Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म: २३१
वस्तुस्वभावनी श्रद्धा अने वीतराग विज्ञानता
उत्तम क्षमादि दस लक्षण पर्व.
(बीजो दिवस, ता. प–९–६२ भादरवा सुदी ६.)
सर्वज्ञ भगवाने निश्चय सम्यग्दर्शन, स्वानुभूति सहित स्वरूपमां लीनताने चारित्र कहेल छे,
तेमां मुख्यपणे मुनिओना वीतरागभावना भेदरूपे–उत्तम क्षमदि १० धर्म गणवामां आवे छे.
हुं परनुं कांई करी शकुं छुं, शुभाशुभ भावनुं स्वामीत्व, रागादि परभावोमां कर्तापणानी रुचि
अने ज्ञातास्वभावनी अरुचि तेनुं नाम अनंतानुबंधी क्रोध छे. भेदज्ञानवडे सर्व विभावथी भिन्न
स्वसन्मुख ज्ञातापणामां सावधान थतां, मिथ्यात्व रागादि तथा क्रोधादिनी उत्पत्ति न थवी तेनुं नाम
उत्तम क्षमाधर्म छे, तेनी शरूआत मनुष्य, पशु, देव हो के नारकीनुं शरीर हो–चारे गतिमां थई शके छे.
भेदज्ञानवडे वस्तुस्वरूपने जाणे छे ते कोई ज्ञेयने ईष्ट–अनिष्यरूपे देखे नहीं. क्रोधनुं निमित्त
आवतां एवुं चिंत्वन करे के जो कोई मारा दोष कहे छे ते जो मारामां विद्यमान छे तो ते शुं खोटुं कहे
छे? अने मारामां दोष नथी तोए जाण्या विना तेनुं अज्ञान प्रगट करे छे; अज्ञानी उपर कोप शो
करवो? एम विचारी क्षमा करवी. अज्ञान अने कोप तो मात्र एक समयनी अवस्था छे, तेनो आत्मा
तो निश्चयथी अत्यारे पण सिद्ध भगवान जेवो शुद्ध छे. वळी अज्ञानी कलेश प्रकृतिवान होय तो तेना
बाळ स्वभावने जाणी लेवो के बाळक तो प्रत्यक्ष पण कहे अने आ तो परोक्ष ज निंदा आदि करे छे;
कदी प्रत्यक्ष कुवचन कहे तो विचारवुं के बाळक तो लाकडी पण मारे, आ तो कुवचन ज कहे छे, वचनमां
कांई खराब नथी. मार मारे तो विचारवुं के अज्ञानी तो प्राणघात करे छे, आ तो मात्र मार मारवानो
भाव करे छे. प्राणघात पण कोई करी शकतो नथी. मात्र पोताना कलेशनुं आ रीते समाधान करे छे.
मारा स्व–पर प्रकाशक ज्ञाननी योग्यता आ काळे आम ज होय, थाय छे ज्ञान अने मानवुं दुःख!! !
ज्ञातास्वभावनो तिरस्कार कोण करे?
प्राणघात थतां जाणे तो भेदज्ञान द्वारा एम