पोष : २४८९ : १३ :
मोक्षमार्गनी आदि – मध्य – अंतमां निश्चय(स्वाश्रित)
श्रद्धा – ज्ञान अने एकाग्रता ज
कार्यकारी छे?
(समयसारजी सर्व विशुद्ध ज्ञान अधिकार गा. ३९० थी ४०४ पर पू. गुरुदेवना प्रवचनो)
ता. ११–८–१९६२
भावार्थ :– आत्मा ज्ञान स्वभावी छे परद्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावथी भिन्न छे. अने पोताना
ज्ञानादि स्वभावथी अभिन्न छे. अहीं एम बताव्युं के आत्मानुं निर्दोष लक्षण ज्ञान–दर्शनमय उपयोग
छे अने उपयोगमां ज्ञान प्रधान छे. कारण के ज्ञान लक्षणथी ज आत्मा सर्व परद्रव्योथी भिन्न
अतीन्द्रिय ज्ञानमय अनुभवगोचर थाय छे. ज्ञान मात्र कहो के अनंतगुणनो पिंड आत्मा कहो ते एक
छे. धर्मनी शरूआत सम्यग्दर्शनथी थाय छे. प्रथमथीज संयोग. विकार (पुण्यपाप शुभाशुभ राग)
अने व्यवहारनो आश्रय श्रद्धामांथी छोडी अनादि अनंत पूर्ण–ज्ञान धन स्वभावी हुं आत्मा छुं एम
निश्चय करी, तेमां निर्विकल्प अनुभव करवो ते निश्चय सम्यग्दर्शन छे. अहीं सम्यग्दर्शन ते ज आत्मा
एम कह्युं छे.
जे ज्ञान रागमिश्रित खंडखंड थतुं हतुं ते ज ज्ञान सर्व भेदने गौण करनार एवा शुद्धनय द्वारा
पूर्णज्ञानघन मारो आत्मा छे एम स्वसंवेदनथी आत्मानी प्रसिद्धि करे छे–आत्माने जाणे छे–अनुभवे
छे, ते ज्ञान आत्मा ज छे. शास्त्रमां ज्ञान नथी. स्वरूपाचरण चारित्र उपयोग अने अतीन्द्रिय
ज्ञानानंदमां लीनतारूपी चारित्र ते आत्मा ज छे. केमके दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां आत्मा ज रहे छे.
आत्मानुं वेदन थई अंदर निर्मळ विकास थयो ते ज्ञान ज आत्मा छे. बहारमां अगियार अंगनुं ज्ञान
होय ते ज्ञान नथी; पण स्वाश्रये खीलेलुं ज्ञान ते ज ज्ञान छे.
संवत् १९८२ मां प्रश्न थयेलो के अत्यारे सूत्र (जिनागम शास्त्र) केटला विद्यमान छे? तेना
उत्तरमां कहेलुं के वर्तमानमां भरतक्षेत्रमां सम्यग्द्रष्टि जीवने स्वावलंबी ज्ञाननो जेटलो विकास होय
तेटला सूत्र हाल विद्यमान छे अने तेटलुं आगमज्ञान छे–बाकी विच्छेदरूप समजवुं.
स्वावलंबी ज्ञान विना शास्त्रमां शुं लख्युं छे तेनो निकाल कोण करशे? विकल्पमां, शुभरागमां
एवी ताकात नथी, शास्त्रना शब्दज्ञानमां भावज्ञाननी ताकात