: ८ : आत्मधर्म: २३१
पण कल्याण न थाय, मात्र आत्माने ओळखवाथी अने तेमां एकाग्रताथी ज धर्म थाय. नीचली
दशामां दया, दान, पूजा, प्रभावना आदिनो शुभराग आव्या विना रहेतोनथी. आवे तेनो निषेध नथी
पण तेनाथी खरेखर धर्म थई जशे एम नथी. शुभ भाव आवे ते पुण्य छे अने धर्म तो आत्मानो
वीतरागी स्वभाव छे.
पद्मनंदी पंचविंशतिमां आचार्यदेव दान अधिकारमां कहे छे के संसारी प्राणी तीव्र लोभरूपी
ऊंडा कूवानी भेखडमां भराई बेठा छे, तेने तृष्णा घटाडवा दाननो उपदेश दईशुं, पछी दाखलो आप्यो
के कागडानो स्वभाव छे के तेने दाझी गएला अनाजना ऊकडिया मळे तो पोते एकलो न खाय पण
बीजा कागडाओने बोलावीने खाय तेम पूर्वे ते पुण्य कर्यांहतां, तेमां तारी शान्ति सळगी हती, तेमां
पुण्य बंधाणुं, तेना फळमां तने पैसा मळ्या छे, तेनेएकलो भोगवीश, तृष्णा घटाडी दानमां नहि दे, तो
कागडामांथी पण जईश. पुण्यनो निषेध नथी, अशुभथी बचवा शुभ भावहोय छे, तेमां खरेखर तो
चारित्रगुणनी पर्याय तेकाळे शुभरागरूपे थवा योग्य हती ते थाय छे. पण व्यवहारना उपदेशमां एम
कहेवामां आवे छे के विषय कषाय वचनार्थे शुभ करो.
शुभ राग करवो पडतो नथी अने अशुभ टाळवो पडतो नथी, पण सामान्य एकरूप द्रव्य
स्वभावनुं आलंबन लेतां मंद प्रयत्न होवाथी अशुभ टळी शुभ राग थई जाय छे, तेनो कर्त्ता, भोक्ता
के स्वामी ज्ञानी थतो नथी.
अहीं परिणाम शक्तिनुं शुद्ध कार्य ते आत्मानुं कार्य बताववुं छे. अहीं द्रव्य द्रष्टिथीकथन छे.
शक्तिवान द्रव्यने ध्येय बनाववाथी अनंतशक्तिनुं उत्पाद–व्यय–ध्रुवपणे परिणमन थाय छे. तेमां आ
शक्ति महान छे. अनंतगुण अने तेनी अनंत पर्याय सहित द्रव्य उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूपने आलिंगित
थई निरंतर वर्ते छे.
परिणाम शक्ति गुण छे ते अंश छे, ते द्वारा अशी एवा द्रव्य उपर द्रष्टि देवाथी सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्र, सुख, वीर्य, कर्त्ता, कर्म, करण, संप्रदान, स्वच्छत्व आदि गुणोनी सम्यक् दशानो उत्पाद
थाय छे. दरेक समये उत्पाद–व्यय–ध्रुवरूप अस्तित्व मात्र परिणाम छे. ते द्रव्य स्वभावने अवलंबे छे,
तेनाथी निर्मळ पर्यायनी प्राप्तिरूप मोक्षमार्गनी प्रवृत्ति थाय छे.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवथी आलिंगित आत्मद्रव्य छे. एनो निर्णय प्रथम करे तो आत्मा राग अने
निमित्तने न स्पर्शे एवी श्रद्धा थाय ए तेनुं फळ छे.
जेम लंबाईवाळो लटकतो मोतीनो हार छे तेमां दरेक मोती क्रमसर–क्रमबद्ध छे, कोई मोती
आघुं पाछुं होतुं नथी; पूर्वनुं पूर्वमां अने पछीनुं पछी. एम दरेक मोती क्रमनिश्चितरूपे व्यवस्थित होय
छे; तेम आत्मद्रव्यमां दरेक परिणाम पोतपोताना स्थानमां निश्चितपणे प्रकाशे छे. उत्पाद–व्यय–ध्रुवने
स्पर्शवावाळी परिणामशक्ति छे, ते महानशक्ति छे. अहो! चैतन्य, तारी ऋद्धि अने तारो महिमा
अचिन्त्य छे.
जेम हारमां दोरो कायम रहे छे, तेम द्रव्य गुण कायम रहे छे. परिणामशक्ति द्रव्य–गुण–पर्याय
त्रणेमां व्यापे छे. प्रवचनसारमां ज्ञेय अधिकार होवाथी प्रमाणज्ञानद्वारा छए द्रव्यमां परिणामशक्ति छे
एम कहेल छे. अहीं समयसारमां एक आत्मामां कही छे.
“पर्यायो क्रमसर नथी, हारनुं द्रष्टांत बराबर नथी, दोरो तोडी नाखी मोतीने आघां पाछां करी
शकाय छे;” तोएम माननारे सर्वज्ञ कथित द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप जाण्युं ज नथी.
द्रव्य अखंड छे, ऊर्ध्वता सामान्यरूपे त्रणे काळनी पर्यायनी अखंडता ते द्रव्य छे. पर्यायनुं
उत्पाद–व्ययरूपे