तेटलुं अंग–पूर्वगत ज्ञान हाल विद्यमान छे.
अनंत गुणो छे तोपण तेमांना केटलाक तो छद्मस्थने गोचर ज नथी, तेथी ते धर्मोद्वारा अल्पज्ञ प्राणी
आत्माने कई रीते ओळखे? वळी केटलाक धर्मो स्पष्ट अनुभव गोचर छे; तेमांना केटलाक तो
अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व आदि तोअन्य द्रव्योमां पण छे, माटे ते द्वारा आत्मा परथी जुदो जाणी
शकाय नहि, अने केटलाक पर्यायधर्मो परद्रव्यना संबंधथी थयेला छे, ते द्वारा परमार्थभूत आत्मानुं
शुद्धस्वरूप केवी रीते जणाय? माटे ज्ञानद्वारा ज आत्मा लक्षित थई शके छे. दया, दान, पूजा, भक्तिना
शुभरागथी आत्मा लक्षमां आवतोनथी. कारण के कषायनी मंदतामां एवी ताकात नथी के चैतन्यमूर्ति
आत्माने ग्रहण कर शके. जेने शुभरागरूप व्यवहार रत्नत्रय कहेवामां आवे छे ते पण आस्रवत्त्व
अनात्मभाव छे, चैतन्यनी जागृतिने रोकनार अजागृत भाव छे. माटे शुभभाव कारण अने वीतराग
भा१व कार्य एक त्रणकाळमां बनी शकतुं नथी. मात्र निमित्तपणुं बताववा उपचारथी साधन कहेवानी
रीत छे. भूमिकानुसार आटलो वीतरागभाव होय त्यां निमित्तमां आवुं होय छे एम जाणवुं ते
व्यवहारनयनुं प्रयोजन छे.
खबर नथी. शुद्ध अशुद्ध आहार आत्मा थई शकतो नथी पण ते संबंधी राग करी शके छे. धर्मना नामे
गमे तेटला शुभरागनी क्रिया करे ए व्यवहार संबंधी शुभरागमां पण एवी ताकात नथी के जे वडे
शास्त्रना साचा अर्थ समजी शकाय पण शुद्धनयनुं प्रयोजन समजी भेदज्ञान करे तो स्वसन्मुख
थईशकाय छे. आ रीते तत्त्व विचाररूप उद्यमपूर्वक प्रगट थवावाळां स्वसन्मुख ज्ञानमां ज एवी
ताकात छे के सत्य असत्यनो निर्धार करी शके.
कारण के अभेद अपेक्षाए गुण–गुणी अभेद होवाथी ज्ञान ते ज आत्मा छे. तेथी ज्ञान कहो के आत्मा
कहो तेमां कोई विरोध नथी. पराश्रयनी बुद्धि छोडीने, स्वसन्मुखताना बळथी भगवान आत्माने
ध्येयरूपे पकडीने, ज्ञान लक्षण वडे आत्माने जाण्यो के आ हुं छुं ते ज्ञान स्वरूप ज आ आत्मा छे एम
प्रथम श्रद्धामां निर्विकल्प अनुभव थवो ते प्रथममां प्रथम धर्म छे.
थवानो उपदेश छे. तेथी कह्युं छे के जेनाथी यथार्थ उपदेश मळे एवा जिनवचननुं श्रवण करवुं ने तेमां
ग्रहण शुं करवुं के शुद्धनयना विषयने ग्रहण करवो. कोई पण प्रकारनो राग आश्रय करवा जेवो नथी,
परथी लाभ नुकशान नथी, पण पोताना भावथी पोतानुं लभुं भूंडुं थई शके छे. प्रथम पोतानी विकारी
पर्यायने पण परथी भिन्न स्वतंत्र सत् तरीके स्विकार करवा कहे छे के पर्यायमां पण परथी भिन्न अने
पोताना त्रिकाळी भावोथी अभिन्न आत्माने जाणवो; त्यां परथी भिन्न कहेतां, वर्तमान अशुद्ध पर्याय
पण ताराथी स्वतंत्रपणे करायेली छे, सत् छे. काळना