स्वसन्मुख ज्ञातापणामां सावधान थतां, मिथ्यात्व रागादि तथा क्रोधादिनी उत्पत्ति न थवी तेनुं नाम
उत्तम क्षमाधर्म छे, तेनी शरूआत मनुष्य, पशु, देव हो के नारकीनुं शरीर हो–चारे गतिमां थई शके छे.
छे? अने मारामां दोष नथी तोए जाण्या विना तेनुं अज्ञान प्रगट करे छे; अज्ञानी उपर कोप शो
करवो? एम विचारी क्षमा करवी. अज्ञान अने कोप तो मात्र एक समयनी अवस्था छे, तेनो आत्मा
तो निश्चयथी अत्यारे पण सिद्ध भगवान जेवो शुद्ध छे. वळी अज्ञानी कलेश प्रकृतिवान होय तो तेना
बाळ स्वभावने जाणी लेवो के बाळक तो प्रत्यक्ष पण कहे अने आ तो परोक्ष ज निंदा आदि करे छे;
कदी प्रत्यक्ष कुवचन कहे तो विचारवुं के बाळक तो लाकडी पण मारे, आ तो कुवचन ज कहे छे, वचनमां
कांई खराब नथी. मार मारे तो विचारवुं के अज्ञानी तो प्राणघात करे छे, आ तो मात्र मार मारवानो
भाव करे छे. प्राणघात पण कोई करी शकतो नथी. मात्र पोताना कलेशनुं आ रीते समाधान करे छे.
मारा स्व–पर प्रकाशक ज्ञाननी योग्यता आ काळे आम ज होय, थाय छे ज्ञान अने मानवुं दुःख!! !
ज्ञातास्वभावनो तिरस्कार कोण करे?