Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 29

background image
: १२ : आत्मधर्म: २३१
उत्तम सत्य धर्म–का. अनुप्रेक्षा गा. ३९८.
अर्थ–जे मुनि जिनसूत्र अनुकूळ वचनने ज कहे, अर्थात् तेमां जे आचारादि कह्या छे ते पालन
करवामां पोते असमर्थ होय तो पोताना बचाव खातर पण अन्यथा न कहे, व्यवहारथी पण असत्य
न कहे ते मुनि सत्यवादी छे अने तेने ज उत्तम सत्य धर्म होय छे. सर्वज्ञ भगवाने अनादि अनंत
द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्रता कहेल छे, परथी कोईनी पर्याय थती नथी एम शास्त्रमां पण कह्युं छे
तेथी तेनाथी विरुद्ध कथन ज्ञानी करे नहीं.
शिथिल थई कहे छे के पंचमकाळमां आवुं ज मुनिपणुं होय तो ए जूठ छे. पोताना दोष
जगतमां प्रसिद्ध करवाथी मान जतुं रहेशे, निंदा थशे एम मानादि वशे पण जूठ न बोले, दोष न
छूपावे तथा लौक्किमां पण जे सत्य छे तेने अन्यथा न कहे, ए १० प्रकारना व्यवहार सत्यना भेद छे.
शरिरादि परद्रव्यो प्रत्ये पण माध्यस्थता
हुं देह नहीं, वाणी नहि, न मन तेमनुं कारण नहि,
कर्ता न कारयिता न अनुमंता हुं कर्तानो नहि.
हुं देहादिपणे नथी, तेनुं कारण नथी, तेनोकर्ता, करावनार अने प्रेरक पण नथी
हुं तो नित्यज्ञाता छुं.
प्रवचनसार गाथा० १६०
लडाई जगडा क्यारे मटे
पोतानी समजण शुं छे ते नक्की करे अने पोताने समजवानो सवळो पुरुषार्थ करे त्यारे.
स्वरूप समज्या विना त्रणकाळमां निवेडो थाय नहीं. कोई सीधो
‘गधेडो’ कहेतो कजीयो करे पण जे भावमां तेवा अनंता भव उभा छे ते
भावनो नाश करतो नथी तो ते भूलनुं फळ भोगववुं पडशे माटे समये समये
तारा परिणाम तपास अहीं समजण उपर वजन छे. जीव समजणमां ऊंधुंं
मानी परमां ठीक–अठीकपणे राग–द्वेष करे अथवा सवळुं मानी राग–द्वेष तोडी
वीतरागभाव करी शके. ते सिवाय बीजुं कांई ते करी शकतो नथी. माटे जो
सत्य स्वभाव न समज्यो तो जेम समुद्रमां फेंकेल मोती हाथ न आवे तेम
चोराशीनी रखडपाटमां फरी मनुष्य थवुं घणुं मोंघुं छे. पैसा वगेरे बहारना
संयोगो मळे तेमां समजणनी जरूर नथी, ते तो पूर्वना पुण्यना कारणे आवी
मळे छे. पण आत्माने समजवामां अनंतो सवळो पुरूषार्थ जोईए. कारण के
त्यां कर्म करावे तेम थतुं नथी.
(समयसार प्रवचन भाग १ पृ० प६०)