रव्योनी स्वतंत्रता बतावे छे
के एक द्रव्य बीजानुं कांई न करे, न करावी शके एवो गुण आत्मानी अनंत शक्तिनुं रूप (स्वसामर्थ्य)
राखीने पड्यो छे.