अने गोळनी सुखडी थाय पण तेने बदले माटी–मूत्रादिमांथी सुखडी थाय नहि, तेम कोईपण प्रकारनो
राग ते वीतरागभावरूप मोक्षमार्ग नथी, पण विरुद्ध भाव छे. तेथी शुभरागरूप व्यवहार व्रतादिथी
निश्चय मोक्षमार्ग थाय नहीं, ए नियम अनेकान्त सिद्धांत छे. शुभराग आवे–होय ते जुदी वात छे, ने
तेनाथी धर्म थाय एम मानवुं ते जुदी वात छे पुण्य–शुभराग–निमित्त तेना काळे होय छे तेनो निषेध
नथी पण तेनाथी धर्म मानवारूप ऊंधी मान्यतानो निषेध साची समजण माटे छे.
नथी. ज्ञानीने नीचली दशामां दया, दान, पूजा, भक्ति व्रतादिना शुभभाव होय छे, ते जातनो राग
त्यां निमित्तरूपे होय छे पण ते वीतरागभावने उत्पन्न करी शके एम कदी बनतुं नथी. संयोग अने
रागनी रुचिवान माने छे के व्यवहार जोईए, निमित्त जोईए, ए होय तो निश्चय श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र
थाय एम तेनी द्रष्टिमां महान अंतर छे. संयोग अने रागनी रुचि होवाथी ते जीव आत्मानो
तिरस्कार करे छे. आस्रवनी एटले के संसारनी भावना भावे छे. प्रथम व्यवहार जोईए एम
माननारने बहिरात्मा केम कह्यो छे के ते व्यवहारनयना कथनने निश्चयनयना कथन माने ज छे,
लक्ष्यार्थने समजता ज नथी.
वीतरागघन स्वरूपमां वीतरागी द्रष्टि अने शान्ति देवी अने लेवी एवुं दान कदि कर्युं नथी. साक्षात्
भगवाननी धर्मसभामां (समवसरणमां) बेठो होय तोपण शुभ राग करवा जेवो छे, निमित्तथी कार्य
थई शके छे एम कर्तापणानी श्रद्धा छे तो तेनुं बधुं वर्तन मिथ्यादर्शनथी भरेलुं छे. ज्ञानीने तो श्रद्धा–
ज्ञानमां निरंतर सर्व समाधाननी अस्ति अने विरोधनी नास्तिरूपे स्वाश्रयनुं बळ वर्ततुं ज होय छे.
पछी विशेष पुरुषार्थद्वारा छठ्ठा सातमा गुणस्थान वर्ती जीवनुं ज्ञानानंदमां देखवुं छे.
करवो, उपयोगने ज्ञानघन आत्मामां ज थंभाववो. जेवुं शुद्धनयथी पोताना पूर्ण स्वरूपने सिद्ध
परमात्मा समान जाण्युं–श्रध्युं हतुं तेवुं ज ध्यानमां लईने चित्तने एकाग्र करवुं–स्थिर करवुं, वारंवार
तेनो ज अभ्यास करवो, ते बीजा प्रकारनुं देखवुं छे.
निमित्त द्वारा, शुभ व्यवहार द्वारा देखवुं एम कह्युं नथी. स्वाश्रयी द्रष्टि, ज्ञान अने एकाग्रता ते ज शुद्ध
स्वरूपने प्राप्त करवानी रीत कही छे. व्यवहारने याद कर्यो नथी. मात्र ते यथापदवी जाणवा योग्य छे.
कोई कहे, शुं व्यवहारनय सर्वथा असत्यार्थ छे? भाई! भगवाने तो निश्चयनयने सत्यार्थ कहेल छे.
व्यवहारना स्थानमां व्यवहार भले होय–तेनो निषेध नथी. पण तेना आलंबनथी रागनी उत्पति
थाय छे–एम जाणवुं जोईए. एक पंडितजी कहेता हता के अमारी द्रष्टि निमित्तथी अने रागथी पण
लाभ थाय–एम मानवा उपर हती तेथी शास्त्रमां निश्चयनी वात आवे तो