Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म: २३१
नोकर्मनो संबंध केम होय? कोईने प्रश्न थाय के क्यारे, केवळी भगवान थाय त्यारे ने? ना, अरे
अत्यारे ज पर्यायमां शुद्धज्ञानघनना आश्रये निर्मळ श्रद्धा–ज्ञान थयुं त्यारथी ज भोजन अने ते संबंधी
रागनो कर्ता नथी, स्वामी नथी, कर्म नोकर्मनो संबंध नथी. आत्मा व्यवहारथी पण भोजन अथवा
परनुं ग्रहण त्याग करी शकतो नथी पण एवो राग आवे छे. मुनिने भोजननी वृत्ति आवे छे पण
तेनुं ग्रहण त्याग पोताने छे एम देखता नथी.
निमित्तथी शास्त्रमां कथन आवे के मुनि मोक्षमार्गने साधे छे तेमां निमित्त थनार नवधा
भक्तिसहित आहारदाननो दातार छे ते धन्यवादने पात्र छे. मोक्षमार्गमां मुनिनुं शरीर निमित्त छे,
शरीरने आहार निमित्त छे, जेणे मुनिने आहार आप्यो तेणे मुनिने मोक्ष आप्यो–ए बधा आरोपीत
व्यवहारना कथन छे. नय विभागद्वारा ज्यां जे जेम होय तेम सम्यग्ज्ञानी जाणे छे.
सुभाषित
ध्यान विषे अभ्यंतरे देखे जे अशरीर;
शरमजनक जन्मो टळे न पीए जननी क्षीर.
(योगेन्द्र देव)
लीन भर्यो व्यवहारमें युक्ति न उपजै कोई;
दिन भयो प्रभुपद जपै मुक्ति कहांसे होय.
(बनारसीदासजी)
निर्मळ अंतःकरणथी आत्मानो विचार करवा योग्य छे.
यथार्थ वचन ग्रहवामां दंभ राखशो नहि के आपनारनो उपकार ओळखशो नहि.
संसाररूपी कुटुंबने घेर आपणो आत्मा परोणा (महेमान तरीके) दाखल छे.
समर्थ पुरूषो कल्याणनुं स्वरूप पोकारी पोकारीने कही गया; पण कोई वीरलाने ज ते यथार्थ
समजायुं.
शुक्ल अंतःकरण विना वीरप्रभुना वचनोने कोण दाद आपशे? (श्री राजचंद्रजी)
रुचे तेना वायदा न होय आत्मामां ज्ञानानंद लक्ष्मी भरी पडी छे तेमां द्रष्टि देतां ते प्रगटे छे.
तेनी रुचि छे पण हमणां नहीं एम कहे तेने रुचि नथी.
(पू. गुरुदेव)