Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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पोष: २४१९ : :
थवुं ते अपेक्षाए वस्तुने असदश कहेवामां आवे छे, अने द्रव्य–गुण कायम एकरूप रहे छे ते अपेक्षाए
तेने सदश कहेवामां आवे छे; बेउने आ परिणाम शक्ति स्पर्शे छे.
दया, दान, व्रत आदिना शुभराग छे ते आस्रव छे, बंधनुं कारण छे; तेने धर्म माने तेनेआचार्य
देवे कलीब अर्थात् आत्मकार्य करवा माटे नपुंसक कहया छे.
परिणामशक्तिनी जेम आत्मामां ज्ञानादि दरेक गुण सद्रश–विसद्रशपणे व्यापे छे. द्रव्यसत्, गुण
सत् अने प्रत्येक समयनी पर्याय पण सत् छे. तेनो कोई अन्य कर्त्ता नथी, –ने ते रागादि, देहादि
कोईनुं कार्य नथी, कोई कारण पण नथी. कोईथी एनुं कार्य थाय एम पराधिन नथी. शुभरागरूप
व्यवहार कारण अने निर्मळ पर्याय कार्य एम नथी. एक शक्तिनी प्रधानताथी वर्णन छे पण दरेक गुण
(शक्ति) एक साथे छे, एकबीजामां व्यापक छे; तेनी साथे प्रभुत्व शक्ति छे, ते अनंतगुणनी शक्तिमां
निमित्त छे; पोतपोताना सामर्थ्यथी निर्मळ पर्यायना उत्पाद–व्यय–ध्रुवता सहित स्वद्रव्यने स्पर्शे छे.
रागने के निमित्तने स्पर्शे एवी कोई शक्ति आत्मद्रव्यमां नथी. सद्रश–विसद्रश पोताना कारणे
परिणमन थाय छे. आत्मानी निर्मळ पर्याय पूर्वनी पर्यायना कारणे नथी, पर निमित्तना कारणे नथी,
तेमज रागना कारणे पण नथी.
कहेवत छे के चेलौयो सत्य न चुके, महेरामण माजा न मूके; एम पोतानी अंतरद्रष्टिरूप
साधकभाव ते शिष्य छे, द्रव्यगुणनो सागर ते गुरु छे. भगवान आत्मा अनंतगुणनो सागर पोताना
द्रव्य–गुण–पर्यायनी मर्यादा न तोडे, एक गुण बीजा गुणनुं कार्य न करे तेमज परवडे पोते न परिणमे.
“सत् द्रव्य लक्षणं”, अने “उत्पाद–व्यय–ध्रौव्य युक्त सत्” आवो द्रव्यनो स्वभाव छे. एथी
साबित थाय छे के स्वयंसिद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेने सत कह्या छे अने अस्तित्वमात्रमयी परिणाम
शक्तिथी व्यापक कह्यां छे. अनंत गुण ते सामान्य छे अने तेनी दरेक समये थती पर्याय ते विशेष छे;
माटे परथी कांई थई शके छे ए मान्यताने स्थान नथी. अहो! अनंतकाळे आवी वात मांड सांभळवा
मळे छे, समजवा मागे तो समजी शके छे, ने जे समजी शके तेने ज समजाय तेवुं कहेवाय छे.
भगवाननी वाणी समजनार एवा आत्माने कहे छे. भगवान कांई जडने संभळावता नथी, जड कर्मने
उपदेश देता नथी के ‘तुं खसी जा, ने जीवने धर्म करवा दे.’ आचार्यदेव कहे छे के अमे आत्मा छीए, तुं
पण ज्ञानस्वरूप आत्मा छो. तुं तारा द्रव्य–गुण–पर्यायथी एकरूपे छो.
समयसारजी गा. ३मां कहयुं छे के दरेक पदार्थ पोताना अनंत गुणो–अनंत धर्मोने चुंबे छे–
स्पर्शे छे, एक बीजा कोईने स्पर्शता नथी. एक एक आत्मा के एक परमाणु बीजा कोईने कदी स्पर्शतो
नथी. जड कर्म आत्माने न स्पर्शे अने आत्मा जडने न अडे. आवी स्वतंत्र सत्तानुं धाम, सच्चिदानंद,
अक्षय आनंद मंदिर आत्मा छे. उत्पाद–व्ययमां प्रभुता पोतानी छे, वीर्यगुणनी प्रभुता आत्मद्रव्यनी
छे. परथी के परना टेकाथी कार्य थाय एवी कोई शक्ति आत्मामां नथी. अनंतगुण पोतानी प्रभुता
बतावे छे, हीनता बतावता ज नथी. अहो! केवळ ज्ञाननो अपार अपार महिमा छे, ते सर्व पदार्थमां
आवी स्वतंत्रता बतावे छे.
अस्तित्वमात्रमयी उत्पाद–व्यय–ध्रुवपणाथी आलिंगित सत्तारूप निरपेक्षता स्वाधीनता प्रसिद्ध
करनारी महान शक्ति छे एम बतावी आचार्यदेवे सर्वज्ञनां पेट खोली नाख्यां छे.
(क्रमश:)
(आ शक्तिनुं वर्णन ‘परमात्मपुराण’ मां बहु सरस छे ते हवेना अंकमां आपवामां