Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 29

background image
: : आत्मधर्म: २३१
श्री अमृतचंद्राचार्यदेव प्रवचनसारमां ज्ञेय अधिकार शरू करतां कहे छे के आत्माना आश्रये
जाणवानो ईच्छक मुमुक्षु सर्व पदार्थने द्रव्य–गुण–पर्याय सहित जाणे छे के जेथी मोहांकुरनी बिलकुल
उत्पत्ति न थाय.
‘जिनपद निजपद एकता, भेदभाव नहीं कांई,
लक्ष थवाने तेहनो, कह्यां, शास्त्र सुखदाई.’
सत्य–भूतार्थना स्विकारवडे ज असत्यनो नाश थाय छे. तेना माटे सत्य सांभळवा सावधान
थयो छे तो सत्यना लक्षे असत्यने असत्यपणे हेयपणे जाणवुं पडशे. सत्यने हितरूप जाण्या विना
असत्यनो आदर छूटतो नथी. जेनाथी यथार्थता, वीतरागता, स्वतंत्रता बतावनार जिनवचनो मळे
एवो उपदेश सांभळवा योग्य छे. हुं सिद्ध अने तुं पण सिद्ध–एम पूर्णतानुं लक्ष घूंटता घूंटता
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी प्राप्ति अने पूर्णता थई जशे.
धर्म जोईए छे, सुखी थावुं छे पण अमे लायक नथी ते तो पोताने ठगे छे. अत्यारे अल्पज्ञान
छे छतां तेमां अनंता सिद्धने समाडवानी तारामां ताकात छे. प्रथम धडाके अनंता सिद्धने पोतामां
स्थापन करीने पूर्ण साध्यनो आदर करवा जाग्यो ते अस्ति तेमां विरोधभावनी नास्ति ज छे. आवुं न
माननारने अहीं लक्षमां लीधा नथी.
समयसार शास्त्रमां तो कोई सिद्ध परमात्मानी वात हशे एवी स्थापना अत्यारे आपणा
आत्मामां थाय! अमे तो पामर छीए, पराश्रय, व्यवहार, निमित्त जोईए–एम करतां करतां हळवे
हळवे धर्म थशे–एम माननारा अनंता ज्ञानी अने सर्व आचार्य संतोनो विरोध करे छे.
जे अल्पज्ञान परने जाणवामां काम करे छे तेने, सर्वज्ञनी सत्तानो निश्चय करवा माटे प्रथम
त्रिकाळी शक्तिवान हुं सर्वज्ञ स्वभावी आत्मा छुं एनुं लक्ष अने आदर करवानुं काम सोंपवामां आवे
छे, के जे एना अधिकारनी वात छे.
स्वभाव अपूर्ण न होय; अल्पज्ञानमां अनंता सिद्धनो आदर थतां ज अल्पज्ञता अने
रागनो आदर छूटी जाय छे. प्रथमथी ज परमात्म स्वभावनो आदर नित्यना लक्षे थयो त्यां सादि
अनंत अंदरमां एकत्व निश्चयनी प्राप्ति करनार छुं, विरुद्धतानो आदर करनार नथी–एम एकरूप
वीतराग स्वभावनी अपेक्षा अने सर्व विभावनी उपेक्षा करनारो थई जाय छे एनुं नाम धर्मनी
शरूआत छे.
ज्ञाननी महिमा तो जुओ! वर्तमान राग मिश्रित दशामां, ईन्द्रियाधीन थवा छतां, क्षणमां
चैतन्य वस्तुनो बेहद स्वभाव पकडी शके छे. बेहद अनंत ज्ञानना धारक अनंता सिद्ध थई गया
तेने अल्पज्ञ पण मापी ले छे, तो सर्व रागद्वेष अने आवरण रहित थयेल पूर्ण ज्ञाननी एक
समयनी एक अवस्थामां त्रणकाळ त्रणलोकना सर्व पदार्थसमूहने सर्वप्रकारे एक साथे जाणवानुं
प्रगट सामर्थ्य केम न होय? होय ज. तेमां स्वभावनी रुचिवंतने शंका पडती नथी. सर्वज्ञ
वीतराग परमात्माने कबूलनारो, पोते ज अत्यारे शक्तिपणे एवडो मोटो होय तो ज ते
अल्पज्ञता काळे पूर्णने ओळखी शके छे. अधुरा ज्ञानमां पण ज्ञाननुं जाणपणुं व्यवस्थित छे.
पक्षपात छोडी परीक्षा करवानो उद्यम करे तो ज्ञानमां सत्यनो स्विकार थाय ज अने असत्यनो
आदर न थाय एवो नियम छे.
***