क्रमवृत्तिरूप अने अक्रमवृत्तिरूप वर्तन जेनुं लक्षण छे एवी उत्पाद व्यय ध्रुवत्व शक्तिनुं वर्णन थई
गयुं. आत्मा अनंत शक्तिनो पिंड छे. त्रणेकाळ अनंत आत्मा छे अने ते पृथक पृथक छे. एक समयमां
अनंत सामर्थ्यथी एकरूप आत्मद्रव्य परिपूर्ण छे तेनी उपर द्रष्टि देवाथी सम्यग्दर्शन, ज्ञान, आनंद,
स्वच्छत्वादि अनंतशक्ति पर्यायमां ऊछळे छे, अनंतगुणनी अनंत पर्याय सम्यक्पणे ऊपजे छे एवा
एकरूप ज्ञायक आत्मानी प्रतीति थाय तेनुं नाम उत्तम सत्य छे. सत्या सांभळ्युं नथी, सांभळवानी
रुचि नहीं, रुचि विना परिणमन नहि
९९मी गाथामां द्रव्यना स्वभावभूत उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यमय परिणामशक्ति छे अने तेनो खुलासो
१०९मी गाथामां आचार्य देवे कर्यो छे के अमोए आगळ गाथा ९९मां कहेल ते परिणामशक्ति
आत्मानो गुण छे. गुणमां सदेशपणुं छे. ध्रुवपणुं छे, ने पर्यायमां उत्पाद–व्ययपणुं छे. दरेक
गुणमां तेनुं रूप अने भाव छे. दरेक समये नवी पर्यायनो भाव ते उत्पाद सत् छे, पूर्व पर्यायनो
अभाव ते व्ययसत् छे ते विसद्रशरूपे भाव छे. अने गुण तो त्रिकाळ सद्रशतारूपे ध्रुवभाव छे.
आम दिव्य शक्तिवाळा आत्म द्रव्यमां द्रव्यना स्वभावभूत उत्पाद–व्ययथी स्पर्शशक्ति छे ते
पोताना कारणे छे. परथी नथी, एवी अनंतशक्ति आत्म द्रव्यमां बिराजमान छे. अहीं ४७
शक्तिनां नाम लीधां पण एवी अगणित शक्ति छे, एनो धरनार एक आत्मा छे तेमां पोताना
सामर्थ्यथी पोताना कारणे उत्पाद–व्यय थया करे छे.